पढ़ें भगवान गणेश से जुड़ी सात पौराणिक कहानियां | Ganesha Story

भगवान श्री गणेश लोगों के विघ्नों को हरने वाले हैं । इसलिये हर शुभ काम से पहले उनको पूजा की जाती है और उनसे यह मन्नत मांगी जाती है कि वो काम को सफलतापूर्वक संपन्न कराएं। आज हम अपने इस लेख में भगवान गणेश से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं। 

अपनी बुद्धिमानी से एक बार में ही सारे देवताओं को गणेश जी ने भेजा निमंत्रण 

गणेश जी को बुद्धि और विवेक का देवता भी माना जाता है। यह कहानी भी उनके इन्हीं गुणों से जुड़ी है। शास्त्रों के अनुसार एक बार भगवान शिव के मन में एक यज्ञ के अनुष्ठान का विचार आया। इस विचार को मूर्त रुप देने के लिये उन्होंने यज्ञ की तैयारियां करनी शुरु कर दीं। शिव जी के अनुष्ठान को सफल बनाने के लिये शिव जी के गण अलग-अलग जिम्मेदारियां लेकर काम करने लगे। लेकिन यज्ञ तभी पूर्ण रुप से सफल होता जब सारे देवता इस यज्ञ में शिरकत करते। इसलिये सबसे बड़ा काम यह था कि आखिर किस को देवाताओं को निमंत्रण देने की जिम्मेदारी दी जाए, क्योंकि शिव जी इस यज्ञ को जल्द से जल्द आरंभ करना चाहते थे इसलिये निमंत्रण देने के लिये समय बहुत कम था। यज्ञ का निमंत्रण देने के लिये ऩिमंत्रण देने वालों को अलग-अलग लोकों का भ्रमण करना पड़ता हैं। इसके साथ ही एक चुनौती यह भी थी कि निमंत्रण देने वाला कहीं देवताओं के साथ ऐसा व्यवहार न कर दे कि वो रुष्ट हो जाएं औऱ यज्ञ में आने के लिये इंकार कर दें। बहुत सोचने के बाद यह ऩिष्कर्ष निकला कि गणेश को यह दायित्व सौंपा जाए क्योंकि बुद्धि और विवेक के मामले में वो सबसे श्रेष्ठ हैं। भगवान गणेश को जब यह जिम्मेदारी सौंपी गई तो उनके सामने भी यह चुनौती आयी कि इतने कम समय में सबको ऩिमंत्रण कैसे दिया जाएगा। उनकी सवारी मूसक की गति भी इतनी तीव्र नहीं थी की वो इस काम को जल्दी खत्म कर पाएं। इस समस्या को दूर करने के लिये गणेश जी ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया। उन्होंने विचार किया कि समस्त देवताओं का वास शिव में है अगर शिव को ही प्रसन्न किया जाए तो सब देवता स्वयं ही प्रसन्न हो जाएंगे। ये सोचकर गणेश जी ने भगवान शिव की पूजा की और उनके समक्ष ही सारे निमंत्रण पत्र समर्पित कर दिये। ऐसा करके सारे देवताओं को निमंत्रण पहुंच गया और सब देवता नियत समय पर यज्ञ में उपस्थित हुए।  

कैसे एकदंत कहलाये गणेश जी 

गणेश जी को एकदंत कहा जाता है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि ऐसा क्यों है। गणेश जी को एकदंत कहे जाने के पीछे की कहानी आज हम आपको बताते हैं। ब्रह्मवैवर्त वर्णित एक व्रतांत के अनुसार भगवान शिव के परम भक्त परशुराम एक बार शिव और पार्वती के दर्शन के लिये कैलाश पहुंचे, जिस वक्त वो कैलाश पहुंचे उस वक्त भगवान शिव विश्राम कर रहे थे और पहरे पर गणेश जी थे। जब परशुराम शिव से मिलने के लिये आगे बढ़ने लगे तो गणेश ने उन्हें रोका और इसी बीच परशुराम ने गणेश जी को धक्का दे दिया। चूंकि परशुराम एक ब्राह्मण थे इसलिये गणेश जी उनपर वार करने से बच रहे थे लेकिन जब परशुराम नहीं माने तो गणेश जी ने अपनी सूंड पर उन्हें पकड़कर चारों दिशाओं में परशुराम को घूमा दिया जब गणेश जी ने परशुराम को छोड़ा तो वो कुछ देर तो शांत रहे लेकिन जैसे ही उन्हें अपने अपमान का अहसास हुआ तो उन्होंने अपने फरसे से गणेश जी पर वार कर दिया, चूंकि यह फरसा स्वयं शिव जी ने ही उन्हें दिया था, इसके वार को गणेश जी विफल नहीं करना चाहते थे इसलिये अपने एक दांत पर फरसे के वार को झेल उन्होंने झेल लिया। तब से गणेश जी को एकदंत कहा जाने लगा।  

