अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन संतान की लंबी आयु व मनोकामना के लिए किया जाता है। इस साल यह व्रत 21 अक्टूबर, सोमवार के दिन मनाया जाएगा। यह व्रत पुत्रवती महिलाओं के लिए बहुत ही ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत करने से अहोई माता खुश होती हैं, और बच्चों की सलामती का आशीर्वाद देती हैं। वहीँ कुछ महिलाएं संतान की प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को करती हैं। अहोई अष्टमी के व्रत में माताएं दिन भर उपवास रखती हैं, और शाम के समय तारा देखकर होई का पूजन करती हैं और कथा सुनती हैं। माना जाता है कि अहोई अष्टमी की कथा सुने बिना यह व्रत पूरा नहीं होता। तो चलिए आज आपको इस लेख में अहोई अष्टमी की कथा बताते हैं –
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहूकार था। उसके सात बेटे और एक बेटी थी। साहुकार ने अपने सभी बेटों और बेटी की शादी कर दी थी। हर दिवाली साहूकार की बेटी अपने मायके आती थी। दिवाली पर घर की लीपापोती के लिए साहुकार की सातों बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गईं। उन्हें जाता देख साहुकार की बेटी भी उनके साथ चल पड़ी। साहूकार की बेटी जंगल पहुंच कर मिट्टी काटने लगी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते समय उसके हाथ से कुदाल स्याहु के एक बच्चे को लग गई और स्याहु का एक बच्चा मर गया। इसपर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि जिस तरह तुमने मेरे बच्चे को मार डाला, मैं भी तुम्हारी कोख बांधूंगी।
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स्याहु की बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से विनती करने लगी कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा ले। सबसे छोटी भाभी तैयार हुई और अपनी नन्द के बदले उसने अपनी कोख बंधवा ली। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन के बाद ही मर जाते। सात पुत्रों की मृत्यु होने पर वह बहुत दुखी हुई और उसने पंडित को बुलवाया और इसका कारण पूछा।
पंडित ने उसकी व्यथा सुनी और सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सुरही गाय, छोटी बहु की सेवा से प्रसन्न होती है, और उससे पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है, और मुझसे क्या चाहती है? साहूकार की छोटी बहु ने सुरही गाय को बताया कि स्याहु माता ने उसकी कोख बांध दी है, जिसके बाद वो जब भी बच्चे को जन्म देती वो सात दिनों के भीतर ही मर जाते हैं। अगर आप मेरी कोख खुलवा दें, तो मैं आपका बहुत उपकार मानूंगी।
सुरही गाय उसकी बात मान कर उसे सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले जाने लगी। रास्ते में दोनों थक जाने पर आराम करने लगते हैं। तभी अचानक साहूकार की छोटी बहू देखती है, कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा होता है। वह उस बच्चे को बचाने के लिए सांप को मार देती है। जब गरूड़ पंखनी वहां खून बिखरा हुआ देखती है, तो उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया। अपने बच्चे का हत्यारा समझ वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू उसे समझाती है कि यह खून एक सांप का है, जिसे मारकर मैंने तुम्हारे बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी यह जान बहुत खुश होती है, और सुरही और छोटी बहु दोनों को स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां पहुँचकर छोटी बहू स्याहु की भी बहुत सेवा करती है। छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर स्याहु उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से उसका घर फिर से हरा-भरा हो जाता है। अहोई का एक अर्थ यह भी होता है ‘अनहोनी को होनी बनाना’। जैसे साहूकार की छोटी बहू ने अनहोनी को होनी कर दिखाया। तभी से अहोई अष्टमी का व्रत करने की परंपरा चली।
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