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नवरात्रि चौथा दिन, कूष्माण्डा देवी : 20 अक्टूबर 2020 (मंगलवार)!
नवरात्रि के चौथे दिन पवित्र मन से देवी कूष्माण्डा की पूजा-आराधना करना चाहिए। इनकी पूजा से भक्तों के रोगों का नाश होता है और आयु, यश, बल व आरोग्य की प्राप्ति होती है। देवी कूष्माण्डा सच्चे मन से की गयी सेवा और भक्ति से प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। यदि नवरात्रि के चौथे दिन विधि-विधान से भक्त पूजा करे, तो कम समय में ही माता की कृपा मिलती है और देवी उसे सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। जो व्यक्ति अधिकांश समय दुखों, विपदाओं और कष्टों से गिरा रहता है, उसे सभी कष्ट और दुख को समाप्त करने के लिए मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना ज़रूर करनी चाहिए और इसके लिए आपको माता कूष्माण्डा की सही पूजा विधि, मंत्र, भोग और उन्हें प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि के चौथे दिन की जानें वाली पूजा की सही जानकारी होनी चाहिए। तो चलिए आपको इस लेख के माध्यम से ये सभी जानकारी देते हैं-
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नवरात्रि चतुर्थी पूजा मुहूर्त
आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 19 अक्टूबर दिन सोमवार, दोपहर 02 बजकर 11 मिनट से हो रहा है, जो 20 अक्टूबर दिन मंगलवार को प्रातः 11 बजकर 21 मिनट तक है। ऐसे में मां कूष्माण्डा की पूजा-अर्चना मंगलवार की सुबह होगी।
माँ का नाम कूष्माण्डा क्यों पड़ा?
सबसे पहले अगर बात करें कूष्माण्डा देवी के नाम के अर्थ की तो, कूष्माण्डा एक संस्कृत शब्द है, जो कई शब्दों से मिलकर बनता है- जैसे, कू जिसका अर्थ होता है छोटा, ऊष्मा का मतलब होता है ऊर्जा, और अण्डा जिसका मतलब होता है अण्डा। इसके अलावा माता को कुम्हड़े की बलि प्रिय होती है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहा जाता है, इसलिए माँ दुर्गा के इस स्वरूप को देवी कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है। देवी दुर्गा के कूष्माण्डा स्वरूप की पूजा करने से भक्तों को जीवन में धन, सुख-शांति और वैभव की प्राप्ति होती है।
ऐसा है माँ कूष्माण्डा का स्वरूप
नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान है। अगर कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की बात करें तो आठ भुजाओं वाली इस देवी को “अष्टभुजा देवी” भी कहा जाता है। देवी ने अपने सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा धारण किया है और इन्होंने आठवें हाथ में जाप के लिए माला ली हुई है। कूष्माण्डा देवी सिंह के आसन पर विराजमान हैं। माता के बारे में यह कहा जाता है कि वो सूर्यमण्डल के अंदर निवास करती हैं, इसलिए सूर्यमण्डल के अंदर यदि कोई वास्तव में रहने की क्षमता दिखा सकता है तो वो सिर्फ और सिर्फ देवी कूष्माण्डा ही हैं। शास्त्रों के अनुसार माता कूष्माण्डा ही सूर्य देव को दिशा व ऊर्जा देती हैं। देवी दुर्गा ने असुरों का संहार करने के लिए कूष्माण्डा स्वरूप को धारण किया था।
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मां कूष्माण्डा की पूजा में करें इस मंत्र का जाप
देवी कूष्माण्डा की पूजा के दौरान इन मंत्रों का जाप ज़रूर करें, इससे माता जल्द ही प्रसन्न होती है।
मंत्र 1 – ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः |
मंत्र 2 – सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।। |
बीज मंत्र – ऐं ह्री देव्यै नम:। |
इस रंग का वस्त्र पहनकर करें माँ कूष्माण्डा की पूजा
नवरात्रि के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी की पूजा में रंगों का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि माता का निवास स्थान सूर्यमंडल के बीच में होता है। कूष्माण्डा देवी को प्रकृति की देवी भी कहा जाता है, इसलिए हरा रंग इनके लिए खास बताया गया है। यानि कि यदि आप देवी की पूजा हरे रंग के वस्त्र पहनकर करते हैं, तो इससे आपकी सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी अवश्य होती है। शास्त्रों में कहा गया है कि कूष्माण्डा देवी ने पहले स्वयं ही सृष्टि की रचना की और फिर अंत में उन्होंने इस सृष्टि को खुद अपने अंदर समाहित कर लिया।
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ऐसे करें देवी कूष्माण्डा की पूजा
- नवरात्रि के चौथे दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें, और हरे रंग का साफ़ वस्त्र पहन लें।
- अब स्नान के बाद सबसे पहले कलश की पूजा करने का नियम बताया गया है।
- इसके बाद देवी कूष्माण्डा का ध्यान करें और हरे रंग के आसन पर बैठकर देवी की पूजा करें।
- देवी कूष्माण्डा को धूप, गंध, अक्षत्, लाल फूल, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान इत्यादि अर्पित करें।
- माता कूष्माण्डा को फल इत्यादि का भोग लगाएं। इसके अलावा देवी को मालपुए,हलवा और दही का भोग लगाएं।
- पूजा के अंत में मां कूष्मांडा की आरती और इस मंत्र, “सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे” का जाप अवश्य करें और अपने घर परिवार की खुशियों की मंगल कामना करें।
- पूजा के बाद प्रसाद को सभी में वितरित करें और सब से आशीर्वाद लें।
देवी कूष्माण्डा की पूजा से होने वाले लाभ
देवी कूष्माण्डा के व्रत और पूजन से जातक के अंदर से सभी प्रकार का भय दूर होता है। देवी साधकों का रोग, शोक आदि दूर करती हैं और उन्हें लंबी उम्र, यश, बल व बुद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। माँ कूष्माण्डा के बारे में कहा जाता है कि अगर कोई थोड़ी सी ही, लेकिन उनकी सच्ची सेवा करे, तो वो उसमें ही बहुत ज्यादा प्रसन्न हो जाती हैं। ऐसे में सोचिए कि जो इंसान सच्ची श्रद्धा से माता का उपासक ही बन जाए, तो माता रानी उसे कितना ज्यादा फल देंगी। अगर कोई व्यक्ति लगातार कड़ी मेहनत कर रहा, उसके बाद भी उसे मनोवांछित फल नहीं मिल रहा है, तो उसे कूष्माण्डा देवी की पूजा ज़रूर करनी चाहिए। इससे साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति शीघ्र ही होती है। माँ कूष्माण्डा सूर्य का मार्गदर्शन करती हैं। इसीलिए इनकी पूजा से सूर्यग्रह के दुष्प्रभावों से भी बचा जा सकता है।
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