मिथुन संक्रांति पर क्यों की जाती है सिलबट्टे की पूजा? जानें वजह!

शास्त्रों में सूर्य देव को आत्मा का स्वरूप माना गया है। जो पृथ्वी पर ऊर्जा के एकमात्र स्रोत कहे जाते हैं। वहीं वैदिक ज्योतिष में सूर्य को सभी नवग्रहों का राजा माना जाता है। सूर्य ही एक ऐसा ग्रह है, जो कभी वक्री नहीं होता है, हमेशा मार्गी रहता है। यह ग्रह हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करता है और सूर्य की इसी गोचर प्रक्रिया को संक्रांति कहा जाता है।

जिस भी राशि में सूर्य का गोचर होता है, उस राशि के नाम से ही संक्रांति मनाई जाती है। उदाहरण के तौर पर, यदि सूर्य का गोचर मकर राशि में हो रहा है तो उसे मकर संक्रांति कहा जाता है। इसी प्रकार जब मिथुन राशि में सूर्य का गोचर होता है तो मिथुन संक्रांति मनाई जाती है। राशि चक्र में कुल 12 राशियां होती हैं, इसलिए पूरे साल में कुल 12 संक्रांति मनाई जाती हैं। हर संक्रांति का अपना एक विशेष महत्व भी होता है।

भविष्य से जुड़ी किसी भी समस्या का समाधान मिलेगा विद्वान ज्योतिषियों से बात करके

आपको बता दें कि भारत के विभिन्न राज्यों जैसे कि आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, केरल, गुजरात, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब और महाराष्ट्र में संक्रांति के दिन को साल की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। वहीं बंगाल और असम जैसे कुछ राज्यों में संक्रांति को साल की समाप्ति के रूप में मनाया जाता है।

अब बात करते हैं मिथुन संक्रांति की तो भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में इसे माता पृथ्वी के वार्षिक मासिक धर्म चरण के रूप में मनाया जाता है, जिसे राजा पारबा या अंबुबाची मेला के नाम से जाना जाता है।

मिथुन संक्रांति का महत्व

हिन्दू धर्म में मिथुन संक्रांति को मौसम के परिवर्तन का सूचक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन से वर्ष ऋतु यानी कि बरसात का सीज़न की शुरू हो जाता है। इस दिन पवित्र नदी जैसे कि गंगा आदि में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन पवित्र नदी में दिव्य स्नान करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।

वहीं देवी पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति संक्रांति के पावन दिन पर भी स्नान नहीं करता है, वह सात जन्मों तक बीमार और ग़रीब रहता है। एकादशी, ग्रहण, पूर्णिमा और अमावस्या की तरह ही संक्रांति पर भी दान-पुण्य करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा

मिथुन संक्रांति 2022: तिथि, समय व मुहूर्त

सूर्य 15 जून, 2022 दिन बुधवार की दोपहर 11 बजकर 58 मिनट पर मिथुन राशि में गोचर करेंगे और 16 जुलाई, 2022 तक इसी राशि में रहेंगे। इसके बाद गोचर करते हुए अगली राशि यानी कि कर्क राशि में जाकर विराजमान होंगे।

दिनांक: 15 जून, 2022

दिन: बुधवार

हिंदी महीना: ज्येष्ठ

पक्ष: कृष्ण

तिथि: प्रतिपदा

मिथुन संक्रांति पुण्य काल: दोपहर 12 बजकर 19 मिनट से शाम 07 बजकर 19 मिनट तक

पुण्य काल की अवधि: 07 घंटे

मिथुन संक्रांति महापुण्य काल: दोपहर 12 बजकर 19 मिनट से दोपहर 02 बजकर 37 मिनट तक

नये साल में करियर की कोई भी दुविधा कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट से करें दूर

मिथुन संक्रांति पौराणिक कथा एवं सिलबट्टे की पूजा का महत्व

हम जानते हैं कि प्रकृति ने पृथ्वी पर मौजूद सभी महिलाओं को मासिक धर्म का वरदान दिया है। मासिक धर्म की वजह से ही माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है। पौराणिक कथा के अनुसार, मिथुन संक्रांति के दिन ही भू देवी या धरती माता को लगातार 3 दिनों तक मासिक धर्म हुआ था, जिसे पृथ्वी के विकास का प्रतीक माना जाता है इसीलिए सिलबट्टे को पृथ्वी माता का स्वरूप मानते हुए स्नान कराया जाता है। इसकी पूजा की जाती है।

इसके लिए आप मिथुन संक्रांति के दिन स्नान आदि करने के बाद साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद सिलबट्टे को दूध और जल से स्नान कराएं। फिर सिलबट्टे पर सिंदूर और चंदन लगाकर, फूल व हल्दी अर्पित करें।

ऑनलाइन सॉफ्टवेयर से मुफ्त जन्म कुंडली प्राप्त करें

मिथुन संक्रांति पूजन विधि 

  • मिथुन संक्रांति के दिन सुबह जल्दी उठकर गंगा स्नान करें। यदि गंगा स्नान करना संभव न हो तो घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर दिव्य स्नान करें।
  • साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • फिर तांबे के एक बर्तन में जल डालकर, उसमें लाल चंदन, रोली और लाल रंग के फूल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। ध्यान रहे कि अर्घ्य देने वाले जल को ज़मीन पर न गिरने दें बल्कि नीचे एक तांबे का बर्तन रखकर उसमें अर्घ्य दें। फिर उस पानी को किसी ऐसे पेड़ या पौधे पर अर्पित कर दें, जहां किसी का पैर न लगे।
  • अर्घ्य देते समय “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मंत्र का स्पष्ट उच्चारण करते हुए जाप करें।
  • अर्घ्य देने के बाद सूर्य देव को प्रणाम करें और 7 बार प्रदक्षिणा करें यानी कि एक स्थान पर खड़े रहकर सात पर परिक्रमा करें।
  • इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुंह करके आसन ग्रहण करें और इसी मंत्र का कम से कम एक माला जप करें।
  • इस दिन आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं।
  • जो लोग इस दिन व्रत करना चाहते हैं, वे प्रदक्षिणा करने के बाद सच्ची निष्ठा से व्रत करने का संकल्प लें। 
  • पूजा के लिए एक थाली में चंदन, लाल फूल और गाय के घी का दीपक लें और विधिवत पूजा-अर्चना करें।
  • पूजा करने के बाद गुड़ और तिल का प्रसाद बांटें।
  • इसके बाद अपनी क्षमतानुसार ज़रूरतमंदों को भोजन या वस्त्र दान करें। आमतौर पर इस दिन हरे रंग की वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है।
  • फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अनाज, फल आदि दान करें।
  • व्रत करने वाले व्यक्ति इस दिन नहाने के पानी में तिल और गंगाजल मिलाकर स्नान करें।

मिथुन राशि में सूर्य के गोचर का मूल जातकों पर क्या पड़ेगा प्रभाव?

जैसा कि हमने आपको बताया कि सूर्य 15 जून, 2022 दिन बुधवार की दोपहर 11 बजकर 58 मिनट से लेकर 16 जुलाई, 2022 तक इसी राशि में स्थित रहेंगे। ऐसे में सूर्य के इस गोचर काल (लगभग एक महीने) के दौरान मिथुन राशि के जातकों का दैनिक जीवन किस प्रकार प्रभावित होने की संभावना है, इस पर थोड़ा प्रकाश डालते हैं-

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, मिथुन राशि के जातकों के लिए सूर्य तीसरे भाव के स्वामी हैं। इस गोचर काल के दौरान यह आपके लग्न भाव में गोचर करेंगे। चूंकि सूर्य गुस्से और आक्रामकता का प्रतीक होता है, इसलिए आपके स्वभाव में आक्रामकता आ सकती है।

जो लोग किसी प्रेम संबंध में हैं या वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उन्हें अपने रिश्ते में उग्र स्वभाव के कारण वाद-विवाद का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए आपको सुझाव दिया जाता है कि जितना हो सके ख़ुद को शांत रखने का प्रयास करें क्योंकि इन सब वजहों से पारिवारिक संबंध भी प्रभावित हो सकते हैं।

इस दौरान आपको अपनी सेहत को लेकर भी काफ़ी सावधान रहने की आवश्यकता होगी क्योंकि बदलते मौसम के कारण आप बुखार, सर्दी, खांसी, जुकाम और सिरदर्द जैसी समस्याओं से पीड़ित हो सकते हैं।

उपाय: प्रतिदिन सुबह तांबे के बर्तन से सूर्य देव को जल चढ़ाएं।

सभी ज्योतिषीय समाधानों के लिए क्लिक करें: एस्ट्रोसेज ऑनलाइन शॉपिंग स्टोर

इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।