मलमास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का एक नाम कमला एकादशी या पुरुषोत्तम एकादशी भी होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत जो महीना अधिक हो जाता है उस पर निर्भर करता है। यानी कि पद्मिनी एकादशी का उपवास करने के लिए कोई चंद्र मास तय नहीं होता है।
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पद्मिनी एकादशी व्रत मुहूर्त
2020 में पद्मिनी एकादशी 27 सितंबर, 2020, रविवार, के दिन मनाई जाएगी।
एकादशी तिथि प्रारम्भ | सितम्बर 26, 2020 को 06 बजकर 59 मिनट से |
एकादशी तिथि समाप्त | सितम्बर 27, 2020 को 07 बजकर 46 मिनट तक |
पद्मिनी एकादशी पारणा मुहूर्त | 06:12:41 से 08:36:09 तक 28, सितंबर को |
अवधि | 2 घंटे 23 मिनट |
इस वर्ष आने वाले सभी एकादशियों की सूची हम आपको नीचे दे रहे हैं।
पद्मिनी एकादशी – 27 सितंबर 2020
परम एकादशी – 13 अक्टूबर 2020
पापांकुशा एकादशी – 27 अक्टूबर 2020
रमा एकादशी – 11 नवंबर 2020
देव उठनी एकादशी – 25 नवंबर 2020
उत्पन्ना एकादशी – 11 दिसंबर 2020
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पद्मिनी एकादशी पूजन विधि
- इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें।
- इसके बाद निर्जल व्रत रखकर विष्णु पुराण का श्रवण करें।
- रात में भजन-कीर्तन का जगराता करें।
- इसके अलावा रात में प्रति पहर विष्णु भगवान और शिव जी की पूजा करें।
- ऐसी मान्यता है कि इस रात अलग-अलग पहर में भगवान को अलग-अलग चीजें भेंट करनी चाहिए, जैसे प्रथम पहर में नारियल भेंट करें, दूसरे पहर में बेल भेंट करें, तीसरे पहर में सीताफल भेंट करें, और चौथे पहर में नारंगी और सुपारी भेंट करें।
- इसके बाद द्वादशी के दिन सुबह भगवान की पूजा करें, फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें अपनी यथाशक्ति के अनुसार दान दक्षिणा दें।
- उसके बाद ही खुद भोजन करके अपना व्रत पूरा करें।
पद्मिनी एकादशी के दिन क्या करें
- शास्त्रों में कहा गया है कि जो कोई भी इंसान पद्मिनी एकादशी का व्रत रखता है उन्हें सदाचार का पालन करना चाहिए।
- इसके अलावा जो इंसान पद्मिनी एकादशी का व्रत नहीं भी रखते हैं उन्हें भी इस दिन लहसुन, प्याज, बैंगन, मांस-मदिरा, पान-सुपारी, तंबाकू, चावल आदि का परहेज करना चाहिए।
- इसके अलावा इस दिन जुआ और नींद का त्याग हो सके तो कर देना चाहिए और रात में भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करते हुए भजन-कीर्तन, जगराता करना चाहिए।
पद्मिनी एकादशी के दिन क्या ना करें?
- जिन्हें पद्मिनी एकादशी का व्रत रखना है उन्हें दशमी तिथि के दिन से ही अपने मन में भगवान विष्णु का ध्यान शुरू कर देना चाहिए और काम भाव, भोग, विलास से खुद को दूर कर लेना चाहिए।
- मसूर की दाल, चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
- जो कोई भी इस दिन का व्रत रहता है उन्हें कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।
- इस दिन व्रत में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए
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पद्मिनी एकादशी व्रत महत्व
इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु को पद्मिनी एकादशी का व्रत अधिक प्रिय होता है, इसलिए कहा जाता है कि जो कोई भी इंसान इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करता है वह विष्णु लोक का हो जाता है। इस व्रत को करने से इंसान की सभी मनोकामनाएं भी अवश्य पूरी होती हैं। इसके अलावा उस साधक को सभी प्रकार के यज्ञ, व्रतों एवं तपस्या का फल भी मिलता है।
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पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
त्रेता युग में एक राजा हुआ करते थे कीतृवीर्य। इस राजा की कई रानियां थी लेकिन फिर भी राजा को किसी भी रानी से पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। संतान सुख ना मिल पाने की वजह से राजा और सभी रानियों के जीवन में सभी सुख सुविधा होने के बावजूद दुख का साया रहता था। ऐसे में एक दिन संतान प्राप्ति की कामना के लिए राजा अपनी रानियों के साथ तपस्या करने के लिए निकल गए।
हजारों वर्षों तक सभी ने संतान प्राप्ति के लिए तपस्या की। इस दौरान राजा की सिर्फ हड्डियां ही शेष रह गयीं, लेकिन उनकी तपस्या सफल नहीं हुई। राजा की ऐसी हालत देखकर रानी ने अनुसूया देवी से उपाय पूछा। तब देवी ने उन्हें बताया कि मलमास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखने से आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सकती है।
देवी अनुसूया ने रानी को व्रत का विधान भी बताया। इसके बाद रानी ने देवी अनुसूया के बताये विधान से पद्मिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत रखा, पूजन किया और व्रत कथा सुनी। व्रत की समाप्ति पर भगवान स्वयं रानी के सामने प्रकट हुए और उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब रानी ने भगवान से कहा कि ‘हे प्रभु, अगर आप मेरी पूजा से प्रसन्न हैं तो आप मेरे बदले मेरे पति को वरदान दे दीजिए।
तब भगवान ने राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने कहा, प्रभु अगर आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे एक ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण संपन्न हो, तीनों लोकों में आदरणीय हो, और आपके अलावा वह कभी भी किसी और से पराजित ना हो। तब भगवान ने तथास्तु कहकर वहां से विदा ले ली।
कुछ समय बाद रानी को एक पुत्र हुआ जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। आगे जाकर इन्ही पराक्रमी राजा ने रावण को बंदी बना लिया था। ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को पद्मिनी एकादशी या पुरुषोत्तम एकादशी की व्रत की कथा सुना कर इसके महत्व से अवगत कराया था।
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