शनिवार 17 अप्रैल यानी आज के दिन नवरात्रि का पांचवा दिन है। नवरात्रि के पांचवें दिन माँ स्कंदमाता की पूजा का विधान बताया गया है। स्कन्द कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण माँ का नाम स्कंदमाता पड़ा। कहा जाता है कि, जो कोई भी इंसान माँ स्कंदमाता की विधिवत पूजा करता है उसकी सभी मनोकामना पूरी होने के साथ-साथ मृत्यु के बाद मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
तो आइये इस विशेष आर्टिकल में जानते हैं स्कंदमाता का स्वरूप कैसा है? मां की पूजा का महत्व क्या होता है? इससे संबंधित व्रत कथा क्या कहती है और साथ ही जानते हैं नवरात्रि के पांचवे दिन से संबंधित मंत्र की संपूर्ण जानकारी।
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कैसा है मां स्कंदमाता का स्वरूप?
शेर पर सवारी करने वाली स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। देवी ने अपने दो हाथों में कमल धारण किया है, एक हाथ अभय मुद्रा में है और दूसरे हाथ में कार्तिकेय भगवान को लिया हुआ है। कहा जाता है जो कोई भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ मां स्कंदमाता की पूजा करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा मां की विधिवत पूजा करने से संतान योग भी प्रबल होता है।
स्कंदमाता की पूजन विधि
- नवरात्रि के पांचवे दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें।
- इसके बाद पूजा की चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
- इसके बाद मूर्ति को गंगाजल से शुद्ध करके पूजा प्रारंभ करें।
- मां को रोली, कुमकुम, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें।
- इस दिन की पूजा में दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा भी पढ़ें।
- पूजा पूरी होने के बाद मां की आरती उतारें और सभी लोगों में प्रसाद वितरित करें।
इस दिन की पूजा में शामिल करें ये मंत्र
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां स्कंदमाता की पूजा का महत्व
ज्योतिषी मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, मां दुर्गा का यह स्वरूप यानी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। ऐसे में यदि आप विधिवत तरीके से स्कंदमाता की पूजा करते हैं तो आप के जीवन से बुध ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर है या फिर कम किया जा सकता है। इसके अलावा आप चाहे तो इस दिन सफेद रंग के वस्त्र धारण करके मां की पूजा अर्चना करें। ऐसा करने से व्यक्ति का शरीर निरोगी बना रहता है।
स्कंदमाता से संबंधित व्रत कथा
मां स्कंदमाता से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि, एक समय में तारकासुर नाम का राक्षस हुआ करता था। उसने कठोर तपस्या की और ब्रह्म देव को प्रसन्न कर लिया। ऐसे में ब्रह्मदेव ने उसे वरदान मांगने को कहा। तब उसने अमर होने का वरदान मांगा। हालांकि ब्रह्मा जी ने उन्हें समझाया कि पृथ्वी पर जो भी जन्म लेता है उसे मरना अवश्य पड़ता है। ऐसे में तारकासुर ने सोचा कि क्योंकि भगवान शिव तपस्वी हैं तो ऐसे में वह शादी तो करेंगे नहीं।
तब उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि अगर मेरी मृत्यु हो तो भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही हो। तब ब्रह्माजी ने उसके वरदान पर तथास्तु कह दिया। इसके बाद तारकासुर का उत्पात हद से ज्यादा बढ़ गया। वह लोगों को परेशान करने लगा और दुनिया में तबाही मचाने लगा। तब सभी देवी देवता भगवान शिव के पास पहुंचकर उनसे विवाह करने का आग्रह करने लगे।
तब भगवान विष्णु ने मां पार्वती से विवाह किया। जिसके बाद उन्हें पुत्र के रूप में कार्तिकेय भगवान की प्राप्ति हुई। कार्तिकेय ने ही बड़े होकर तारकासुर का वध किया और लोगों को उसके प्रकोप से बचाया।
अधिक जानकारी: पर्वतराज की बेटी होने की वजह से मां का एक नाम पार्वती है। भगवान शिव की पत्नी होने के कारण इनका एक नाम महेश्वरी भी कहा जाता है। मां को अपने पुत्र से बेहद प्रेम है इसलिए मां का नाम स्कंदमाता पड़ा। इसके अलावा कमल के फूल पर विराजित होती है जिसके चलते मां का नाम पद्मासना देवी भी पड़ा।
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