नवरात्रि नवमी तिथि कन्या पूजन महत्व नियम और सावधानियां- यहां पर है सब कुछ!

नवरात्रि नवमी तिथि कन्या पूजन महत्व नियम और सावधानियां- यहां पर है सब कुछ!

चैत्र नवरात्रि का आखिरी दिन अर्थात नवमी तिथि का समापन रामनवमी के साथ किया जाता है। इसी दिन बहुत से लोग अपने व्रत का पारण भी करते हैं। आज अपने इस खास ब्लॉग में जानेंगे नवरात्रि की नवमी तिथि पर माता के किस स्वरूप की पूजा की जाती है, इस दिन रामनवमी का क्या महत्व है, साथ ही जानेंगे इस वर्ष रामनवमी का शुभ मुहूर्त क्या रहने वाला है।

इसके अलावा इस दिन किए जाने वाले उपायों की जानकारी, रामनवमी पारण मुहूर्त की जानकारी और भी बहुत कुछ आपको इस ब्लॉग के माध्यम से जानने को मिलेगा। तो चलिए बिना देरी किए शुरू करते हैं हमारा यह खास ब्लॉग और जान लेते हैं नवमी तिथि से जुड़ी कुछ बेहद दिलचस्प बातों की जानकारी।

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मां सिद्धिदात्री का स्वरूप

सबसे पहले बात करें मां के स्वरूप की तो सिद्धिदात्री देवी के नाम का अर्थ होता है सिद्धि देने वाली देवी। मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों के अंदर की बुराइयों और अंधकार का नाश करके उन्हें ज्ञान के प्रकाश से भरती हैं, उनके जीवन को सुखमय बनाती हैं और उनकी मनोकामना पूरी करती हैं। मां के स्वरूप की बात करें तो माँ सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं और शेर की सवारी करती हैं। देवी की चार भुजाएं होती हैं जिसमें से दाहिने हाथ में उन्होंने गदा लिया हुआ है दूसरे दाहिने हाथ में चक्र है। दोनों बाएं हाथ में शंख और कमल का फूल है। देवी का यह स्वरूप बेहद कोमल है और यह सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाला माना गया है।

मां सिद्धिदात्री की पूजा का ज्योतिषीय संदर्भ

मां सिद्धिदात्री देवी की पूजा के ज्योतिषीय संदर्भ की बात करें तो मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। ऐसे में मां की विधिवत पूजा करने से कुंडली में मौजूद केतू के बुरे प्रभावों को काम किया जा सकता है और केतु से संबंधित शुभ परिणाम व्यक्ति को प्राप्त होते हैं।

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मां सिद्धिदात्री की पूजा महत्व 

मां सिद्धिदात्री की पूजा के महत्व की बात करें तो कहा जाता है कि देवी सिद्धिदात्री सिद्धि देने वाली देवी हैं। इन्होंने खुद भगवान शिव को सिद्धियां प्रदान की हैं। ऐसे में जो कोई भी भक्त सही विधिपूर्वक मां की पूजा करता है उन्हें शुभ फल की प्राप्ति होती है। मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध होने लगते हैं। 

जिन जातकों को नौकरी या व्यापार के संदर्भ में परेशानियां मिल रही होती हैं उन्हें नवरात्रि की नवमी तिथि पर देवी को एक कमल का फूल अर्पित करने की सलाह दी जाती है। साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करना होता है ऐसा करने से आपकी सभी बाधाओं का अंत होता है और व्यक्ति को धन, नौकरी, व्यापार में सफलता मिलती है। मां सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए न केवल देवता बल्कि यक्ष, गंधर्व और ऋषि मुनि भी कठोर तपस्या करते हैं।

मां सिद्धिदात्री को अवश्य लगाएँ ये भोग 

समस्त सिद्धियां को देने वाले देवी के भोग की बात करें तो देवी को हलवा, पूरी और चने का भोग अवश्य लगाना चाहिए। इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। ऐसे में कन्या पूजन और मां की पूजा के बाद प्रसाद ब्राह्मणों में अवश्य बांटें। ऐसा करने से माँ प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

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देवी सिद्धिदात्री का पूजा मंत्र

ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥

प्रार्थना मंत्र

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

चैत्र नवरात्रि पारणा मुहूर्त 

जैसा कि हमने पहले भी बताया कि बहुत से लोग नवरात्रि की नवमी तिथि के दिन व्रत का पारणा करते हैं। ऐसे में अगर आपको भी व्रत के पारण का समय जानना है तो नई दिल्ली के हिसाब से चैत्र नवरात्रि व्रत का पारण का समय रहेगा:  

17 अप्रैल, 2024 (बुधवार)

नवरात्रि पारणा का समय :15:16:24 के बाद से

हालांकि अगर आप किसी और शहर में रहते हैं और आप अपने शहर के अनुसार इस दिन का शुभ मुहूर्त जानना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

नवरात्रि की नवमी तिथि को रामनवमी भी कहा जाता है। ऐसे में अगर बात करें रामनवमी के शुभ मुहूर्त की तो इस साल रामनवमी 17 अप्रैल 2024 बुधवार के दिन है और मुहूर्त

 रामनवमी मुहूर्त :11:03:18 से 13:38:21 तक

अवधि :2 घंटे 35 मिनट

रामनवमी मध्याह्न समय :12:20:50

हालांकि ऊपर दिया गया मुहूर्त नई दिल्ली के लिए मान्य है अगर आप अपने शहर के अनुसार इस दिन का शुभ मुहूर्त जानना चाहते हैं तो आप इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं

बेहद खास है इस साल की रामनवमी: इन चार राशियों को मिलेगा विशेष परिणाम 

रामनवमी अर्थात अधर्म पर धर्म को स्थापित करने का दिन। यह दिन भगवान श्री राम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। प्रभु श्री राम भगवान विष्णु के मानव अवतार माने जाते हैं। इसके अलावा आपकी जानकारी के लिए बता दें चैत्र नवरात्रि का समापन रामनवमी से होता है। इस साल की रामनवमी इसलिए भी खास मानी जा रही है क्योंकि इस पूरे ही दिन रवि योग रहने वाला है। 

कहा जाता है कि अगर इस योग में कोई भी पूजा की जाए या नया काम शुरू किया जाए तो इससे सिद्धि प्राप्त होती है। इसके अलावा यह रामनवमी विशेष रूप से कुछ राशि के जातकों के लिए विशेष रूप से खास रहने वाली है। कौन सी है ये राशियाँ चलिए जान लेते हैं। 

रामनवमी पर इन राशियों को मिलेगा प्रभु श्री राम का विशेष आशीर्वाद

  • मीन राशि: पहली जिस राशि की हम यहां बात करने जा रहे हैं वह है मीन राशि। मीन राशि के बारे में कहा जाता है कि ये प्रभु श्री राम की सबसे प्रिय राशि होती है। इस राशि का स्वामी है गुरु बृहस्पति जिनका संबंध विष्णु जी से होता है। ऐसे में इस रामनवमी पर मीन राशि के जातकों को अपने जीवन में धन और समृद्धि प्राप्त होने वाली है।
  • कर्क राशि: दूसरी जिस राशि के लिए यह रामनवमी बेहद ही खास है वह है कर्क राशि। कर्क राशि के जातकों पर भी प्रभु श्री राम की कृपा हमेशा बनी रहती है। इस साल मुमकिन हो तो भगवान श्री राम को खीर का भोग अवश्य लगाएँ। इससे आपके सौभाग्य में वृद्धि होगी और समाज में मान सम्मान बढ़ेगा।
  • वृषभ राशि: तीसरी जिस राशि की हम यहां बात करने जा रहे हैं वह है वृषभ राशि। वृषभ राशि को भी भगवान राम की पसंदीदा राशियों में से एक माना गया है। रामनवमी के दिन इस राशि के जातक रामष्टक का पाठ करें इससे आपके सभी बिगड़े और रुके हुए काम बनेंगे और मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति से लड़ने की शक्ति मिलेगी।
  • तुला राशि: चौथी और आखिरी जिस राशि के लिए यह रामनवमी बेहद ही खास रहने वाली है वह है तुला राशि। तुला राशि के जातकों पर भी भगवान राम की विशेष कृपा देखने को मिलती है। ऐसे में इस रामनवमी पर आप राम भगवान को पीले रंग के वस्त्र, नारियल भेंट करें। इससे आपको आर्थिक लाभ मिलेगा साथ ही किसी तरह की शारीरिक परेशानी से छुटकारा मिलेगा।

नवरात्रि के नौवें दिन अवश्य करें यह अचूक उपाय

  • अगर आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ गई है तो नवरात्रि के आखिरी दिन आप देवी दुर्गा की पूजा में कपूर अवश्य जलाएं। ऐसा करने से घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा पलक झपकते ही दूर हो जाती है। साथ ही घर से दुर्भाग्य भी दूर होता है। 
  • नवरात्रि की नवमी तिथि के दिन गाय के दूध से बने शुद्ध घी का दीपक जलाकर मां की पूजा करें। ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन में धन्य धान्य का सुख बना रहता है। 
  • देवी दुर्गा की पूजा में पान का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसे में आप देवी दुर्गा को पान अवश्य अर्पित करें। ऐसा करने से देवी मनचाहा आशीर्वाद व्यक्ति को प्रदान करती हैं। 
  • अगर आपके जीवन में सुख सौभाग्य की कमी नजर आ रही है या फिर विवाह में देरी हो रही है तो नवरात्रि के आखिरी दिन माता रानी को पीले कपड़े में हल्दी की गांठ चढ़ा दें। ऐसा करने से आपके जीवन से दुर्भाग्य दूर होगा और सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलेगा। 
  • इसके अलावा कन्या पूजन को भी एक विशेष कारगर उपाय माना गया है। आप अगर 9 दिन तक देवी की पूजा अर्चना नहीं कर पा रहे हैं तो केवल अष्टमी, नवमी का व्रत रख लें और कन्याओं को भोजन करा दें। कन्या पूजन में उन्हें पूरी, चने, हलवे अवश्य खिलाएँ। ऐसा करने से देवी आप पर अवश्य प्रसन्न होती है और आपके जीवन पर उनका आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। साथ ही आपके अटके हुए काम भी पूरे होने लगते हैं। 

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क्या यह जानते हैं आप? 

महानवमी पर हवन का महत्व जानते हैं आप? कहा जाता है नवरात्रि में देवी दुर्गा के लिए अगर हवन किया जाए तो तभी व्रत और पूजा संपन्न होती है। हवन के धुएं से व्यक्ति के जीवन में संजीवन शक्ति का संचार होता है। इससे व्यक्ति बीमारियों से छुटकारा पाने में सफल होता है। हवन कुंड के लिए कुंड में आम की पत्तियाँ रखी जाती हैं। इसके बाद कुंड पर स्वास्तिक बनाया जाता है और फिर पूजा की जाती है। इसके बाद अग्नि जलाई जाती है और हवन कुंड में फल, शहद इत्यादि पदार्थ का मंत्रोच्चार के साथ आहुति दी जाती है।

नवरात्रि में आखिर क्यों कराया जाता है कन्या पूजन?

कन्या पूजन से संबंधित कई तरह के सवाल होते हैं। बहुत से लोग जानना चाहते हैं कि आखिर कन्या पूजन क्यों कराया जाता है और कन्या पूजन में एक बालक क्यों आवश्यक होता है? तो चलिए आपके इन्ही सवालों का जवाब जान लेते हैं। 

सबसे पहले बात करें कन्या पूजन की तो कहा जाता है कन्या पूजन के बिना नवरात्रि की पूजा अधूरी होती है इसीलिए कन्या पूजन कराया जाता है। इसे बहुत सी जगह पर कंजक पूजा या कुमारी पूजा भी कहते हैं। बिना कंजक पूजा के नवरात्रि का फल व्यक्ति को नहीं मिलता है। 

बालक पूजा में आवश्यक क्यों होता है? दरअसल छोटी कन्याओं को मां का स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। साथ ही बहुत से लोग एक या फिर दो बालक भी कन्या पूजन में शामिल करते हैं। यह बालक काल भैरव का स्वरूप माना जाता है और एक को गणेश भगवान का रूप माना जाता है। भगवान गणेश की पूजा के बिना कोई भी पूजा अधूरी होती है और भैरव माता रानी के पहरेदार होते हैं जिन्हें लांगुरिया भी कहते हैं और इसी वजह से इन्हें पूजा में शामिल अवश्य कराया जाता है। 

इनका नियम सरल है जिस तरह से आप कन्याओं को भोजन कर रहे हैं इस तरह से आपको लंगूर को भी भोजन कराना है और अंत में उन्हें भी दक्षिणा और लोहफ़े देकर के विदा करना होता है तभी व्रत सफल होता है और मां का आशीर्वाद जीवन में बना रहता है।