जब शनि की दृष्टि गणेश पर पड़ी

वैसे तो गणेश जी के जन्म और उनके हाथी के सिर के बारे में यही कहानी प्रचलित है कि माता पार्वति ने मिट्टी से एक बालक बनाकर उसमें प्राण डाले और उसे पहरे पर रख दिया। इस बालक ने शिव जी को पार्वति से मिलने से रोका और शिव जी ने उसका धड़ सिर से अलग कर दिया और उसके बाद एक गज का सिर बालक गणेश के धड़ पर स्थापित किया गया। हालांकि ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक अन्य कथा गणेश जी से जुडी है। इस कथा के अनुसार एक बार शनि देव माता पार्वति के दर्शन करने कैलाश गये जब वो वहां पहुंचे तो माता पार्वति गणेश जी को नहला रही थीं। शनि देव नजरें नीचे करके माता पार्वति के सामने खड़े हो गये, माँ पार्वति ने उनसे नजर नीचे करके खड़े होने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी ने उन्हें श्राप दिया है कि वो जिसे भी देखेंगे उसका नाश हो जाएगा। उनकी इस बात पर पार्वति ने कहा कि आप मेरे पुत्र गणेश को देखें, शनि देव पार्वति जी की बात को नकार नहीं पाए और उन्होंने बाल गणेश को देखा और उनके देखते ही गणेश जी का सिर धड़ से अलग हो गया। इसके बाद भगवान विष्णु एक गज शिशु का सिर लाए और उसे गणेश के सिर की जगह स्थापित किया। 

गणेश जी कैसे बने पाताल लोक के राजा

गणेश जी एक बार मुनि पुत्रों के साथ क्रिड़ा कर रहे थे कि तभी वहां कुछ नाग कन्याएं आयीं और उन्होंने भगवान गणेश को प्रणाम करके उनसे नागलोक चलने का आग्रह किया। गणेश जी सरल स्वभाव औऱ अपने प्रति नाग कन्याओं की आस्था को देखकर उनके साथ नाग लोक चले गये। नाग लोक में नाग कन्याओं द्वारा उनका भव्य स्वागत किया गया। इसके बाद जब नागराज वासुकि से उनकी भेंट हुई तो वासुकि ने उनके रुप का मजाक उड़ाना शुरु कर दिया गणेश जी को उनकी बात पर क्रोध आ गया और उन्होंने वासुकि के फन को कुचल दिया और उसके मुकुट को स्वयं धारण कर दिया। वासुकि के बड़े भाई को जब अपने भाई की दुर्दशा के बारे में पता चला तो वो क्रोध में आकर भाई के साथ बुरा करने वाले शख्स से प्रतिशोध लेने पहुंचे लेकिन गणेश जी को देखते ही वो उन्हें पहचान गये और फिर उन्होंने खुद गणेश जी को पाताल लोक का राजा घोषित कर दिया।     

विश्वकर्मा ने दिये गणपति को हथियार 

ऐसा माना जाता है कि एक समय भगवान शिव कैलाश को छोड़कर वन में जीवन बिताने लगे थे। उस समय भगवान गणेश की उम्र मात्र 6 वर्ष थी। विश्वकर्मा को जब पता चला कि शिव इन दिनों वन में निवास कर रहे हैं तो वो शिव जी क दर्शन के लिये उनके पास गये। विश्वकर्मा जब शिव जी से बात कर रहे थे तो उसी समय गणपति भी वहां आ गए और उन्होंने विश्वकर्मा से पूछा कि आप मुझसे मिलने आए हैं तो मेरे लिये क्या लाए हैं। इसपर विश्वकर्मा ने कहा कि हे प्रभु आपके लिये मैं क्या ला सकता हूं आप तो स्वयं ही सच्चिदानंद हैं। हालांकि बाल गणेश की लालसा को देखते हुए उन्होंने कुछ वस्तुएं गणेश जी को भेंट कीं जिनमं पद्म, तीखा अंकुश और पाश शामिल थे। इन आयुधों को पाकर गणेश जी बहुत प्रसन्न हुए और ऐसा माना जाता है कि एक बार अपने मित्रों के साथ खेलते हुए उन्होंने इन आयुधों से दैत्य वृकासुर का संहार कर दिया था। 

जब ऋषि गौतम का भोजन चुराया गणपति ने 

नटखट बाल गणेश ने एक बार ऋषि गौतम की रसोई से भोजन चुरा लिया था हालांकि गौतम ऋषि ने उनकी यह चोरी पकड़ ली और इस बारे मेें माता पार्वती को बता दिया। माता ने सजा देते हुए गणेश जी को एक कुटिया में रस्सी से बांध दिया। इसके बाद माता पार्वति काम करने लगीं लेकिन बार-बार उनको अहसास होता कि जैसे गणेश शिव के गणों के साथ खेल रहे हैं, कभी उनको लगता कि वो उनके गोद में हैं। हालांकि जब भी वह कुटिया में जाती उन्हें आम बच्चों की तरह गणेश जी वहां रोते नजर आते। अंत में स्नेहवश माता पार्वति ने गणेश जी को रस्सियों से मुक्त कर दिया। 

जब विष्णु भगवान के विवाह में गणपति को बनाया गया द्वारपाल 

कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह हुआ तो, गणेश जी को विवाह में नहीं ले जाने का फैसला हुआ। इसका कारण यह था कि वो ज्यादा भोजन करते हैं। हालांकि यह बात गणेश जी को नहीं बताई गई। जब बारात निकल चुकी थी तो द्वार पर बैठे गणेश जी को नारद मुनि ने देखा और उनको असलियत के बारे में बताया। जब गणेश जी को हकीकत पता चली तो उन्हें क्रोध आया और उन्होंने मूसकों की सेना को भेजकर उस जमीन को खुदवा दिया जहां से बारात गुजरनी थी। जमीन खोदे जाने के कारण देवताओं के रथ जमीन में धंस गये इसके बाद देवताओं को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने भगवान गणेश को मनाया और सम्मान के साथ उन्हें विवाह में ले गये। 

हम आशा करते हैं कि हमारा यह लेख आपको पसंद आया होगा। हम आपके सुखद भविष्य की कामना करते हैं।