हिन्दू धर्म के अनुसार वैसे तो साल में तीन बार नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है, जिसमें से शारदीय नवरात्रि को बेहद प्रमुख माना जाता है। हर साल चैत्र नवरात्रि, गुप्त नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि मनाई जाती है। विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि के दौरान दुर्गा माँ के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस त्यौहार का हर एक दिन विशेष माना जाता है और हर दिन देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। आज हम आपको खासतौर से शारदीय नवरात्र की प्रमुख तिथि और देवी के विभिन्न रूपों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं आस्था और विश्वास के इस पर्व से जुड़ी कुछ गूढ़ बातों को।
कब से है नवरात्रि की शुरुआत
आपको बता दें कि इस साल नवरात्रि 29 सितंबर से आरंभ होकर 8 अक्टूबर को समाप्त होगी। हिन्दू धर्म में मुख्य रूप से इस त्यौहार को बेहद ख़ास माना जाता है। नवरात्र के पहले दिन यानि की 29 सितंबर को घटस्थापना की जायेगी और अगले नौ दिनों तक विधि पूर्वक देवी के विभिन्न रूपों के पूजा का संकल्प लिया जाएगा। इस त्यौहार को मुख्य रूप से बंगाल और उत्तर भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है। बंगाल और बिहार में नवरात्रि के नौ दिनों तक पंडाल लगाकर देवी की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है और दसवें दिन उन्हें विसर्जित किया जाता है।
नवरात्रि के नौ दिन विधि पूर्वक करें देवी के विभिन्न रूपों की आराधना
पहला दिन
बता दें कि नवरात्रि के पहले दिन खासतौर से दुर्गा माता के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। इस दिन विशेष रूप से दुर्गा सप्तसती का पाठ और कुंवाड़ी कन्याओं को भोजन करवाना विशेष फलदायी माना जाता है। आज के दिन देवी शैलपुत्री के मंत्रों का जाप करना बेहद ख़ास माना जाता है।
“ वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।”
दूसरा दिन
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है। इस दिन विधि पूर्वक माता की पूजा अर्चना कर उनके मंत्रों का जाप करें।
“ दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। “
तीसरा दिन
दुर्गा पूजा के तीसरे दिन विशेष रूप से देवी के चंद्रघंटा स्वरुप की पूजा की जाती है। आदिशक्ति माँ दुर्गा के इस स्वरुप को बेहद ख़ास माना जाता है। इस दिन माँ के इस मंत्र का जाप जरूर करें।
“पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।”
चौथा दिन
इस दिन माँ के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। नवरात्रि के चौथे दिन माँ के इस रूप की षोडशोपचार से पूजा की जानी चाहिए। इस दिन माता के इस मंत्र का जाप जरूर करें।
“सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥”
पांचवां दिन
नवरात्रि का पांचवां दिन दुर्गा माँ के स्कंदमाता स्वरुप की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन विधि पूर्वक माँ की पूजा अर्चना की जानी चाहिए और उनके ख़ास मंत्र का जाप भी अवश्य करना चाहिए।
“सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ “
छठा दिन
इस दिन माँ दुर्गा के कात्यायनी रूप की पूजा की जाती है। इस दिन भी विशेष रूप से पहले दिन की तरह दुर्गा सप्तसती का पाठ करना लाभकारी माना जाता है। साथ ही माता कात्यायनी के मंत्रों का जाप भी जरूर किया जाना चाहिए।
“ चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी॥ “
सातवां दिन
नवरात्रि के सातवें दिन दुर्गा माँ के कालरात्रि स्वरुप की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन दुर्गा चालीसा के साथ-साथ दुर्गा सप्तसती का पाठ करना आवश्यक माना जाता है। साथ ही माता के मंत्रों का जाप भी जरूर किया जाना चाहिए।
“ एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥ “
आठवां दिन
इस दिन माँ दुर्गा के महागौरी स्वरुप की पूजा की जाती है। इस दिन खासकरके कुंवाड़ी कन्याओं को भोजन करवाना और माता के विशेष मंत्रों का जाप करना ख़ासा लाभकारी माना जाता है।
“श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥ “
नवम दिन
नवरात्रि के नवम दिन को सबसे ख़ास माना जाता है। इस दिन नवमी या महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माता के सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजा की जाती है। साथ ही माता सिद्धिदात्री के मंत्र का जाप करना ख़ास माना जाता है।
“ सिद्धगंधर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि। सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥ “