लोहड़ी का त्यौहार उत्तर भारत में बेहद ही धूमधाम और जोरो-शोरों के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। कहा जाता है कि, अगर किसी व्यक्ति को लोहड़ी की असली धूम देखनी हो तो उसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, या दिल्ली की लोहड़ी अवश्य देखनी चाहिए।
अपने इस लोहड़ी विशेष आर्टिकल में आज हम जानेंगे वर्ष 2022 में लोहड़ी का त्यौहार किस दिन मनाया जाएगा? इस दिन का क्या महत्व होता है? साथ ही जानेंगे लोहड़ी के दिन किन विशेष उपायों को करके आप अपने जीवन में सुख, समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं? साथ ही यहां हम आपको इस बात की जानकारी भी प्रदान कर रहे हैं कि लोहड़ी के दिन अग्नि में अपनी राशि के अनुसार किस चीज की आहुति देकर आप इस दिन को और भी सुखी और शुभ बना सकते हैं।
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लोहड़ी 2022: तिथि और मुहूर्त
वर्ष 2022 में लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति से 1 दिन पहले यानी 13 जनवरी, 2022 गुरुवार के दिन मनाया जाएगा।
लोहड़ी संक्रांति का क्षण: 02 बजकर 43 मिनट
ऊपर दिया गया मुहूर्त नई दिल्ली के लिए मान्य है। अपने शहर के अनुसार लोहड़ी शुभ मुहूर्त जाने के लिए क्लिक करें।
लोहड़ी पर बन रहा है शुभ योग
इस वर्ष की लोहड़ी पर शुभ योग दोपहर 12:35 तक है। इसके बाद शुक्ल योग शुरू हो जाएगा। शुभ काम करने के लिए इस योग को बेहद शुभ माना जाता है। इसके अलावा लोहड़ी के दिन रवि योग भी बन रहा है। रवि योग सुबह 7:15 से शुरू हो जाएगा और यह शाम को 5 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। यानी कि इस बार लोहड़ी रवि योग में मनाई जाएगी।
क्यों मनाई जाती है लोहड़ी?
दरअसल लोहड़ी का त्यौहार फसल काटने के दौरान मुख्य रूप से पंजाब में मनाया जाता है। फसल काटने के बाद किसानों के घर में पैसे आते हैं और इससे खुशियां बढ़ती हैं और इसी खुशी को जश्न के रूप में भव्य ढंग से मनाने के लिए लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन होलिका (लकड़ियों के गट्ठर जोड़कर अग्नि) जलाई जाती है। जिसके इर्द-गिर्द घूम कर लोग अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं और इस अग्नि में गुड़, गजक, और तिल इत्यादि डालते हैं।
लोहड़ी के इस भव्य त्योहार के दौरान किसान वर्ग के लोग अपने ईश्वर का आभार प्रकट करते हैं जिनकी मदद से फसल अच्छी होती है और आने वाले वर्षों में भी भगवान की ऐसी कृपा बनी रहे और फसल का ज्यादा मात्रा में उत्पादन हो इस बात की कामना मांगी जाती है।
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लोहड़ी के त्यौहार से जुड़े रीति रिवाज
- लोहड़ी उत्सव के दौरान छोटे-छोटे बच्चे घर-घर जाकर लोकगीत गाते हैं। जिससे खुश होकर लोग उन्हें खाने की चीजें, मिठाइयां, और पैसे देते हैं। कहा जाता है इस दिन किसी भी घर से किसी बच्चे का खाली हाथ लौटना शुभ नहीं होता है। ऐसे में लोग बच्चों को अपनी अपनी यथाशक्ति के अनुसार चीनी, गुड़, गजक, मक्का, मूंगफली, देते हैं।
- शाम के समय लोग आग जलाते हैं और संगीत नृत्य करते हुए इस दिन का लुफ्त उठाते हैं।
- इसके बाद रात में मक्के की रोटी और सरसों का साग और खीर जैसे पारंपरिक भोजन बनाएं और खाए जाते हैं।
- पंजाब में बहुत सी जगहों पर इस दिन पतंग प्रतियोगिता भी की जाती है जिसमें लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
लोहड़ी के त्यौहार में अवश्य होता है दुल्ला भट्टी का ज़िक्र। जाने कौन थे यह दुल्ला भट्टी?
