इस मंदिर में विराजमान है माता सती का आलोकिक रूप !

मोक्ष की नगरी हरिद्वार में “माया देवी मंदिर”(माया देवी शक्तिपीठ) एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक है। माया देवी को माता सती का एक रूप माना जाता है। माना जाता है कि माया देवी के इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। हरिद्वार का माया देवी शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह शक्तिपीठ सती और शिव के प्रेम का भी गवाह है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ पर माता सती की नाभि गिरी थी। चलिए आज इस लेख में आपको हरिद्वार के “माया देवी मंदिर” के विषय में बताते हैं –

मंदिर के विषय में यह कथा है प्रसिद्ध 

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवी सती के पिता दक्षेस्वर ने एक यज्ञ का आयोजन किया। दक्षेस्वर ने उस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, किंतु उन्होंने भगवान शिव को यज्ञ में आने का न्योता नहीं दिया। पिता के यज्ञ में अपने पति को नहीं बुलाए जाने से अपमानित सती ने कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे। तब भगवान शंकर माता सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड में घूम रहे थे। इस पर भगवान विष्णु ने शिव जी के वियोग को खत्म करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती की मृत काया के 51 हिस्से कर दिए। ये हिस्से धरती पर जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। माना जाता है कि यह मंदिर जहाँ खड़ा है, वहां सती की मृत काया की ‘नाभि’ गिरी थी। बाद मे इस स्थान पर माया देवी का मंदिर बनाया गया।

ऐसा है माता का स्वरुप 

माया देवी मंदिर में वैसे तो सब कुछ बहुत खास है, लेकिन इस मंदिर में देवी की मूर्ति  सबसे ज़्यादा आकर्षक हैं। मंदिर में देवी की मूर्ति के चार भुजा और तीन मुंह है। माता की मूर्ति के बाईं ओर देवी काली और दाहिने ओर देवी कामाख्या की मूर्ति है। हरिद्वार के तीन शक्ति पीठ में से “माया देवी मंदिर” एक है। दो अन्य शक्ति पीठ चण्डी देवी और मनसा देवी हैं। प्राचीन काल से ही माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है। इस मंदिर में 18वीं शताब्दी में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी इस मंदिर में की जाती है। माया देवी शक्तिपीठ हरिद्वार रेलवे स्टेशन से सिर्फ 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां आप ऑटो, रिक्शा और टेम्पो से आसानी से पहुंच सकते हैं।

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