ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ओंकारेश्वर या ऊँकारेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। पुराणों में वायुपुराण और शिवपुराण में ओंकारेश्वर क्षेत्र के बारे में बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इसी मंदिर में शिव के परम भक्त कुबेर ने तपस्या की थी और शिवलिंग की स्थापना की थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुबेर के स्नान के लिए शिवजी ने अपनी जटा से कावेरी नदी उत्पन्न की थी। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ऊँ के आकार में है इसीलिए इसे ओंकारेश्वर या ऊँकारेश्वर कहा जाता है। माना जाता है कि यहीं ऊँ शब्द की उत्पत्ति भगवान बह्मा के मुख से हुई थी।
ओंकारेश्वर से जुड़ी पौराणिक कथा
ऐसा माना जाता है कि राजा मान्धाता जोकि अनन्य शिव भक्त थे ने नर्मदा नदी के किनारे घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा मान्धाता को दर्शन दिये। शिव के दर्शनों से आनंदित हुए राजा ने शिवजी से नर्मदा के किनारे ही निवास करने का वरदान मांग लिया। उसी समय से यह नगरी ओंकार-मान्धाता के नाम से प्रसिद्ध हो गया। माना जाता है कि भगवान शिव के साथ-साथ यहां 33 करोड़ देवी देवता भी अपने परिवार के साथ रहते हैं।
ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन
भगवान शिव के भक्त नर्मदाजी के घाट पर स्नान करके ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन करने जाते हैं। मंदिर के प्रथम तल पर भगवान शिव का ओंकारेश्वर लिंग विराजमान है। शिवलिंग के चारों ओर पानी भरा होता है। श्रद्धालुओं द्वारा शिवलिंग पर जल एवम् दुग्ध अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही ओंकारेश्वर मंदिर के तीसरे तल पर सिद्धनाथ लिंग, चौथे तल पर गुप्तेश्वर लिंग और पांचवें तल पर ध्वजेश्वर लिंग विराजमान हैं। भक्तगण श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद इन लिंगों का दर्शन भी करते हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का महत्व
प्राचीन शास्त्रों के अनुसार नर्मदा क्षेत्र में ओंकारेश्वर सर्वोत्तम तीर्थ है। माना जाता है कि भले ही कोई तीर्थयात्री सारे तीर्थों की यात्रा कर ले लेकिन जब तक वह किये गये सारे तीर्थों के जल को ओंकारेश्वर में लाकर नहीं अर्पित करता तब तक सारे तीर्थों की यात्रा अधूरी मानी जाती है। ओंकारेश्वर तीर्थ के साथ नर्मदा नदी का भी विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार जमुनाजी में 15 और गंगाजी में 7 दिन के स्नान का जो फल मिलता है वह फल नर्मदा जी के दर्शन मात्र से ही मिल जाता है। यही वजह है कि हिंदू धर्म में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति एक बार ओंकारेश्वर शिवलिंग के दर्शन अवश्य करना चाहता है।
ओंकारेश्वर में विश्राम करते हैं भोलेनाथ
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक मात्र ज्योतिर्लिंग है जहां शिव भगवान शयन करने आते हैं। मंदिर के पुजारियों के मुताबिक शिव भक्त यहां विशेष रुप से भगवान शिव के शयन दर्शन करने आते हैं। मान्यता यह भी है कि भगवान शिव के साथ यहां माता पार्वती भी रहती हैं और वो शिवजी के साथ चौसर पांसे खेलती हैं। शायद यही वजह है कि शयन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के पास चौसर पांसे की बिसात सजाई जाती है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि गर्भग्रह में शयन की आरती के बाद कोई भी नहीं आता लेकिन सुबह पांसे उल्टे मिलते हैं।
भगवान शिव की गुप्त आरती
ओंकारेश्वर मंदिर में महादेव की गुप्त आरती का विधान है। इस गुप्त आरती में मंदिर के पुजारियों के अलावा किसी को भी गर्भगृह में आने की इजाज़त नहीं होती। इस आरती के दौरान मंदिर के पुजारी भगवान शिव की विशेष आरती करते हैं और उनका अभिषेक करते हैं।
ओंकारेश्वर मंदिर में पूजा के नियम
ओंकारेश्वर में हर रोज भगवान शिव की तीन बार पूजा होती है। खास बात यह है कि तीनों समय अलग-अलग पुजारी पूजा करते हैं। संध्या की पूजा होलकर स्टेट के पुजारी द्वारा की जाती है, सुबह की पूजा ट्रस्ट द्वारा की जाती है जबकि दोपहर की पूजा सिंधिया घराने के पुजारी द्वारा की जाती है।
सावन के महीने में बढ़ जाती है भक्तों की संख्या
सावन के माह में हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले कई शिव भक्त ओंकारेश्वर आते हैं और नर्मदा नदी से पात्र में जल भरकर भोले बाबा को अर्पित करते हैं और विधि-विधान से शिवजी की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन और पूर्ण श्रद्धा से जो भी भक्त सावन के महीने में ओंकारेश्वर में जल अर्पित करके शिव की आराधना करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।