15 अगस्त को देश भर में लोग आज़ादी का जश्न मनाते हैं। स्वतंत्रता दिवस के दिन विशेष रूप से सभी भारतवासियों का सिर तिरंगे के सामने गर्व के साथ खड़ा हो जाता है। भारत में आज़ादी के दिन को एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है और अमूमन सभी सरकारी संस्थानों, स्कूल और कॉलेजों में इस दिन तिरंगा फहराया जाता है। आज से पहले शायद ही कभी आपने ऐसा सुना हो या देखा हो की किसी मंदिर पर झंडा फ़हराया गया हो। जी हाँ आज हम आपको इस लेख के माध्यम से एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ शान से आज़ादी का जश्न मनाया जाता है और मंदिर के शीर्ष पर झंडा फ़हराया जाता है। आइये जानते हैं कि आखिर कौन सा है ये मंदिर जहाँ ईश्वर भक्ति के साथ ही देश भक्ति का भी अनोखा संगम देखने को मिलता है।
झारखण्ड स्थित इस मंदिर पर शान से लहराता है तिरंगा
आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं वो असल में झारखंड के रांची में स्थित पहाड़ी मंदिर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विश्व प्रसिद्ध है ये मंदिर, माना जाता है कि आज़ादी से पहले बने इस मंदिर में अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी की सजा दी जाती थी। ऐसी मान्यता है कि भारत को आज़ादी मिलने के बाद रांची में सबसे पहले इसी मंदिर पर तिरंगा फहराया गया था। बता दें कि उस समय झारखण्ड राज्य नहीं बना था और ये बिहार के अंतर्गत आता था। बिहार के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक श्री कृष्ण चंद्र दास ने सबसे पहले आज़ादी मिलने के बाद रांची के इसी मंदिर पर तिरंगा फ़हराया था। तब से लेकर आज तक हर साल यहाँ झंडा फ़हराया जाता है।
यहाँ शिव भक्ति के साथ देशभक्ति का भी रंग देखने को मिलता है
बता दें कि रांची के इस पहाड़ी मंदिर में शिव जी की पूजा अर्चना की जाती है और साथ ही हर साल यहाँ गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लोग एकत्रित होकर झंडा भी फहराते हैं। वाकई में ईश्वर भक्ति के साथ देश भक्ति का ऐसा नजारा आपने आज तक नहीं देखा होगा। इस मंदिर की विशेषता कि बात करें तो यहाँ दूर-दूर से शिव भक्त शिव जी के दर्शन के लिए आते हैं और उन्हें शिव दर्शन करने के लिए करीबन चार सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में भक्त अपनी जो भी मुराद लेकर आते हैं भोले बाबा उसे जरूर पूरा करते हैं।
इस मंदिर से जुड़े इन रोचक तथ्यों को भी जान लें
माना जाता है कि भगवान् शिव के इस मंदिर को आज़ादी से पहले ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने फांसी देने का स्थान बना लिया था। इस वजह से इस मंदिर को पहले फांसी गरी के नाम से भी जाना जाता था। अंग्रेजों के शासन काल में यहाँ अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गयी, उनमें से बहुतों के नाम आज भी इस मंदिर के दीवारों पर अंकित हैं। यहाँ पूजा अर्चना के लिए आने वाले भक्त शिव जी की पूजा के साथ ही कुछ क्षण शहीदों का भी नमन करते हैं।