हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बात करें तो सप्ताह में शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत और पूजा के लिए निर्धारित किया गया है। कहा जाता है मां संतोषी सुख, शांति और वैभव का प्रतीक होती हैं। ऐसे में विधि पूर्वक जो कोई भी व्यक्ति मां संतोषी की पूजा करता है या उनका व्रत करता है प्रसन्न होने पर मां संतोषी अपने भक्तों के जीवन में सुख, शांति और वैभव का आशीर्वाद बनाए रखती हैं।
तो आइए जानते हैं शुक्रवार के दिन किए जाने वाले मां संतोषी के व्रत से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण नियम, इस व्रत का महत्व, और इस व्रत से जुड़ी प्रत्येक सावधानियां।
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मां संतोषी व्रत का महत्व
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां संतोषी को भगवान गणेश की पुत्री कहा जाता है। ऐसे में मान्यता है कि जो कोई भी व्यक्ति इस दिन नियम और सावधानी बरतते हुए मां संतोषी का व्रत और पूजा आदि करता है उसके जीवन में संतोष बना रहता है और साथ ऐसे व्यक्ति के जीवन में धन से संबंधित कोई समस्या नहीं होती और विवाह संबंधित समस्याएं भी दूर होती है।
मां संतोषी के व्रत से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सवाल और उनके जवाब
- कब से शुरू करें मां संतोषी का व्रत?
कोई भी व्रत तभी फलदाई होता है जब उसे पूरे नियम के साथ किया जाए। ऐसे में मां संतोषी के व्रत से जुड़ा पहला नियम यह कहता है कि मां संतोषी का व्रत यदि शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से किया जाए तो सबसे ज्यादा फलदाई साबित होता है। इसके अलावा मां संतोषी का व्रत कम से कम 16 शुक्रवार तक किया जाता है।
- मां संतोषी के व्रत में क्या खाया जाता है?
हर व्रत में अलग-अलग चीजें खाने की मनाही होती है और अलग-अलग चीजें खाना बताया जाता है। ऐसे में जो कोई भी व्यक्ति संतोषी मां का व्रत करता है उसे विशेष तौर पर इस दिन खट्टी चीज़ें खाना तो छोड़िए स्पर्श करना वर्जित माना जाता है। इसके अलावा इस दिन के भोग में गुड़ और चना चढ़ाया जाता है। कहा जाता है इस भोग को व्रत करने वाला इंसान यदि खाए तो इससे मां संतोषी की कृपा उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा बनी रहती है।
- क्या है मां संतोषी का व्रत और पूजा करने की सही विधि?
कोई भी पूजा तब ही फलदाई होती है जब उसे सही नियम के साथ किया जाए। तो आइए जानते हैं कि संतोषी माता का व्रत और पूजा करने की सही विधि क्या है। इसके लिए सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई कर लें और फिर स्नान करने के बाद पूजा वाली जगह पर मां संतोषी की तस्वीर प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद मां संतोषी के सामने कलश में जल भरकर रखें। भोग में कलश के ऊपर ही गुड़ और चना रखें। इसके बाद पूजा प्रारंभ करें और घी का दीपक जलाएं। मां को पूजा में अक्षत, फूल, मुमकिन हो तो कमल का फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल, लाल चुनरी अवश्य चढ़ाएं। इसके बाद माता की आरती उतारें और फिर वह भोग सभी लोगों में प्रसाद के रूप में वितरित करें और खुद भी ग्रहण करें।
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