भारत के इस इकलौते ‘असुर’ मंदिर में राहु दोष की होती है पूजा

मंदिरों में भगवानों की पूजा की कहानियां आपने आज से पहले बहुत बार सुनी होगी लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ सिर्फ देवताओं की ही नहीं बल्कि दानवों की भी पूजा का बहुत महत्व माना गया है। यहाँ हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं वो हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड के पौड़ी में स्थित थलीसैण ब्लाक के एक गांव पैठाणी में स्थित है। इस मंदिर की सबसे ख़ास और सबसे दिलचस्प बात यही है कि यहां केवल देवता ही नहीं बल्कि दानव की भी पूजा की जाती है। यह बेशक थोड़ा अजीब ज़रूर है, लेकिन कहते हैं कि जहाँ जन-आस्था और विश्वास हो वहां सब कुछ मुमकिन होता है।

यह है राहु का एकमात्र प्राचीनतम मंदिर

लोगों के बीच इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि राहु की कैसी भी दशा हो वो इस मंदिर में आकर पूजा करने से महादशा दूर अवश्य ही हो जाती है। इसी कारण के चलते इस मंदिर में सदियों से दानव की पूजा का भी बहुत महत्व बताया जाता है। इस मंदिर को पैठाणी महादेव मंदिर के नाम से जानते हैं। माना जाता है कि पूरे भारत वर्ष में यहां राहु का एकमात्र प्राचीनतम मंदिर स्थापित है।

पैठाणी महादेव मंदिर पूर्वी और पश्चिमी नयार नदियों के संगम पर स्थापित एक बेहद खूबसूरत मंदिर है। उत्तराखंड के कोटद्वार से लगभग 150 किलोमीटर दूर थलीसैण ब्लाक के पैठाणी गांव में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान राहु ने देवताओं का रूप धारण करके छल से अमृत ग्रहण कर लिया था तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शनचक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया था।  भगवान विष्णु ने ऐसा इसलिए किया था ताकि राहु अमर न हो जाए।

कहा जाता है कि उस वक़्त राहु का कटा हुआ सिर इसी स्थान पर गिरा था। यहाँ के लोग ऐसा मानते है कि जहां पर राहु का कटा हुआ सिर गिरा था वहां पर एक मंदिर का निर्माण किया गया और भगवान शिव के साथ राहु की प्रतिमा की स्थापना की गई और इस प्रकार देवताओं के साथ यहां दानव की भी पूजा होने लगी। जानकारों के अनुसार आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का निर्माण कराया था।

वैदिक ज्योतिष में केतु ग्रह

कहा जाता है कि जब शंकराचार्य हिमालय पर आए तो उन्हें इस क्षेत्र में राहु के प्रभाव का आभास हुआ। इसके बाद ही उन्होंने इस जगह पर राहु के मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया।

इस मंदिर में राहु-दोष से मिलती है मुक्ति

वर्तमान में यह जगह राहु मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। भक्तों के बीच इस मंदिर की उतनी ही महत्वता है जितनी देवताओं के मंदिर की होती है। इस मंदिर के बारे में ये मान्यता है कि यहां पर सही ढंग से पूजा करने पर राहु और केतु के साथ-साथ शनि के दोष से भी मुक्ति पाई जा सकती है।

वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह

बिना धड़ की राहू की मूर्ति वाला यह मंदिर देखने से ही काफी प्राचीन लगता है। इस मंदिर की प्राचीन शिल्पकला बेहद अनोखी और आकर्षक है। पश्चिममुखी इस प्राचीन मंदिर के बारे में यहां के लोगों का मानना है कि राहु की दशा की शांति और भगवान शिव की आराधना के लिए यह मंदिर पूरी दुनिया में सबसे उपयुक्त स्थान है।