कर्नाटक में स्थित मैसूर नगर पर्यटन के लिए बेहद प्रसिद्ध है और यहाँ मनाया जाने वाला दशहरा पर्व दुनियाभर में अपनी एक ख़ास पहचान बनाए हुए है। मैसूर के दशहरे को दुनियाभर से लोग देखने को आते हैं। इस दहशरे में आपको धार्मिक पक्ष के अलावा मैसूर की शाही परंपरा की झलक भी दिखाई देती है। मैसूर पैलेस, जो कि इस नगर का मुख्य आकर्षण का केन्द्र है उसे दशहरे के दिन ख़ूबसूरत तरीक़े से सजाया जाता है। इसके साथ ही शोभा यात्रा एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
कब होता है दशहरा पर्व?
मैसूर में दशहरा पर्व का आयोजन शारदीय नवरात्रि के समय होता है। यह पर्व नवरात्रि के पहले दिन से शुरु हो जाता है और दस दिनों तक चलता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, दशहरा पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। दशमी तिथि इस पर्व का आख़िरी दिन होता है, इसे विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। वर्ष 2019 में यह तिथि 8 अक्टूबर को पड़ रही है। इस त्यौहार में देश-विदेश से आए लाखों पर्यटक हिस्सा लेते हैं।
मैसूर में होने वाले दशहरा पर्व की विशेषता
हिन्दू मान्यता के अनुसार, दशहरा पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। पौराणिक कथा के अनुसार, इसी दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। साथ ही विजयादशमी के दिन आततायी रावण का वध भी भगवान श्री राम ने किया था। यह दशहरा पर्व मनाने का पौराणिक महत्व है और इस पौराणिक महत्व को दशहरा के समय मंचन के माध्यम से देशभर में बताया जाता है। लेकिन सवाल तो ये है कि मैसूर का दशहरा क्यों ख़ास है और इसकी क्या विशेषता है।
मैसूर के दशहरे में दिखती है शाही परंपरा की झलक
इतिहास को खंगाले तो यह मालूम पड़ता है कि मैसूर दशहरा का आयोजन सबसे पहले 1610 में किया गया था। हालांकि इसकी शुरुआत 15वीं शताब्दी में दक्षिण भारत के शक्तिशाली साम्राज्य विजयनगर ने की थी। दशहरा पर्व ने ही विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में एक अहम भूमिका अदा की थी। कई इतिहास कारों का मानना है कि मैसूर का दशहरा पर्व सबसे प्रमुख पर्वों में से एक था।
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महिषासुर के नाम से जुड़ा है मैसूर नगर
ऐसी मान्यता है कि मैसूर नगर महिषासुर के नाम पर ही रखा गया था। पौराणिक कथा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि महिषासुर के पिता असुरों के प्रमुख थे। उन्हें जल में रहने वाली भैंस से प्रेम हुआ था और उन्होंने ही उससे शादी की थी। इस तरह से महिषासुर का जन्म हुआ। इसके पास कई प्रकार की मायावी शक्तियाँ थी। जिनके द्वारा वह कभी भैंस तो कभी इंसान का रूप धारण कर लेता था। महिषासुर का वध माँ दुर्गा ने किया था।
दशहरा में मैसूर महल होता है आकर्षण का केन्द्र
दशहरा के दिन मैसूर महल मुख्य आकर्षण का केन्द्र होता है। इसे भव्य तरीके से सजाया जाता है। क़रीब 1 लाख रंगबिरंगी लाइटों से सजा मैसूर पैलेस लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। रात का विहंगम दृश्य मन को मोह लेता है। यदि आप मैसूर पैलेस का यह नज़ारा देखना चाहते हैं तो मैसूर दशहरे में ज़रुर शामिल हों।
निकाली जाती है शोभा यात्रा
मैसूर दशहरा में निकाली जाने वाली शोभा यात्रा भी भव्य होती है। इस यात्रा में आपको सांस्कृतिक झाकियाँ देखने को मिलती है। इस यात्रा को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या आती है। स्थानीय भाषा में इस यात्रा को जंबू सवारी के नाम से जाना जाता है। इस यात्रा में माँ दुर्गा की मूर्तियाँ जो सजे-धजे हाथियों के ऊपर बने स्वर्ण मंडप में विराजित की जाती हैं। पूरे गाजे-बाजे के साथ यह यात्रा निकाली जाती है।
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अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन
मैसूर दशहरा में लगने वाली प्रदर्शनी भी मुख्य आकर्षण का केन्द्र होती है। जो दशहरा प्रदर्शनी स्थल पर लगाई जाती है। इतिहासकार मानते हैं कि यहाँ मैसूर दशहरे में प्रदर्शनी की शुरुआत सबसे पहले मैसूर के महाराजा चामराजा वाडियार ने 1880 में की थी। इस प्रदर्शनी में पर्यटकों को लुभाने के लिए कई चीज़ें होती हैं। प्रदर्शनी में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी होता है।
इस प्रकार आपने जाना कि मैसूर का दशहरा क्यों दुनियाभर में ख़ास है। यदि आप वास्तव में मैसूर में होने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा की भव्यता को देखना महसूस करना चाहते हैं तो आपको इस बार मैसूर दशहरा का हिस्सा अवश्य ही बनना चाहिए।