मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत कल, जानें विधि और कथा

हर महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि मासिक दुर्गा अष्टमी के रूप में मनाई जायेगी। ये विशेष दिन मां भगवती को समर्पित होता है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा-अर्चना करने का विधान है। हालांकि कुछ लोग इस दिन मां दुर्गा का सच्चे मन से व्रत भी करते हैं। 

मासिक दुर्गा अष्टमी का सावन में बढ़ जाता है महत्व 

हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मासिक दुर्गा अष्टमी के दिन पूरे मन से मां दुर्गा का व्रत कर उनका पूजन करता है तो मां उसको आशीर्वाद के साथ-साथ उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इस माह ये व्रत 8 अगस्त, गुरूवार को किया जाएगा। चूँकि ये पवित्र महीना सावन का हैं इसलिए भी इस व्रत का महत्व इस माह बढ़ जाता है।  

होती है मां के नौ स्वरूपों की पूजा 

जानकारी के लिए बता दें कि मासिक दुर्गा अष्टमी के दिन भक्त मां दुर्गा के काली, भवानी, जगदम्बा, नवदुर्गा आदि नौ स्वरूपों की पूजा कर मां को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में प्रत्येक मास को पड़नी वाली इस दुर्गा अष्टमी का भगवान शिव के प्रिय सावन के महीने में एक अलग ही महत्व होता है। तो चलिए अब हम आपको इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा और इसकी संपूर्ण पूजन विधि के बारे में बताते हैं।

मासिक दुर्गा अष्टमी से जुड़ी पौराणिक मान्यता 

यूँ तो इस व्रत को लेकर हिन्दू धर्म में कई पौराणिक मान्यताओं का जिक्र किया गया है। उन्ही में से एक पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर जो सभी असुरों में से सबसे शक्तिशाली असुर था, जिसकी शक्तियों से उस समय स्वर्ग के सभी देवता गण भी उससे बहुत डरे हुए थे। एक बार उसके अन्याय से परेशान होकर सभी देवता मिलकर त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महादेव) के पास इस समस्या से छुटकारा पाने पहुंचे। सभी देवताओं की विनती सुनकर त्रिदेवों ने मिलकर महिषासुर का अंत करने के लिए नवदुर्गा का निर्माण किया। जिसके चलते हर देव ने देवी दुर्गा को एक-एक विशेष हथियार प्रदान किया। त्रिदेवों द्वारा निर्मित आदिशक्ति मां दुर्गा इसके पश्चात पृथ्वी लोक पर आई और उन्होंने असुरों का वध कर दिया। महिषासुर की सेना के साथ मां दुर्गा का ये युद्ध कई दिनों तक चला और अंत में मां दुर्गा ने उसका वध करके स्वर्ग लोक को उसके चंगुल से आज़ाद किया। मान्यता है कि उसी दिन से दुर्गा अष्टमी के इस पर्व का प्रारम्भ हुआ था। 

मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत की पूजा विधि

  • सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करके साफ-सूथरे कपड़े पहनने और मां दुर्गा के इस व्रत का संकल्प लेना चाहिए। 
  • इसके बाद लकड़ी के एक साफ़ पाट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। 
  • इसके बाद मां की प्रतिमा पर गंगाजल का छिड़काव कर उसे शुद्ध करें। 
  • इसके पश्चात मां दुर्गा को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, फिर प्रसाद के रूप में उन्हें फल और मिठाई चढ़ाएं। 
  • इसके बाद मां के सामने धूप, दीप जलाकर पूरे मन से मां का गुणगान करते हुए दुर्गा अष्टमी का पाठ करें। 
  • इसके बाद व्रती दुर्गा चालीसा का पाठ करें और बाद में व्रत कथा को सुने और दूसरों को भी सुनाए। 
  • अंत में मां की आरती उतारते हुए उनका आशीर्वाद लें। 
  • आरती के बाद नौ छोटी कन्याओं को घर पर आमंत्रित कर उनके पैरों को पानी से धोएं। 
  • इसके बाद उन कन्याओं को प्रसाद के रूप में पूरी और हलवे का भोजन कराए। 
  • अंत में मां के सामने सच्चे मन से प्रार्थना करते हुए उनके जयकारे लगाएँ, ताकि वे आपकी हर इच्छा को पूर्ण कर सकें।