चैत्र नवरात्रि का पर्व अपने चरम पर है। सनातन धर्म के अनुयायी हर रूज़ नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ देवी के चरणों में अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हैं। यूं तो चैत्र नवरात्रि में माता भगवती के नौ रूपों की पूजा होती है लेकिन माता के कई और भी रूप हैं। इनमें से माता के कुछ रूप बेहद ही सौम्य हैं जबकि कुछ रूपों को देख कर आपको भय भी लग सकता है।
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ऐसे में आज हम आपको माता के एक ऐसे रूप के बारे में बताने जा रहे हैं जहां माता का वह रूप मौजूद है जिसमें माता का सर उनके धड़ से अलग है।
माँ छिन्नमस्तिका का मंदिर
देश की खनिज सम्पदा से भरपूर झारखंड राज्य की राजधानी से लगभग 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में भैरवी भिड़ा और दामोदर नदी के संगम पर मौजूद है माता छिन्नमस्तिका का अति प्राचीन मंदिर। माता का यह मंदिर लगभग 6 हजार साल पुराना बताया जाता है। मंदिर की सबसे खास बात यहाँ मौजूद माता भगवती का वह रूप है जिसमें माता ने अपना कटा हुआ सिर अपने हाथ में थाम रखा है।
माँ छिन्नमस्तिका के मंदिर को लगभग 6 हजार साल पुराना बताया जाता है। पुराणों में भी रजरप्पा मंदिर का ज़िक्र है। यह मंदिर देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि दुनिया में सबसे प्रभावी शक्तिपीठ असम में मौजूद माँ कामाख्या का मंदिर है लेकिन इसके बाद माता छिन्नमस्तिका के मंदिर का ही स्थान आता है।
माता छिन्नमस्तिका का रूप माता भगवती की उन दस महाविद्याओं में शामिल हैं जो किसी भी जातक को सिद्धि देने के लिए जानी जाती हैं। माता के दस महाविद्याओं की पूजा गुप्त नवरात्रि के दौरान होती है। जिन पाठकों को इस बात की जानकारी नहीं है कि गुप्त नवरात्रि क्या होती है, उन्हें आसान भाषा में बता दें कि प्रत्येक वर्ष चार नवरात्रि होती है जिसमें से दो प्रत्यक्ष और दो गुप्त नवरात्रि होती हैं। माता भगवती ने छिन्नमस्तिका का यह रूप कैसे धारण किया इसको लेकर एक कथा है।
क्या है माता छिन्नमस्तिका की कथा?
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवी भगवती अपनी सखियों के साथ नदी में स्नान करने गईं। तभी अचानक उनकी सखियों को बहुत तेज भूख लग गयी। लेकिन देवी की दोनों सखियां भूख और प्यास से बेहाल होने लगीं। उनका चेहरा सफ़ेद से काला पड़ने लगा। तब देवी ने अपने ही खड़ग से अपनी गर्दन काट ली जिसके बाद उनकी गार्डन से तीन रक्त की धारा फूट पड़ी। जिसमें से दो रक्त की धाराओं से देवी की सखियों की भूख मिटी जबकि एक धारा का पान स्वयं देवी ने किया।
माता छिन्नमस्तिका का यही रूप मंदिर में भी मौजूद है जिसमें वह अपना सिर अपने ही हाथ में थामे खड़ी हैं और उनके गले से तीन रक्त धारा निकल रही है। मंदिर में मौजूद शिलाखंड पर माता की तीन आँखें अंकित हैं। माता का बायाँ पाँव आगे बढ्ने की मुद्रा में है और माता कमल के पुष्प पर खड़ी हैं। माता छिन्नमस्तिका के पाँव के नीचे कामदेव और रति सोये हुए हैं।
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ऐसे में आपको कभी रांची या रजरप्पा के निकट जाने का मौका मिले तो रजरप्पा मंदिर में माँ छिन्नमस्तिका के इस दिव्य रूप का दर्शन करना बिल्कुल भी मत भूलिएगा। मान्यता है कि माँ छिन्नमस्तिका अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। वैसे तो यहाँ साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ माता के दर्शन के लिए जमा रहती है लेकिन इन श्रद्धालुओं की संख्या चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान लगभग दोगुनी हो जाती है।
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