माघ महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को माघ अमावस्या या मौनी अमावस्या कहा जाता है। हिंदू धर्म में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व है, ऐसी मान्यता है कि इस दिन मौन रहकर किसी भी पवित्र नदी या कुंड में स्नान करने से मनचाही मुराद पूरी होती है। यदि आप किसी नदी या कुंड में जाकर स्नान नहीं कर सकते हैं तो घर में भी स्नान करने से पहले मौन रहें, आपको इस व्रत का पुण्य मिलेगा। मौनी अमावस्या पर स्नान करने के साथ-साथ दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। इस साल 2021 में मौनी अमावस्या गुरुवार के दिन 11 फरवरी को है।
मौनी अमावस्या का महत्व
हिंदू धर्म में माघ अमावस्या के दिन स्नान करने से पहले मौन रहने की मान्यता है और संभव हो तो दिन भर कड़वे वचन भी ना बोलें, सभी से प्रेम पूर्वक बात करें। वैदिक ज्योतिष की नजर से देखें तो चंद्रमा को मन का कारक माना गया है और माघ अमावस्या के दिन चंद्र देव के दर्शन नहीं होते हैं, यही वजह है कि मन की स्थिति कमजोर बनी रहती है, इसलिए मौनी अमावस्या का व्रत मन को शांत करने के लिए रखा जाता है। मौनी अमावस्या के दिन भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा की जाती है।
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मौनी अमावस्या व्रत विधि
- मौनी अमावस्या के दिन प्रात: काल उठकर बिना बोले नदी, सरोवर या फिर किसी पवित्र कुंड में स्नान करें।
- स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- मौनी अमावस्या के दिन उपवास करने के साथ-साथ मौन रहें।
- ज़रूरतमंद और भूखों को भोजन कराएं।
- वस्त्र, तिल, आंवला, कंबल, पलंग, का दान करें।
- संभव हो तो मौनी अमावस्या के दिन गौ दान, स्वर्ण दान और भूमि दान करें।
- माघ अमावस्या पर पितरों का स्मरण करें।
- पितरों का तर्पण करें, ऐसा करने से हमारे पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माघ अमावस्या रोचक व्रत कथा
एक समय की बात है, कांचीपुरी नगर में एक ब्राह्मण का परिवार रहता था। ब्राह्मण की पत्नी धनपति, एक पुत्री गुणवती थी। इसके अलावा ब्राह्मण के सात बेटे भी थे। ब्राह्मण ने अपने सभी पुत्रों का विवाह बड़ी धूमधाम से किया, और फिर अपनी पुत्री गुणवती के लिए योग्य वर की तलाश करने लगा। उसने अपने बड़े बेटे को योग्य वर की तलाश के लिए नगर से बाहर भेजा।
इस बीच उसने अपनी पुत्री गुणवती की कुंडली एक ज्योतिष को दिखाई। कुंडली देखकर ज्योतिष बोला, कि आपकी बेटी की कुंडली में दोष है, और वह विवाह के उपरान्त सप्तपति होते ही विधवा हो जाएगी। यह सुनकर ब्राह्मण दुखी हो गया, और ज्योतिष से इसका निवारण बताने के लिए बोला, तब ज्योतिष ने कहा, यदि सिंहलद्वीप में रहने वाली सोमा धोबिन शादी के वक्त अपना पुण्य अपकी पुत्री को भेंट कर, वर-वधु को अशीर्वाद दें तो आपकी पुत्री आजीवन सुहागन रह सकती है। यह सुनते ही ब्राह्मण ने अपने सबसे छोटे बेटे के साथ अपनी पुत्री गुणवती को सोमा धोबीन के घर भेज दिया।
दोनों भाई बहन सिंहलद्वीप के लिए निकल गए, वहां पहुंच कर, उन्होंने सोमा धोबिन को पूरी बात बताई। सोमा धोबीन पूरी बात सुनने के बाद उनके साथ उनके घर जाने के लिए तैयार हो गई। इधर ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने शादी की सभी तैयारियां करके रखी थी, और पुत्री के आते ही ब्राह्मण ने गुणवती का विवाह कर दिया, परंतु सप्तपति होते ही गुणवति विधवा हो गई, तब सोमा धोबिन ने अपने पुण्य का फल दान कर गुणवती के पति को पुनः जीवित कर दिया, और वर-वधु को आशीर्वाद देकर सिंहलद्वीप के लिए निकल गई।
जब सोमा धोबिन अपने घर पहुंची तो उसने देखा कि उसके पति, पुत्र और दामाद की मृत्यु हो गई है। जिसके बाद सोमा धोबिन नदी किनारे एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की पूजा करने लगी और पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की, ऐसा करने से भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर सोमा धोबिन को पुण्य दिया, जिसके प्रताप से उसके पति, पुत्र और दामाद पुनः जीवित हो गए। तभी से ऐसी मान्यता है कि यदि माघ अमावस्या के दिन मौन रहकर भगवान शिव और विष्णु की पूजा करते हैं तो मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती है।
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