मौनी अमावस्या 2024: हिंदू धर्म में हर महीने एकादशी, पूर्णिमा एवं अमावस्या तिथि आती है और इन सभी तिथियों का अपना-अपना महत्व होता है। इसी प्रकार, मौनी अमावस्या को महत्वपूर्ण माना जाता है जो कि माघ महीने में आती है। माघ महीने की अमावस्या को मौनी अमावस्या और माघ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मौन व्रत का पालन किया जाता है इसलिए इसे मौनी अमावस्या कहते हैं। हालांकि, आपको बता दें कि माघ अमावस्या 09 फरवरी को पड़ेगी और माघ माह का आरंभ भी जल्द ही होने जा रहा है।
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एस्ट्रोसेज का यह विशेष ब्लॉग आपको मौनी अमावस्या के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा। वर्ष 2024 में कब पड़ेगी मौनी अमावस्या? क्या है इसका महत्व और पौराणिक कथा? किस मुहूर्त में पूजा करना होगा फलदायी? इन सभी सवालों के जवाब आपको इस ब्लॉग में मिलेंगे और साथ ही, इस दिन किन उपायों को करने से दूर होंगी परेशानियां और माघ अमावस्या पर बन रहे शुभ योग आदि से भी आपको अवगत कराएंगे। तो आइये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं मौनी अमावस्या की तिथि व शुभ मुहूर्त के बारे में।
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मौनी अमावस्या 2024: तिथि और मुहूर्त
हम सभी इस बात को भली-भांति जानते हैं कि हिंदू वर्ष के प्रत्येक माह में अमावस्या तिथि आती है और ऐसे में, एक वर्ष में कुल 12 अमावस्या तिथि आती है। इन्हीं में से एक है मौनी अमावस्या जिसे बेहद पावन माना जाता है। पंचांग के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या, माघ या माघी अमावस्या कहा जाता है। इस साल मौनी अमावस्या 09 फरवरी 2024 को पड़ेगी।
मौनी अमावस्या व्रत पूजा मुहूर्त:
अमावस्या तिथि का आरंभ: 09 फरवरी, 2024 की सुबह 08 बजकर 04 मिनट से,
अमावस्या तिथि की समाप्ति: 10 फरवरी 2024 की सुबह 04 बजकर 31 मिनट पर
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मौनी अमावस्या पर बन रहे हैं शुभ संयोग
साल 2024 की मौनी अमावस्या बहुत ख़ास है क्योंकि इस दिन एक शुभ योग का निर्माण हो रहा है। इस बार माघ अमावस्या पर सर्वार्थ सिद्ध योग बन रहा है जिसकी शुरुआत 9 फरवरी 2024 की सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर होगी और इसका अंत रात 11 बजकर 29 मिनट पर हो जाएगा। सर्वार्थ सिद्ध योग के बारे में कहा जाता है कि इस शुभ योग के दौरान जिस भी कार्य को किया जाता है उसमें निश्चित रूप से सफलता की प्राप्ति होती है। साथ ही, इस अवधि में की गई पूजा का फल भी पूर्ण रूप से मिलता है।
मौनी अमावस्या का धार्मिक महत्व
मौनी अमावस्या धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष मायने रखती है। सबसे पहले हम बात करेंगे मौनी अमावस्या के अर्थ के बारे में, तो मौनी शब्द की उत्पत्ति मौन से हुई है और इस दिन मौन व्रत रखा जाता है। माघ अमावस्या के दिन गंगा नदी में स्नान करना पवित्र होता है क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गंगा का जल अमृत समान हो जाता है। मान्यताओं के अनुसार, माघ माह की अमावस्या पर ऋषि मनु का जन्म हुआ था इसलिए यह तिथि मौनी अमावस्या के नाम से जानी गई। जो मनुष्य इस दिन मौन व्रत रखता है उसे अपने जीवन में वाक् सिद्धि प्राप्त होती है।