कन्या पूजन में हर वर्ष की कन्या का होता है अलग महत्व

कन्या पूजन के लिए 2 से लेकर 10 वर्ष की कन्याओं को बेहद उपयुक्त माना जाता है। आपको जानकर शायद अचरज हो लेकिन इन सभी कन्याओं का अलग-अलग महत्व होता है जैसे, 

2 वर्ष की कन्या का पूजन किया जाए तो इससे घर से दुख और दरिद्रता दूर होती है। 

3 वर्ष की कन्या का पूजन किया जाए तो इससे त्रिमूर्ति का रूप माना जाता है इससे व्यक्ति का धन-धान्य भरा रहता है और परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है।

4 साल की कन्याओं को कल्याणी माना गया है और उनकी पूजा करने से परिवार का कल्याण होता है। 

5 वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी का पूजा करने से व्यक्ति रोग मुक्त रहते हैं। 

6 साल की कन्या को कालिका माना जाता है। कालिका रूप की पूजा करने और भोजन करने से व्यक्ति को विजय, विद्या और राजयोग प्राप्त होता है। 

7 वर्ष की कन्या को चंडिका माना जाता है। इनकी पूजा करने से घर में ऐश्वर्या की प्राप्ति होती है। 

8 वर्ष की कन्या को शांभवी कहा जाता है। इनकी पूजा करने से किसी भी तरह के विवाद से छुटकारा मिलता है। 

9 साल की कन्याओं को मां दुर्गा का रूप माना जाता है और उनकी पूजा करने से शत्रु का नाश होता है। 

10 साल की कन्या सुभद्रा कहलाती है और उनकी पूजा करने से भक्तों के मन की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

कन्या पूजन के नियम

इस बात का रखें विशेष ख्याल वरना निष्फल हो जाता है 9 दिन का व्रत:

  • घर आई कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। इसमें गलती से भी इनका अनादर न करें, इन्हें डांटे नहीं, इन्हें कोई भी अपशब्द ना बोलें और किसी भी कन्या में कोई भेदभाव ना करें अन्यथा आपके व्रत का फल नहीं प्राप्त होता है। 
  • किसी को भोजन जबरदस्ती ना खिलाएँ। 
  • कन्याओं को पहले ही निमंत्रण दें और उन्हें आदर सत्कार के साथ घर में बुलाकर उन्हें भोजन कराएं।
  • पूर्व की दिशा में उनका मुख करके उन्हें टीका करें, उन्हें लाल चुनरी ओढ़ाएँ और फिर भोजन कराएं।
  • भोजन झूठ ना करें। 
  • भोजन हमेशा सात्विक बना होना चाहिए। इसमें लहसुन, प्याज का इस्तेमाल न करें। 
  • भोजन के बाद कन्याओं को अपने हिसाब से दान दक्षिणा देकर इन से विदा लें और उसके बाद अपने व्रत का पारण करें।

इन लोगों को विशेष रूप से करनी चाहिए मां सिद्धिदात्री की पूजा 

जिन लोगों को अपने जीवन में सिद्धि की कामना हो, जिनके विवाह में विलंब हो रहा हो, जिनके जीवन में नकारात्मक बढ़ गई हो या कुंडली में केतु ग्रह परेशानी की वजह बन रहा हो उन्हें विशेष रूप से माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने की सलाह दी जाती है।

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मां सिद्धिदात्री से संबंधित पौराणिक कथा 

बात करें पौराणिक कथा की तो कहा जाता है कि भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या करने के बाद 8 सिद्धियां प्राप्त की थी। मां सिद्धिदात्री की ही कृपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हो गया था और वह अर्धनारीश्वर कहलाए थे। मां का यह स्वरूप अन्य सभी स्वरूपों की तुलना में सबसे ज्यादा शक्तिशाली कहा जाता है। 

मां दुर्गा का यह स्वरूप सभी देवी देवताओं के तेज से प्रकट हुआ है। कहा जाता है कि जब महिषासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देव महादेव और भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे थे तब सभी देवता गण के अंदर से एक तेज उत्पन्न हुआ और इस तेज से एक दिव्य शक्ति का निर्माण हुआ जिसे मां सिद्धिदात्री कहा गया। इन्होंने ही दैत्य महिषासुर का अंत करके सभी को इसके आतंक से मुक्त कराया था।

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