ओणम पर्व को केरल के प्रमुख त्योहारों में से सबसे विशेष माना जाता है। इस साल ये ख़ास पर्व रविवार, 1 सितंबर से शुरू होकर जो शुक्रवार, 13 सितंबर तक चलेगा। हर साल मनाए जाने वाला ओणम का त्यौहार लगभग 13 दिनों तक बहुत धूमधाम और हर्षोउल्लास के साथ खासतौर से फसल काट कर घर लाने की ख़ुशी में मनाया जाता है। इसके साथ ही साथ इस त्यौहार से जुड़ी और भी कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जिसका जिक्र हम इस लेख में करने जा रहे हैं। आइये जानते हैं दस दिवसीय ओणम पर्व पर हर दिन का विशेष महत्व और उसके अगले दो दिन तक किये जाने वाले विधान व उससे जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य भी।
दस दिन तक ऐसे करें ओणम महोत्सव की तैयारी
- प्रथम दिन, जिसे एथम/अथम भी कहते हैं:
- ओणम महोत्सव के प्रथम दिन केरल के लोग सबसे पहले सुबह उठकर स्नान-आदि कर अपने दैनिक क्रिया-कलापों से मुक्त हो जाते हैं।
- जिसके बाद वो पास ही के किसी मंदिर जाकर भगवान की पूजा-आदि करते हुए उनका ध्यान करते हैं।
- इस दिन घरों में सुबह के नाश्ते में विशेषतौर से केले और फ्राइ किए हुए पापड़ का ही सेवन किया जाता है।
- कई लोग इसी भोजन को 13 दिनों तक गृहण करते हैं।
- इस दिन लोग अपने घरों में ओणम की परंपरा को निभाते हुए ओणम पुष्प कालीन बनाते हैं। जिसे पूकलम कहा जाता है।
- दूसरा दिन जिसे चिथिरा कहते हैं:
- ओणम महोत्सव के दूसरे दिन भी लोग पूजा की शुरूआत के साथ अपना दिन शुरू करते हैं।
- इसके बाद घर की महिलाएँ परंपरागत तरीके से पुष्प कालीन में नए पुष्प जोड़ने का कार्य करती हैं।
- इस दौरान घर के पुरुष उन नए फूलों को लेकर आते हैं।
- तीसरा दिन, जिसे चोधी कहा जाता है:
- ओणम उत्सव का तीसरा दिन विशेष होता है, क्योंकि इस दौरान थिरुवोणम यानी ओणम पर्व को बेहतर तरीक़े से मनाने के लिए लोग इस दिन बाज़ारों से ख़रीददारी करते हैं।
- इस दिन ख़रीददारी करना शुभ माना जाता है।
- चौथा दिन, जिसे विसाकम कहा जाता है:
- जन्म पर्व के चौथे दिन केरल राज्य के कई क्षेत्रों में परंपरागत तरीके से फूलों का कालीन बनाने की प्रतियोगिता का आयोजन बड़े स्तर पर किया जाता है।
- वहीं घर की महिलाएँ इस दिन ओणम के अंतिम दिन के लिए अलग-अलग पकवान जैसे: अचार, आलू की चिप्स, केले के पापड़, आदि तैयार करती हैं।
- इन्ही पकवानों को अंतिम दिन लोगों और रिश्तेदारों में बाँटा जाता है।
- पाँचवां दिन, जिसे अनिज़ाम कहते है:
- इस दिन का सबसे मुख्य व ओणम पर्व का केन्द्र बिंदु नौका दौड़ प्रतियोगिता होती है जिसे वल्लमकली भी कहते हैं।
- इस दौरान बड़े स्तर पर नौकाओं की दौड़ लगाई जाती है।
- छटा दिन, जिसे थ्रिकेता कहते हैं:
- ओणम उत्सव के छठे दिन लोगों द्वारा कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन किया जाता ही।
- इस दिन लोग भगवान का शुक्रिया अदा करते हुए नाचते-गाते हैं।
- इसके लिए कई जगहों पर बड़े-बड़े आयोजन भी किये जाते हैं।
- इन कार्यक्रमों में सभी उम्र के लोग, बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक इसमें भाग लेते हैं।
- इसके साथ ही लोग परंपरागत तरीके से एक दूसरे को ओणम पर्व की बधाई भी देते हैं।
