पारसी नववर्ष के पहले दिन को नवरोज के रूप में मनाया जाता है। नवरोज या जिसे नवरूज़ भी कहते हैं का यह उत्सव पूरे भारत और विश्व में पारसी समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक बेहद ही महत्वपूर्ण और बड़ा पर्व होता है। नवरूज़ या नवरोज शब्द दो शब्दों को जोड़कर बनाया गया है। ‘नव’ जिसका अर्थ होता है नया और ‘रूज़’ का मतलब होता है दिन, यानी कि नया दिन।
पारसी समुदाय के लोग दो अलग-अलग कैलेंडर के मुताबित साल में दो बार न्यू ईयर मनाते हैं। इस साल जहाँ हिजरी कैलेंडर के मुताबित नवरोज़ 21 मार्च, 2022 को पड़ रहा है वहीं शहनशाही कैलेंडर के अनुसार पारसी नव-वर्ष 16 अगस्त, 2022 को मनाया जायेगा।
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क्यों मनाते हैं नवरोज़?
नवरोज को अच्छे कामों और लोगों से अच्छा बोलने का दिन माना जाता है। इस दिन दीवाली और ईद जैसे अन्य भारतीय त्योहारों की तरह, लोग अपने घरों को साफ करते हैं और सजाते हैं, नए कपड़े खरीदते हैं, और अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इस दिन को उत्सव के रूप में मनाते हैं।
एक साल में दो बार मनाया जाता है नवरोज़/नवरूज़
नवरोज़ सौर हिजरी कैलेंडर के पहले महीने फरवर्डिन की शुरुआत का प्रतीक है, और आमतौर पर पूरे विश्व में 20 या 21 मार्च को मनाया जाता है। इस वर्ष नवरोज़ 21 मार्च, 2022 को मनाया जा रहा है। हालाँकि, यहाँ यह भी समझना और जानना ज़रूरी है कि भारत में, अधिकांश पारसी शहंशाही कैलेंडर का पालन करते हैं, जिसके अनुसार, अगस्त में स्वतंत्रता दिवस के समय नवरोज मनाया जाता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि दूसरा नवरोज़ 16 अगस्त, 2022 को मनाया जायेगा।
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किन देशों में मनाया जाता है नवरोज़/नवरूज़?
पारसी आबादी वाले कई देशों में नवरोज़/नवरूज़ को भव्य पैमाने पर मनाया जाता है, जैसे ईरान, इराक, भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों में।
बात करें भारत में नवरूज़ की तो, भारत में ज्यादातर 16-17 अगस्त के आसपास (जिसमें लीप वर्ष शामिल नहीं होता है) पारसी समुदाय द्वारा शहंशाही कैलेंडर का पालन करते हुए मनाया जाता है। हालाँकि, कुछ लोग इसे मार्च में भी मनाते हैं।
नवरोज़ पर्व की भी खासियत होते हैं इस दिन बनाये जाने वाले कुछ बेहद ही लज़ीज़ और स्वादिष्ट व्यंजन। इस दिन के कुछ पारंपरिक व्यंजन हैं, अकुरी, फालूदा, पात्रा नी मच्छी, धनसक, रावो, साली बोटी और केसर पुलाव।
नवरोज़ पर्व का महत्व
पारसी नव वर्ष पारसी धर्म से जुड़ा है, जिसकी स्थापना प्राचीन ईरान में पैगंबर जरथुस्त्र ने की थी। पारसी धर्म (जरथुस्त्र धर्म) विश्व का अत्यन्त प्राचीन धर्म है। 7वीं शताब्दी में इस्लाम के उदय होने तक, यह फारस का आधिकारिक धर्म माना जाता था, जिसे अब ईरान के नाम से जाना जाता है।
नवरोज का यह ख़ास और खूबसूरत पर्व नए साल की पूर्व संध्या पर शुरू होता है और इसे पटेटी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि सम्राट जमशेद ने लगभग 3,000 साल पहले इस पर्व की शुरुआत की थी। जिस दिन उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव दोनों में दिन और रात की अवधि समान होती है, वसंत विषुव होता है और यही वह दिन होता है जब पटेटी मनाया जाता है।
ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह दिन अगस्त के महीने में आता है। पारसी समुदाय के लोग इस दिन सुख समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य और धन के लिए प्रार्थना करते हैं। इसे अपने पापों के निवारण और पश्चाताप का दिन भी माना जाता है। इस दिन पारसी लोग अपने मन और आत्मा के बुरे कामों और विचारों का त्याग करते हैं और सकारात्मकता, शांति और प्रेम के साथ अपनी आत्माओं को नई दिशा प्रदान करते हैं।
नवरोज को एक ऐसा पवन और पवित्र दिन माना गया है जिस दिन लोग अपने जीवन में स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। इसके अलावा, पारसी मानते हैं कि यह दिन आत्म मोक्ष और प्रायश्चित का एक शानदार अवसर होता है। पारसी नवरोज उत्सव के दौरान लोग अग्नि मंदिर जाते हैं।
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कैसे मनाया जाता है नवरोज़ का यह पर्व?