धर्मग्रंथों में माघ अमावस्या या मौनी अमावस्या को स्नान, जप एवं तप करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। लेकिन, इस दिन कुछ कार्यों को करना निषेध होता है। हालांकि, माघ अमावस्या के दिन स्नान करना बेहद फलदायी होता है क्योंकि इस तिथि पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के जल में देवताओं का वास होता है। इस वजह से मौनी अमावस्या के अवसर पर प्रयागराज में त्रिवेणी संगम में स्नान करना शुभ माना जाता है जिससे इन पवित्र नदियों के जल में डुबकी लगाने से प्राप्त होने वाले फलों में वृद्धि होती हैं।
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इसके अलावा, इस दिन जो मनुष्य नदी या कुंड आदि में स्नान करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्य प्राप्त होता है। हालांकि, मौनी अमावस्या के दिन को पितृ शांति और पितृ तर्पण के लिए भी अच्छा माना जाता है क्योंकि इस दिन पितरों का तर्पण करने से व्यक्ति को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
मौन व्रत का महत्व
माघ मास की अमावस्या अर्थात मौनी अमावस्या पर मौन व्रत का संकल्प लेने और व्रत को पूरे मन से करने से मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि होती है। साथ ही, यह व्यक्ति के विचारों या उसके मन तथा आवेगपूर्ण कार्यों को नियंत्रित करने में सहायक होता है। भगवद गीता में कहा गया है कि अगर किसी मनुष्य का मन अशांत और बेचैन होता है, तो उसे मौनी अमावस्या पर मौन व्रत करना चाहिए जिससे उस जीव्हा को काबू किया जा सके जिसको अशांत मन द्वारा उकसाया जाता है।
मौनी अमावस्या का ज्योतिषीय महत्व
अगर हम बात करें मौनी अमावस्या के ज्योतिषीय महत्व की, तो यह तिथि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। आपको बता दें कि ज्योतिष के अनुसार, माघ माह में जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में एक साथ उपस्थित होते हैं, उस समय मौनी अमावस्या मनाई जाती है। चंद्रमा और सूर्य इन दोनों ग्रहों की युति के प्रभाव से माघ अमावस्या का महत्व बढ़ जाता है। राशि चक्र में मकर दसवीं राशि है और कुंडली के दसवें भाव में सूर्य की स्थिति मज़बूत होती है इसलिए मौनी अमावस्या पर किए गए दान-पुण्य से जातकों को कई गुना लाभ की प्राप्ति होती है।
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मौनी अमावस्या की पूजा विधि
- मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना फलदायी माना जाता है। इस दिन नित्य कर्मों को करने के बाद गंगा नदी में स्नान करें। यदि ऐसा करना संभव न हो, तो नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें।
- स्नान के पश्चात भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने के बाद तुलसी मैया की 108 बार परिक्रमा करें।
- जब आप पूजा कर लें, उसके उपरांत अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को भोजन, धन अथवा वस्त्र आदि दान करें।
- आपको ध्यान रखना होगा कि स्नान के बाद से ही आपका मौन व्रत शुरू हो जाएगा।
मौनी अमावस्या पर क्या करें?
- माघ मास की अमावस्या पर सुबह से लेकर शाम तक कुछ भी न कहें और शांतिपूर्वक मौन व्रत रखें।
- संभव हो, तो धार्मिक स्थलों जैसे काशी, प्रयाग, रामेश्वरम आदि जाएं और वहां पवित्र जल में स्नान करें।
- निर्धन और जरूरतमंद लोगों की सहायता करें।
मौनी अमावस्या पर क्या न करें?