- सातवां दिन, जिसे मूलम कहा जाता है:
- ओणम उत्सव के सातवें दिन पर्व को लेकर लोगों में उत्साह अपने चर्म पर होता है।
- इस दिन बाज़ार और घरों को सजाने का कार्य किया जाता है।
- इसके साथ ही लोग इस दिन मेलों और बाज़ारों में जाकर अलग-अलग व्यंजनों का आनंद लेते दिखाई देते हैं।
- घर की महिलाएँ घरों की साफ़-सफाई कर उन्हें अलग-अलग सामग्री और रंगोली से सजाती हैं।
- आठवां दिन, जिसे पूरादम कहा जाता है:
- ओणम के उत्सव के आठवें दिन विशेषतौर पर लोग मिट्टी से निर्मित पिरामिड के आकार में मूर्तियां बनाते हैं।
- इन पिरामिड आकार की मूर्तियों को ‘माँ’ के नाम से संबोधित किया जाता है।
- इसके बाद लोग इस मूर्ति को पूजा स्थान पर स्थापित करते हुए उसपर पुष्प और अन्य पूजा सामग्री अर्पित करते हैं।
- नौवां दिन, जिसे उथिरादम कहा जाता है:
- उत्सव का नौवां दिन प्रथम ओणम के नाम से भी जाना जाता है।
- इस दिन का महत्व लोगों के लिए बेहद हर्षोल्लास और ख़ुशियों भरा होता है।
- इस दिन लोग उत्सुकता के साथ राजा महाबलि का इंतज़ार करते हैं।
- राजा महाबलि के इंतजार में उनका विधिवत पूजन कर सारी तैयारी पूरी कर ली जाती हैं।
- घर की महिलाएँ विशाल पुष्प कालीन को स्वयं अपने हाथ से तैयार करती हैं।
- दसवाँ दिन, जिसे थिरुवोणम कहते हैं:
- पर्व के दसवें दिन ही राजा महाबलि का आगमन होता है।
- इस दौरान लोग एक-दूसरे को ओणम पर्व की बधाई देते हुए उन्हें अलग-अलग स्वादिष्ट पकवान खिलाते हैं।
- इस दिन पुष्प कालीन की साज-सजावट का कार्य किया जाता है।
- घरों में ओणम के पकवानों से थालियों को सजाया जाता है और साध्या को तैयार किया जाता है।
- इस दौरान केरल में जगह-जगह कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
- रात के समय आसमान में जमकर आतिशबाज़ी के साथ लोग इस महापर्व का उत्सव मनाते हैं।
- ओणम उत्सव के दसवें दिन को दूसरा ओणम भी कहा जाता है।
नोट: यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये भी है कि ओणम महाउत्सव थिरुवोणम के बाद भी दो दिनों तक मनाया जाता है अर्थात यह कुल 12 दिनों तक मनाए जाने का विधान है। हालाँकि ओणम पर्व के लिए पहले के 10 दिन का ही विशेष महत्व होता है।
- ग्यारवां दिन, जिसे अविट्टम कहा जाता है:
- इस दिन को तीसरे ओणम के नाम से भी जाना जाता है।
- जिस दौरान लोग अपने राजा की वापसी की तैयारी में लग जाते हैं।
- जिसके लिए रीति-रिवाज अनुसार ओनथाप्पन मूर्ति को नदी अथवा सागर में प्रवाह करते हुए भगवान की विदाई करते हैं।
- इन भगवान की मूर्ति को लोग अपने ग्रहों में पुष्प कालीन के बीच दस दिनों तक रखा जाता है।
- इसके बाद पुष्प कालीन को हटाकर घर की दोबारा साफ़-सफाई की जाती है।
- हालाँकि कुछ लोग इसे थिरुवोणम पर्व के बाद भी 28 दिनों तक अपने घर रखते हैं।
- इस दिन लोग अपना परंपरागत नृत्य पुलीकली नृत्य भी किया जाता है।
- बाहरवां दिन, जिसे चथ्यम भी कहा है:
- इसी दिन के साथ ही ओणम के इस महोत्सव समारोह को एक विशाल नृत्य कार्यक्रम के साथ समाप्त किया जाता है।
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