यहाँ हुआ था भगवान् शिव और माता पार्वती का विवाह, नवरात्रि के दौरान मायके आती हैं माता !

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विशेष रूप से भगवान् शिव और माता पार्वती का विवाह जिस दिन हुआ था उस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इसके साथ ही साथ ऐसी भी मान्यता है कि, शारदीय नवरात्रि के दौरान माता पार्वती अपने मायके आती हैं। आज हम आपको विशेष रूप से शिव जी और माता पार्वती के विवाह स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं कहाँ हुआ था शिव जी और माता पार्वती का विवाह। 

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यहाँ जानें कब हुआ था शिव जी और माता पार्वती का विवाह 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान् शिव और माता पार्वती का विवाह सतयुग में हुआ था। माता पार्वती ने कठिन तप और व्रत के बल पर भगवान् शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया था। माना जाता है कि, भगवान् शिव और पार्वती की शादी सतयुग में सावन माह में हुआ था। माता पार्वती ने शिव जी से विवाह के बाद जब मायके आई तो उस अवधि को शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा। इसलिए कहते हैं कि, शारदीय नवरात्रि के दौरान पार्वती माता अपने मायके आती हैं और कुछ दिनों तक अपने परिवार के साथ रहती हैं। 

इस जगह पर हुई थी शिव जी पर माँ पार्वती की शादी 

पौराणिक हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती और शिव जी का विवाह त्रियुगी नारायण मंदिर में हुआ था। कहते हैं कि, माता पार्वती ने इसी मंदिर के अग्नि कुंड के समक्ष कठोर तप किया था जिसके बाद उन्हें शिव जी ने दर्शन दिए थे। सितंबर महीने के बावन एकादशी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती ने इसी मंदिर के हवन कुंड की जलती आग को साक्षी मानकर विवाह किया था। उस समय इस जगह को हिमवत की राजधानी माना जाता था, चूँकि माता पार्वती ने पर्वत राज हिमालय के पुत्री के रूप में जन्म लिया था इसलिए उन्होनें त्रियुगी मंदिर को ही कठोर तप के लिए चुना था। 

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त्रियुगी नारायण मंदिर की विशेषता 

त्रियुगी नारायण मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है की इस मंदिर के जिस हवन कुंड के समक्ष भगवान् शिव और माता पार्वती ने सात फेरे लिए थे, उस हवन कुंड की आग आजतक जल रही है। इसके साथ ही साथ इस मंदिर के बारे में एक पौराणिक तथ्य ये भी सामने आता है की यहाँ प्राचीन काल में भगवान शिव के विवाह से पूर्व तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने स्नान किया था। इसलिए यहाँ पर तीनों देव के नाम से तीन कुंड बने हुआ हैं, ब्रह्म कुंड, विष्णु कुंड और महेश कुंड। इस मंदिर का नाम त्रियुगी नारायण इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ तीन युगों से पवित्र अग्नि प्रज्वल्लित है।