- मौनी अमावस्या पर श्मशान आदि स्थानों पर जाने से बचें।
- गरीब लोगों का भूलकर भी अपमान न करें और न ही अपशब्द कहें।
- मांस-मदिरा आदि तामसिक चीज़ों से दूरी बनाए रखें और इनका सेवन न करें।
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मौनी अमावस्या पर तर्पण न करने से उत्पन्न होंगी ये समस्याएं
- मौनी अमावस्या के दिन तर्पण नहीं किया जाता है, तो पितृ नाराज़ होकर आपको शारीरिक कष्ट दे सकते हैं और घर में सदैव कलेश बना रह सकता है।
- अगर आप पितरों को शांत करने के लिए तर्पण, दान आदि नहीं करते है तो आपके जीवन में सुख-सुविधाओं का अभाव रह सकता है।
- पितृ रुष्ट होते हैं, तो व्यक्ति को करियर और व्यापार में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इन परिस्थितियों से बचने के लिए मौनी अमावस्या पर पितरों का तर्पण अवश्य करें।
- अक्सर देखा जाता है कि कुंडली में पितृ दोष के होने या पूर्वजों के अशांत होने की वजह से लोगों को निसंतान रहना पड़ता है। ऐसे में, आप मौनी अमवास्या के दिन सुबह स्नान करने के बाद पितरों को जल से तर्पण जरूर दें।
मौनी अमावस्या पर जरूर करें ये उपाय
- जो लोग अपने पूर्वजों की कृपा पाना चाहते हैं, वह मौनी अमावस्या के दिन पीले वस्त्र पहनकर पितरों का ध्यान करें। ऐसा करना शुभ होता है और इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं।
- घर के मुख्य द्वार पर जल में हल्दी मिलाकर छींटे लगाएं और साथ ही, घर की चौखट की साफ-सफाई करें। इस उपाय को करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
- मौनी अमावस्या की तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है और पीपल के पेड़ के पूजन का भी विधान है।
- इस अमावस्या के दिन सफेद कागज पर लाल पेन से श्री यंत्र बनाएं और फिर इस यंत्र को पूजा स्थल पर माता लक्ष्मी के पास स्थापित करें। इस उपाय को करने से घर-परिवार में धन-धान्य की कमी नहीं होती है।
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मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा
माघ अमावस्या से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार कांचीपुरी में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण अपने बेटे और बेटी के साथ रहता था। ब्राह्मण की पत्नी का नाम धनवती थी और वह अपने सभी बेटों का विवाह कर चुके थे और अब उसकी एक पुत्री ही विवाह योग्य थी जिसके लिए सुयोग्य वर की खोज में उसने अपने बड़े बेटे को नगर भेजा था। जब एक ज्योतिषी को ब्राह्मण ने अपनी बेटी की कुंडली दिखाई, तो ज्योतिषी ने उसे बताया कि विवाह होने के तुरंत बाद ही उसके पति की मृत्यु हो जाएगी और उसकी बेटी विधवा हो जाएगी। इस बात को सुनकर ब्राह्मण दुखी हो गया। इस समस्या का उपाय बताते हुए ज्योतिषी ने ब्राह्मण को कहा कि सिंहलद्वीप में एक सोमा नाम की धोबिन रहती है। यदि वह आपके घर आकर पूजा करेंगी, तो आपकी बेटी की कुंडली से यह दोष समाप्त हो जाएगा।
ब्राह्मण उस महिला की तलाश में निकल पड़ा, लेकिन इसके लिए उसे समुद्र को पार करना था। बहुत सोचने के बाद भी उसे कोई उपाय नहीं मिल रहा था कि आखिरकार द्वीप पर कैसे जाया जाए। जब काफ़ी समय तक कोई उपाय नहीं मिला, तो वह भूखा-प्यासा ही एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगा। उस पेड़ पर एक गिद्ध का परिवार रहा करता था। देवस्वामी से गिद्ध ने उसकी उदासी की वजह पूछी, तब उसने सारी बात बताई। यह बात सुनकर गिद्ध ने ब्राह्मण को आश्वासन दिया कि वह उसकी इस समस्या का समाधान कर देगा। अगले दिन गिद्ध ने देवस्वामी को उस धोबिन के घर पहुंचा दिया।
इसके पश्चात, देवस्वामी सोमा को पूजा करने के लिए अपने घर ले आये और विधि-विधान से पूजा करने के बाद गुणवती का विवाह कर दिया गया। लेकिन, इस उपाय के बाद भी उसके पति का निधन हो गया और फिर सोमा ने अपने पुण्य का दान गुणवती को किया और इसके बाद उसका पति पुनः जीवित हो गया। अब सोमा धोबिन दोबारा सिंहलद्वीपर पर वापस आ गई, लेकिन अपने सारे पुण्य कर्मों गुणवती को देने की वजह से उसके बेटे, पति और दामाद की मृत्यु हो गई थी। इन सबसे दुखी होकर सोमा नदी किनारे पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की उपासना में लीन हो गई और साथ ही, उसने पीपल की भी 108 बार परिक्रमा की। इनसे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसके बेटे, पति और दामाद को पुनः जीवनदान दिया। उस समय से ही मौनी अमावस्या का व्रत विधि पूर्वक किये जाने लगा।
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