पंजाब में दुल्ला भट्टी को रॉबिनहुड के नाम से जाना जाता है। दरअसल लोहड़ी के कई गीतों में आपको दुल्ला भट्टी का ज़िक्र भी मिलेगा। कहा जाता है दुल्ला भट्टी अकबर के समय में एक लुटेरा हुआ करते थे। हालांकि दुल्ला भट्टी केवल धनी लोगों को लूटते थे और लुटे हुए पैसे वह गरीब लोगों को दे दिया करते थे। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने पंजाब की गरीब लड़कियों को बेचने से भी बचाया था। जिसकी वजह से आज भी लोग उन्हें सम्मान की नज़रों से देखते हैं और उन्हें रॉबिनहुड के नाम से जानते हैं। पंजाब में दुल्ला भट्टी को योद्धा का दर्जा प्राप्त है।
लोहड़ी के त्यौहार से जुड़ी ज्योतिषीय मान्यताएं
लोहड़ी का त्यौहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार विक्रम संवत और मकर संक्रांति से संबंधित माना जाता है। इस त्यौहार को शरद ऋतु के खत्म होने का प्रतीक भी माना गया है। इसके अलावा किसानों के लिए यह त्योहार नव वर्ष के समान होता है।
लोहड़ी से जुड़ी एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि, यह त्योहार इस बात का प्रतीक है कि आने वाली पीढ़ियां हमारे बड़े बुजुर्गों का सम्मान करें और हमारे संस्कार और रीति-रिवाजों का पालन करना सीखें।
इसके अलावा इस त्यौहार का स्वास्थ्य से भी संबंध होता है। दरअसल लोहड़ी से पहले ठंड बहुत ज्यादा होती है। ऐसे में आग जलाने से हमारे शरीर को गर्मी मिलती है। इसके अलावा इस दिन आग में हम जो भी चीजें डालते हैं जैसे गुड़, तिल, मूंगफली, गजक, इत्यादि इससे हमारे शरीर को उचित पोषक तत्व मिलते हैं।
लोहड़ी के त्यौहार का असल अर्थ जानने के लिए इस शब्द का विच्छेद करें तो आपको इस त्यौहार का मतलब और महत्व बेहद ही आसानी से पता चल जाएगा। दरअसल लोहड़ी शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है, ‘लो’ अर्थात लकड़ी, ‘ओ’ अर्थात उपले, और ‘डी’ यानी रेवड़ी। यही तीन चीज इस त्यौहार का केंद्र बिंदु होते हैं।
लोहड़ी पर्व के अलग-अलग नाम
हिंदू धर्म में कई ऐसे त्योहार होते हैं जिन्हें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। यही भारत और इन त्योहारों की विविधता और खूबसूरती को दर्शाता है। ऐसे में लोहड़ी का जिक्र हुआ है तो बात भी लोहड़ी की करते हैं।
लोहड़ी के त्यौहार को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है। पंजाब के कुछ ग्रामीण इलाकों में आज भी इसे लोरी ही कहा जाता है। कहा जाता है संत कबीर की पत्नी को लोही कहा जाता था और उन्हीं के नाम पर इस त्यौहार का नाम लोहड़ी पड़ गया।
इसके अलावा कई जगहों पर लोहड़ी को तिलोरी/तिलोड़ी भी कहा जाता है। तिलोरी का अर्थ हुआ तिल और रोड़ी अर्थात गुड़ से बनी हुई।
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इस लोहड़ी पर राशि अनुसार अग्नि में इन चीजों की दें आहुति
- मेष राशि: मेष राशि के लोग एक जोड़ा लौंग, तिल, और गुड़ दाएं हाथ से अग्नि में अर्पित करें।
- वृषभ राशि: वृषभ राशि के लोग लोहड़ी की अग्नि में एक मुट्ठी साबुत चावल और एक मुट्ठी मिश्री अपने दाएं हाथ से डालें।
- मिथुन राशि: मिथुन राशि के लोग अग्नि में एक मुट्ठी साबुत मूंग और गेहूं अपने दाएं हाथ से डालें।
- कर्क राशि: कर्क राशि के जातक लोहड़ी के दिन एक मुट्ठी चावल और एक मुट्ठी खील बताशे अग्नि में डालें।
- सिंह राशि: सिंह राशि के लोग एक मुट्ठी साबुत गेहूं, खील और बताशे दाएं हाथ से अग्नि में डालें।