पारसी समुदाय के लोग नवरोज़ के दिन ढेरों सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इसके अलावा इस दिन दुनिया भर में कई तरह के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इस दिन पारसी लोग कई तरह के पारंपरिक पारसी व्यंजन तैयार करते हैं। नया व्यवसाय का काम शुरू करने के लिए, कुछ नया खरीदने के लिए, नए कपड़े पहनने के लिए, अपने प्रियजनों को तोहफे आदि देने के लिए, और अपनी यथाशक्ति अनुसार दान-पुण्य करने के लिए भी इस दिन का पारसी समुदाय में विशेष महत्व होता है।
इस दिन, न केवल घरों को पूरी तरह से साफ किया और सजाया जाता है, बल्कि अपने दिल और दिमाग में उठ रहे किसी भी तरह के नकारात्मक विचारों और व्यवहारों को अपने जीवन से दूर करने का भी विशेष महत्व बताया गया है।
इस दिन के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान की बात करें तो लोग इस दिन मिलकर शानदार और स्वादिष्ट पारंपरिक पारसी भोजन का लुफ्त उठाते हैं। इस दिन के लज़ीज़ परोसे जाने वाले भोजन में प्रॉन आंगन, मोरी डार, पात्रा नी मच्छी, हलीम, अकुरी, फालूदा, अंबकल्या, धनसक, रावो, साली बोटी, केसर पुलाव और अन्य शामिल हैं।
इस दिन पारसी समुदाय के लोग अपनी सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक पोशाक पहनते हैं और ‘अगियरी’ में जाते हैं, जिसे अग्नि मंदिर भी कहा जाता है। इस शुभ दिन पर, वे अग्नि को फल, चंदन, दूध और फूल चढ़ाते हैं।
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भारत और पाकिस्तान में जुलाई-अगस्त में पारसी नव वर्ष क्यों मनाया जाता है?
भारत और पाकिस्तान में मुख्यतौर पर शहंशाही कैलेंडर का उपयोग किया जाता है जबकि दुनिया भर में वसंत विषुव पर फ़ारसी नव वर्ष मनाने के लिए ईरानी कैलेंडर का उपयोग किया जाता है। क्योंकि शहंशाही कैलेंडर में लीप वर्ष शामिल नहीं होता है, ऐसे में दुनिया भर में मनाए जाने के लगभग 200 दिनों के बाद पारसी नव वर्ष भारत और पाकिस्तान में मनाया जाता है। भारत-पाकिस्तान में यह आमतौर पर जुलाई या फिर अगस्त के महीने में पड़ता है।
इसे फ़ारसी सम्राट जमशेद (जिन्हें पारसी कैलेंडर की स्थापना का श्रेय दिया जाता है) के नाम पर जमशेद-ए-नूरोज़ के नाम से भी जाना जाता है।
नवरोज़/नवरूज़ का यह त्योहार मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, मध्य पूर्व और पाकिस्तान में मनाया जाता है, लेकिन यह भारत में महाराष्ट्र और गुजरात में भी भव्य पैमाने पर मनाया जाता है, जहां इसे क्षेत्रीय अवकाश के रूप में भी मनाया जाता है।
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