देश का वो मंदिर जहां साल में महज पांच घंटे ही खुलते हैं देवी के कपाट

देश का वो मंदिर जहां साल में महज पांच घंटे ही खुलते हैं देवी के कपाट

हमारे देश में कई ऐसे मंदिर आज भी मौजूद हैं जिनके चमत्कारों का जवाब किसी के पास नहीं मौजूद है। ऐसे मंदिर हमारी उस आस्था को मजबूत करते हैं जो यह कहती है कि सृष्टि में कोई दैवीय शक्ति है जो हमें देखती है और हमारा संचालन करती है। आज हम इस लेख में आपको ऐसे ही एक चमत्कारी स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका जवाब 21वीं सदी में भी किसी के पास नहीं है।

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निरई माता

भारत के छतीसगढ़ राज्य के गारियाबंद जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर पैरी नदी के तट पर बसे मोहेरा ग्राम पंचायत में स्थित है निरई की पहाड़ी। इसी पहाड़ी पर स्थित है निरई माता का मंदिर। निरई माता का मंदिर खास इसलिए है क्योंकि जहां दुनिया भर के मंदिरों में माता के दर्शन दिन-रात कभी भी किए जा सकते हैं, वहीं निरई माता के मंदिर के कपाट साल में बस पांच घंटे के लिए ही खुलते हैं और वो भी नवरात्रि के किसी खास दिन। इस दौरान माता के दर्शन का समय सुबह के चार बजे से नौ बजे तक हो सकते हैं। इसके बाद फिर से माता के कपाट बंद कर दिये जाते हैं।

लेकिन निरई माता में लोगों की आस्था है कि इस पांच घंटे के दौरान भी माता के दर्शन के लिए हजारों भक्त उमरते हैं। निरई माता के मंदिर की एक खास बात और है। वो यह की महिलाओं के लिए निरई माता के दर्शन पर मनाही है। महिलाएं न निरई माता के दर्शन करती हैं और न ही यहाँ का प्रसाद खा सकती हैं। मान्यता है कि अगर किसी महिला ने ऐसा किया तो उसके साथ कुछ न कुछ अनिष्ट होगा। निरई माता को सुहाग का समान जैसे कि सिंदूर, बिंदी, अलता आदि भी नहीं चढ़ाया जाता है। यहाँ प्रसाद के रूप में भक्त सिर्फ नारियल और अगरबत्ती ही चढ़ाते हैं।

निरई माता के मंदिर की एक और खास विशेषता है जिसकी वजह से यह मंदिर देश के अद्भुत मंदिरों में से एक माना जाता है। निरई माता के मंदिर के पास हर साल चैत्र नवरात्रि के दौरान रखा एक दीपक स्वयं जल उठता है। खास बात यह है कि यह दीपक नौ दिनों तक लगातार तब तक जलता रहता है जब तक कि चैत्र नवरात्रि खत्म नहीं हो जाये। इस दीपक में न कोई तेल डाला जाता है और न ही किसी प्रकार का ईंधन। दीपक कैसे और क्यों एक खास समय पर प्रज्वलित होता है, यह बात आज तक सभी के लिए रहस्य ही है।

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इस जगह की एक खास बात और है। माता निरई का कोई मंदिर नहीं बना है। आज भी माता खुले स्थान में प्राकृतिक छटा के बीच मौजूद हैं। माता तक पहुँचने का रास्ता भी दुर्गम है लेकिन फिर भी भक्तों की संख्या में कभी कमी नहीं आती। मंदिर स्थल का रख-रखाव वर्षों पहले दान दी गयी जमीन की खेती से प्राप्त होने वाले धन से होता है। मान्यता है कि निरई माता की बुराई करने वाले व्यक्ति या फिर इस स्थल पर शराब पी कर जाने वाले व्यक्ति को माता के कोप का शिकार होना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति पर अचानक ही मधुमक्खियां हमला कर देती हैं। ऐसे में अगर आप इस जगह के आसपास मौजूद हों या फिर जाने की सोच रहे हैं तो निरई माता के दर्शन करने का सौभाग्य अपने हाथों से जाने न दें क्योंकि एक बार माता के दर्शन का सौभाग्य हाथ से निकला तो फिर आपको इस शुभ काम के लिए एक साल का लंबा इंतजार और करना पड़ सकता है।

हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह लेख जरूर पसंद आया होगा। अगर ऐसा है तो आप इस लेख को अपने मित्रों और रिशतेदारों के साथ जरूर साझा करें। निरई माता आपका भला करें। धन्यवाद!