हिन्दू धर्म में अनेकों देवी-देवता हैं। लगभग हर क्षेत्र से जुड़े कोई ना कोई देवी-देवता हमेशा अपने भक्तों की समस्याओं की परेशानियों का निवारण करते रहते हैं। ऐसे ही हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार पढ़ाई और शिक्षा के क्षेत्र की देवी माँ सरस्वती को माना गया है। सरस्वती माँ की पूजा उपासना के यूँ तो कई तरीके होते हैं लेकिन इनमें से एक तरीका जो कोई भी बड़ी ही आसानी से अपना सकता है वो है माँ सरस्वती के मन्त्रों का नियमित उच्चारण। माना जाता है कि सरस्वती वंदना के नियमित गायन से आप अपनी बुद्धि और ज्ञान को बढ़ा सकते हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार माना जाता है कि सृष्टि की रचना के बाद ब्रह्मा जी ने मनुष्य की रचना की लेकिन उसके बाद ही उन्होंने इस बात का अनुभव किया कि केवल इससे ही सृष्टि की गति नहीं दी जा सकती है। इसके बाद भगवान विष्णु से अनुमति लेकर उन्होंने एक चतुर्भुजी स्त्री की रचना की, जिनके एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। इन देवी के अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। इनके मुख से निकलने वाले शब्द इतने मधुर थे जिसके चलते इन देवी का नाम पड़ा सरस्वती।
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ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवी सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है। सरस्वती देवी ज्ञान, बुद्धि, वाणी, स्वर और संवेदना से परिपूर्ण हैं। उनकी वीणा संगीत की अभिव्यक्ति है, पुस्तक विचारणा की अभिव्यक्ति मानी जाती है और उनका वाहन हंस कला की अभिव्यक्ति माना जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि महाकवि कालिदास, वरदराजाचार्य, वोपदेव आदि मंद बुद्धि के लोग देवी सरस्वती की उपासना से ही उच्च कोटि के विद्वान बने थे। इसी लिए माना जाता है कि अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास करने, अपने चित्त की चंचलता और अस्थिरता दूर करने के लिए सरस्वती साधना बेहद उपयोगी है।
सरस्वती वंदना को एक बेहद महत्वपूर्ण और शक्तिशाली हिन्दू वंदना का दर्जा प्राप्त है। सरस्वती वंदना का नियमित पाठ ज्ञान की वृद्धि और बौद्धिक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है। जो भी लोग उज्जवल भाग्य की कामना रखते हैं वो भी सरस्वती वंदना के जरिए ज्ञान की देवी की अराधना कर सकते हैं।
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माँ सरस्वती की पूजा के लिए यूँ तो सभी दिन उपयुक्त हैं लेकिन वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा का अलग ही महत्व बताया गया है।
सरस्वती वंदना मंत्र:
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
इस मंत्र का अर्थ होता है कि :
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दंड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें।
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥
इस मंत्र का अर्थ होता है कि :
क्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदि-शक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भय-दान देने वाली, अज्ञान के अंधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मा-सन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा की मैं वंदना करता हूँ।
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माँ सरस्वती की वंदना से मिलते हैं ये फल:
माँ सरस्वती की नियमित वंदना से बड़े से बड़े मूर्ख इंसान को विद्वान बनाया जा सकता है।
माँ सरस्वती की पूजा से अज्ञानी मनुष्य भी समझदार और बुद्धि-वान बन जाता है।
माँ सरस्वती की कृपा से इंसान कला, विद्या, विज्ञान और प्रतिभा के क्षेत्र में खूब नाम कमाता है।
किसी भी काम को पूर्ण रूप से पूरा करने के लिए ज़रूरी है कि उस काम के पहले सरस्वती वंदना ज़रूर की जाए।