दुर्गा पूजा के पावन त्यौहार के दौरान विशेष रूप से बिहार, बंगाल और असम जैसे राज्यों में देवी माँ की प्रतिमा बनाई जाती है। इस प्रतिमा की पूजा खासतौर से सातवीं पूजा के दिन से शुरू होती है और नवमी के बाद देवी की मूर्ति को विसर्जित कर दिया जाता है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दुर्गा माँ की प्रतिमा बनाने में कुछ ख़ास चीज़ों का इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण माना जाता है। उन ख़ास चीजों में से एक चीज़ है तवायफ़ के आंगन की मिट्टी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं की, देवी माँ की प्रतिमा बनाने में आखिर तवायफ़ के आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है।
भारतीय समाज में तवायफों को हीन नजरों से देखा जाता है
हमारे हिन्दू समाज में तवायफ एक ऐसा वर्ग है जिसे बहुत ही निरीह दृष्टि से देखा जाता है। उन्हें अपवित्र माना जाता है और समाज के हर एक कार्यक्रमों से या रीती रिवाज से उन्हें दूर रखा जाता है। लेकिन अब सवाल ये उठता है की, जब उन्हें समाज में इतनी हीन नजरों से देखा जाता है तो फिर दुर्गा पूजा जैसे पवित्र अवसर पर माँ की प्रतिमा बनाने के लिए उनके आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है। मान्यता है कि, दुर्गा पूजा के दौरान देवी माँ की प्रतिमा बनाने के लिए गौमूत्र, गोबर, गंगा किनारे की मिट्टी और तवायफ के आंगन की मिट्टी का होना अनिवार्य माना जाता है।
इसलिए इस्तेमाल की जाती है तवायफ के आंगन की मिट्टी
- ऐसा माना जाता है कि, जब कोई व्यक्ति तवायफ के घर जाता है तो उसके दरवाजे पर ही अपनी शुद्धता और पवित्रता छोड़ देता है। इसका अर्थ ये हुआ की तवायफ के आंगन में किसी भी बाहरी व्यक्ति का कोई भी शुद्धता या अशुद्धता प्रवेश नहीं करता है। लिहाजा उसके आंगन की मिट्टी भी सबसे ज्यादा पवित्र होती है।
- कहते हैं कि, हर औरत में देवी माँ का रूप होता है फिर चाहे वो कोई भी काम क्यों ना करती हो। जहाँ एक तरफ समाज में तवायफ को काफी निरीह नजरों से देखा जाता है वहीं दूसरी तरफ उसके आंगन की मिट्टी का प्रयोग देवी माँ की प्रतिमा में कर उन्हें समाज से जोड़ने का काम किया जाता है।
- चूँकि तवायफों का जीवन ऐसे काम में संलिप्त होता है जिसे ना तो समाज अच्छी नजरों से देखता है और ना ही धर्म में उसे अच्छा कर्म माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि, देवी माँ की मूर्ति में उनके आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल कर पूजा के दौरान विभिन्न मंत्रों के जाप से उनेक बुरे कर्मों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
दुर्गा पूजा के पावन त्यौहार के दौरान विशेष रूप से बिहार, बंगाल और असम जैसे राज्यों में देवी माँ की प्रतिमा बनाई जाती है। इस प्रतिमा की पूजा खासतौर से सातवीं पूजा के दिन से शुरू होती है और नवमी के बाद देवी की मूर्ति को विसर्जित कर दिया जाता है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दुर्गा माँ की प्रतिमा बनाने में कुछ ख़ास चीज़ों का इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण माना जाता है। उन ख़ास चीजों में से एक चीज़ है तवायफ़ के आंगन की मिट्टी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं की, देवी माँ की प्रतिमा बनाने में आखिर तवायफ़ के आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है।
भारतीय समाज में तवायफों को हीन नजरों से देखा जाता है
हमारे हिन्दू समाज में तवायफ एक ऐसा वर्ग है जिसे बहुत ही निरीह दृष्टि से देखा जाता है। उन्हें अपवित्र माना जाता है और समाज के हर एक कार्यक्रमों से या रीती रिवाज से उन्हें दूर रखा जाता है। लेकिन अब सवाल ये उठता है की, जब उन्हें समाज में इतनी हीन नजरों से देखा जाता है तो फिर दुर्गा पूजा जैसे पवित्र अवसर पर माँ की प्रतिमा बनाने के लिए उनके आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है। मान्यता है कि, दुर्गा पूजा के दौरान देवी माँ की प्रतिमा बनाने के लिए गौमूत्र, गोबर, गंगा किनारे की मिट्टी और तवायफ के आंगन की मिट्टी का होना अनिवार्य माना जाता है।
इसलिए इस्तेमाल की जाती है तवायफ के आंगन की मिट्टी
- ऐसा माना जाता है कि, जब कोई व्यक्ति तवायफ के घर जाता है तो उसके दरवाजे पर ही अपनी शुद्धता और पवित्रता छोड़ देता है। इसका अर्थ ये हुआ की तवायफ के आंगन में किसी भी बाहरी व्यक्ति का कोई भी शुद्धता या अशुद्धता प्रवेश नहीं करता है। लिहाजा उसके आंगन की मिट्टी भी सबसे ज्यादा पवित्र होती है।
- कहते हैं कि, हर औरत में देवी माँ का रूप होता है फिर चाहे वो कोई भी काम क्यों ना करती हो। जहाँ एक तरफ समाज में तवायफ को काफी निरीह नजरों से देखा जाता है वहीं दूसरी तरफ उसके आंगन की मिट्टी का प्रयोग देवी माँ की प्रतिमा में कर उन्हें समाज से जोड़ने का काम किया जाता है।
- चूँकि तवायफों का जीवन ऐसे काम में संलिप्त होता है जिसे ना तो समाज अच्छी नजरों से देखता है और ना ही धर्म में उसे अच्छा कर्म माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि, देवी माँ की मूर्ति में उनके आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल कर पूजा के दौरान विभिन्न मंत्रों के जाप से उनेक बुरे कर्मों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
इस नवरात्रि यदि करने जा रहे हैं दुर्गा सप्तसती का पाठ तो ध्यान रखें इन बातों का !
गौरतलब है की तवायफ भी इसी समाज का एक हिस्सा है जिसे हिस्सा नहीं माना जाता है। ये समाज ही उन्हें इस तरह के कामों में लिप्त होने के लिए मजबूर करती है और बाद में उन्हें समाज का हिस्सा मानने से इंकार करती है। गनीमत है की दुर्गा पूजा जैसे अवसर पर कम से कम उनके आँगन की मिट्टी को माँ की प्रतिमा में इस्तेमाल कर एक तरह से उन्हें समाज से जोड़ने की कोशिश की जाती है।
गौरतलब है की तवायफ भी इसी समाज का एक हिस्सा है जिसे हिस्सा नहीं माना जाता है। ये समाज ही उन्हें इस तरह के कामों में लिप्त होने के लिए मजबूर करती है और बाद में उन्हें समाज का हिस्सा मानने से इंकार करती है। गनीमत है की दुर्गा पूजा जैसे अवसर पर कम से कम उनके आँगन की मिट्टी को माँ की प्रतिमा में इस्तेमाल कर एक तरह से उन्हें समाज से जोड़ने की कोशिश की जाती है।