महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती के मौके पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें और साथ ही जानते हैं कि उनकी जयंती हम प्रत्येक वर्ष क्यों मनाते हैं। सबसे पहले बात करते हैं कि, महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती आखिर थे कौन? दरअसल महर्षि दयानंद सरस्वती को आधुनिक भारत के एक महान चिंतक और समाज सुधारक का दर्जा प्राप्त है। कहा जाता है कि, उन्होंने अपने जीवन में भारत को जोड़ने और अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने का काम किया है।
सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने अपने ज्ञान से लोगों को सही राह दिखाई और लोगों को अंग्रेजी हुक़ूमत के विरुद्ध एकजुट करने का काम किया। इस वर्ष 8 मार्च सोमवार के दिन महर्षि दयानंद सरस्वती जी की जयंती मनाई जाएगी।
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क्यों और कैसे मनाई जाती है महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती?
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन आर्य समाज के संस्थापक और आधुनिक भारत के महान चिंतक और समाज-सुधारक महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष महर्षि दयानंद सरस्वती जी की जयंती 8 मार्च 2021 को है। भारत मे जितने भी वैदिक संस्थान और धार्मिक प्रतिष्ठान होते हैं इस दिन पर बड़े ही धूम-धाम और उत्साह से महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती की जयंती का उत्सव मनाया जाता है।
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1824 में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे स्वामी दयानंद सरस्वती के बचपन का नाम मूल शंकर था। बचपन से ही महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती ईश्वर में अटूट आस्था रखते थे। उन्होंने वेदों के प्रचार और भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए मुंबई में आर्य-समाज की स्थापना की थी। क्योंकि उन्होंने देश को सर्वोपरि रखा ऐसे में उन्होंने अपना पूरा जीवन बतौर सन्यासी निर्वाह किया था। इसके साथ ही स्वामी जी एक चिंतक हुआ करते थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को हमेशा सर्वोपरि माना। स्वामी दयानंद सरस्वती ने कर्म सिद्धांत, पुनर्जन्म, ब्रह्माचार्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तंभ के रूप में माना था। वर्ष 1876 में स्वामी जी ने ही ‘स्वराज्य’ का नारा दिया था जिसे आगे चलकर लोक-मान्य तिलक ने आगे बढ़ाने का काम किया था। 1857 में महर्षि दयानंद स्वामी ने अंग्रेजों के खिलाफ छिड़े युद्ध में अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। हालांकि अंग्रेजों ने षड्यंत्र रच-कर 30 अक्टूबर 1883 में स्वामी दयानंद सरस्वती जी की हत्या कर दी थी।
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महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन से जुड़ी कुछ बेहद रोचक बातें
- बताया जाता है कि, क्योंकि दयानंद सरस्वती का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था इसी कारण इनके पिता ने इनका नाम मूल शंकर तिवारी रखा था।
- स्वामी दयानंद सरस्वती बचपन से ही बेहद मेधावी और होनहार बालक थे। महज दो वर्ष की आयु में ही इन्होंने स्पष्ट और साफ रूप से गायत्री मंत्र का उच्चारण प्रारंभ कर दिया था।
- 14 वर्ष की आयु में आते-आते महर्षि दयानंद सरस्वती ने धर्म शास्त्रों के साथ-साथ संपूर्ण संस्कृत व्याकरण, सामवेद और यजुर्वेद का अध्ययन कर लिया था।
- समय के साथ जैसे ही धार्मिक कर्मकांड से महर्षि दयानंद सरस्वती का विश्वास उठने लगा तब उन्होंने मथुरा में स्वामी विरजानंद से शिक्षा लेने के बाद देश में फैले तरह-तरह के पाखंड का खंडन करना शुरू कर दिया था।
- स्वामी विरजानंद ने ही महर्षि दयानंद को सरस्वती की उपाधि दी थी।
- अपने गुरु की आज्ञा और आशीर्वाद लेने के बाद ही महर्षि दयानंद सरस्वती देश भ्रमण पर निकल गए थे।
- महर्षि दयानंद सरस्वती ने 1875 में धर्म के सुधार के लिए आर्य समाज की स्थापना की थी और दुनिया को इसका महत्व बताया था।
- इसके अलावा उन्होंने अपने जीवन में कई तरह के सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज़ उठाई थी। जिनमें से प्रमुख जातिवाद और बाल विवाह था।
- महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती विधवा विवाह के बड़े समर्थक थे।
- महार्षि दयानंद सरस्वती ने 1846 में घर त्याग दिया और अंग्रेजों के खिलाफ प्रचार करना शुरू कर दिया था।
- इसके लिए पहले उन्होंने पूरे देश का भ्रमण किया था, लोगों से बातें की थी और समझा था कि लोग अंग्रेजी शासन से नाखुश है। ऐसे में भारत के लोग कभी भी अंग्रेजी शासन के खिलाफ लोहा ले सकते हैं। बस फिर क्या था, इसी समय और बात का फायदा उठाकर उन्होंने लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ एकत्रित करना शुरू कर दिया।
- महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने जीवन-काल में कुछ पुस्तकें भी लिखी थी, जिसमें प्रमुख रूप से सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, ऋग्वेद भाष्य, यजुर्वेद भाष्य, संस्कार विधि, पञ्चमहायज्ञविधि, आर्याभिविनय, गो-करूणानिधि, भ्रांतिनिवारण, अष्टाध्यायीभाष्य, वेदांगप्रकाश, संस्कृतवाक्यप्रबोध, व्यवहारभानु हैं।
महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन की कुछ अनमोल कहावतें :
अपने जीवन में लोगों को निरंतर प्रेरित करने के साथ-साथ स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने ऐसी कुछ कहावतें भी दी थीं, जिन्हें आज के समय में अगर हम आप अपने जीवन में शामिल कर लें तो हमारे जीवन का उद्धार हो सकता है। उनकी जयंती के मौके पर आइये जानते हैं ऐसी ही कुछ शानदार कहावतें।
- अहंकार, मनुष्य के अंदर वो स्थिति लाता है, जब वह आत्मबल और आत्मज्ञान को खो देता है।
- संस्कार ही मानव के आचरण की नींव है। जितने गहरे संस्कार होते हैं, उतना ही अडिग मनुष्य अपने कर्तव्य पर, धर्म पर, सत्य पर और न्याय पर चलता है।
- ईर्ष्या से मनुष्य को हमेशा दूर रहना चाहिए, क्योंकि ये मनुष्य को अंदर ही अंदर जलाती है और पथ भ्रष्ट कर देती है।
- ये शरीर नश्वर है, हमें इस शरीर के जरिए सिर्फ एक मौका मिला है, खुद को साबित करने का कि मनुष्यता और आत्मविवेक क्या है।
- क्रोध का भोजन विवेक है, अतः इससे बच के रहना चाहिए. विवेक नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
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