सनातन धर्म के अनुसार, वर्ष 2020 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा 30 दिसंबर, बुधवार के दिन मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं में पूर्णिमा को हमेशा ही एक विशेष व पवित्र तिथि के रूप में देखा जाता है, जो हर माह की शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को आती है, जिसे हम पूर्णिमा तिथि कहते हैं। इसे पूर्णमासी के नाम से भी जाना जाता है। वैदिक जितोष की माने तो, ये वो पूर्णिमा की रात होती है, जब चंद्र देव भी ग्रहों की मजबूत स्थिति में होते हुए, जातकों को शुभ प्रदान करते हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2020 का शुभ मुहूर्त
पंचांग अनुसार, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की उदया तिथि, यानी चतुर्दशी 29 दिसंबर 2020, मंगलवार को सुबह 07 बजकर 55 मिनट से, शुरू होगी और उसके बाद पूर्णिमा, बुधवार को सुबह 08 बजकर 59 मिनट तक रहेगी और पूर्णिमा तिथि के दौरान रात में पूर्ण चाँद दिखाई देगा। चंद्रोदय का समय शाम 17:44:00 होगा, जो मिथुन राशि में विराजमान होंगे।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2020 व्रत मुहूर्त |
दिसंबर 29, 2020 को 07:55:58 से पूर्णिमा आरम्भ |
दिसंबर 30, 2020 को 08:59:21 पर पूर्णिमा समाप्त |
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मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व
मान्यता अनुसार, मार्गशीर्ष के महीने को दान-पुण्य व धर्म-कर्म और भक्ति का माह बताया गया है। इस माह के महत्व का उल्लेख, आपको श्रीमदभागवत गीता में भी मिल जाएगा। जिसमें भगवान श्री कृष्ण द्वारा स्वयं कहा गया है कि, “महीनों में मैं मार्गशीर्ष का पवित्र महीना हूं।”
इस माह का महत्व पौराणिक मान्यताओं में भी किया गया है, जिसके अनुसार मार्गशीर्ष माह ही वो समय था, जहाँ से सतयुग काल का आरंभ हुआ था। तभी से इस माह में आने वाली पूर्णिमा, मार्गशीर्ष पूर्णिमा कहलाती है। इस विशेष दिन स्नान, दान, पाठ, पूजा और तप का बेहद अधिक महत्व होता है। इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर दुनियाभर से श्रद्धालु ,अलग-अलग पवित्र स्थान जैसे: हरिद्वार, बनारस, मथुरा, वृंदावन, प्रयागराज, आदि जगहों पर पहुँचकर, पवित्र नदियों व कुण्डों में स्नान, आदि कर, अपने पापों से मुक्ति पाते हैं।
हिन्दू धर्म अनुसार, मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान शिव और चंद्र देव की पूजा-आराधना करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन घर में भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ करना, विशेष फलदायी सिद्ध होता है। इस दिन व्रत कर ग़रीबों और ज़रूरतमंदों को दिए जाने वाले दान-दक्षिणा से, न केवल जातक को उत्तम फल मिलते हैं, बल्कि उनके पूर्वजों को भी इस व्रत और दान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन सच्चे मन से, पूरे विधि-विधान अनुसार व्रत करने का विधान है।
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मार्गशीर्ष पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यताओं की मानें तो, मार्गशीर्ष पूर्णिमा दैवीयता का दिन माना जाता है। जो महीनों में सबसे पवित्र माह का अंतिम दिन है। इस दिन तुलसी की जड़ की मिट्टी को किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में डालकर, उसके जल में स्नान करना, बेहद उत्तम फल प्रदान करता है। इससे भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति के जीवन में आ रही हर समस्या दूर होती है।
माना जाता हैं कि, इस विशेष दिन किये जाने वाले दान-पुण्य का फल, अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना अधिक मिलता है। इसलिए ये पूर्णिमा, बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। ये पूर्णिमा को ग्रंथों में भी, परम फलदायी बताया गया है। इस दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा की कथा सुनकर, ग़रीबों व ब्राह्मणों को भोजन खिलाकर उन्हें, दान-दक्षिणा देने से साक्षात भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है।
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मार्गशीर्ष पूर्णिमा के व्रत की पूजा विधि
मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर व्रत एवं पूजन करने से, सभी दोषों का अंत होता है। परन्तु इसके व्रत की पूजा विधि के कुछ नियम भी बताए गए हैं। ऐसे में आइये अब जानते हैं इसके व्रत की विधि:-
- मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर भगवान नारायण (विष्णु जी) की पूजा की जाती है। इसलिए इस दिन सूर्योदय से पहले ही, प्रातःकाल उठकर स्नान, आदि कर, भगवान नारायण का ध्यान करें और व्रत का सच्चे मन से संकल्प लें।
- ध्यान रखें कि स्नान के बाद, केवल सफेद वस्त्र ही धारण करें, उसके बाद ही आचमन करें।
- फिर भगवान नारायण का आह्वान करते हुए, उनके मंत्र ‘ऊँ नमोः नारायण’ का जप करें और उनकी प्रतिमा या चित्र के समक्ष धुप, दीप,आदि जलाकर, उन्हें आसन, गंध और पुष्प आदि, अर्पण करें।
- इसके पश्चात पूजा स्थल पर यथासंभव किसी विद्वान पुरोहित की मदद से, वेदी बनाकर, हवन के लिए अग्निदेव को नमन करते हुए, उसे जलाएं।
- इसके बाद सपरिवार हवन में तेल, घी और बूरा आदि की आहुति देते हुए, भगवान की आराधना करें।
- हवन की समाप्ति के बाद भगवान को श्रद्धापूर्वक अपना व्रत अर्पण करते हुए, उनसे आर्शीवाद की प्रार्थना करें।
- इस पूर्णिमा की रात्रि में, चंद्रमा के दर्शन कर, उन्हें अर्घ्य ज़रूर दें।
- इस दिन रात्रि को, भगवान नारायण की मूर्ति के पास ही शयन करें।
- व्रत के दिन पहले भगवान की पूजा करें और फिर ज़रूरतमंदों व ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए, दान-दक्षिणा, वस्त्र देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। उसके पश्चात ही अपना व्रत खोलें।
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हम आशा करते हैं की हमारा ये लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।