- कन्या राशि: कन्या राशि के लोग लोहड़ी के दिन एक मुट्ठी मूंगफली, दो लौंग, और बताशे दाएं हाथ से अग्नि में डालें।
- तुला राशि: तुला राशि के लोग लोहड़ी पर एक मुट्ठी ज्वार, दो लौंग और दो ही बताशे दायें हाथ से अग्नि में डालें।
- वृश्चिक राशि: वृश्चिक राशि के लोग एक मुट्ठी मूंगफली, एक मुट्ठी रेवड़ी, और दो लौंग दाएं हाथ से अग्नि में डालें।
- धनु राशि: धनु राशि के लोग एक मुट्ठी चने की दाल, एक हल्दी की गांठ, दो लौंग और एक बताशा दाएं हाथ से अग्नि में डालें।
- मकर राशि: मकर राशि के लोग एक मुट्ठी काली सरसों, दो लौंग, और एक जायफल दाएं हाथ से अग्नि में डालें।
- कुंभ राशि: कुंभ राशि के लोग एक मुट्ठी काला चना, दो लौंग और दो बताशे दाएं हाथ से अग्नि में डालें।
- मीन राशि: मीन राशि के लोग एक मुट्ठी पीली सरसों, तीन पत्ती केसर, तीन साबुत हल्दी की गांठ और एक मुट्ठी रेवड़ी अग्नि में डालें।
लोहड़ी के उपाय
- यदि आपके जीवन में दुर्भाग्य साए की तरह जुड़ गया है तो लोहड़ी के दिन गरीब लड़कियों को रेवड़ियाँ स-सम्मान दें और उनका आशीर्वाद लें। आपको दुर्भाग्य से छुटकारा अवश्य मिलेगा।
- यदि आपके घर में हमेशा कलह-क्लेश और लड़ाई झगड़े होते रहते हैं तो लोहड़ी के दिन काली गाय को उड़द की दाल की खिचड़ी खिलाएं। इससे आपका पारिवारिक जीवन सुखमय होगा और कलह क्लेश दूर होंगे।
- यदि आप अपने जीवन में समृद्धि पाना चाहते हैं तो लोहड़ी के दिन गरीब और जरूरतमंद लोगों को तिल और रेवड़ी बांटे।
- यदि आपके जीवन में निरंतर आर्थिक परेशानियां बनी हुई है तो लोहड़ी के दिन लाल कपड़े में अपनी यथाशक्ति के अनुसार गेंहू बांध लें और फिर इसे किसी जरूरतमंद को दे दें ।आपको आर्थिक परेशानियों से छुटकारा अवश्य मिलेगा।
- अगर आपके घर में नकारात्मक शक्तियों का वास होने लगा है तो लोहड़ी के दिन तिल से हवन करें और गरीब और ज़रूरतमंद लोगों को तिल का दान करें और स्वयं भी इस दिन तिल अवश्य खाएं।
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लोहड़ी के अगले दिन मनाया जाएगा पोंगल। जानें इस त्यौहार का महत्व और शुभ मुहूर्त
पोंगल का त्योहार 14 जनवरी 2022 शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा।
पोंगल संक्रांति मुहूर्त संक्रांति पल: 14:12:26
ऊपर दिया गया मुहूर्त नई दिल्ली के लिए मान्य है। अपने शहर के अनुसार शुभ मुहूर्त जाने के लिए यहाँ क्लिक करें।
पोंगल का त्योहार मुख्य रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है। यह त्यौहार सूर्य देव के उत्तरायण होने पर यानी मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर संक्रांति के पर्व के साथ मनाया जाता है। यानी कि उत्तर भारत में मकर संक्रांति का पर्व जिस तरह से मनाया जाता है ठीक उसी तरह से तमिलनाडु में पोंगल का त्योहार मनाया जाता है।
पोंगल का महत्व
लोहड़ी के त्यौहार की ही तरह पोंगल का त्यौहार भी कृषि पर्व होता है। जनवरी के महीने में तमिलनाडु में गन्ने और धान की फसलें पककर तैयार होती है जिन्हें देखकर किसान खुश होते हैं और प्रकृति और देवताओं का आभार प्रकट करने के लिए इंद्र देव, सूर्य देव, खेती से संबंधित पशु जैसे गाय, बैल की पूजा करते हैं। पोंगल का त्यौहार चार दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान घर की साफ सफाई की जाती है। इसके अलावा पोंगल के त्यौहार की सबसे प्रमुख बात यह होती है कि तमिल भाषी लोग पोंगल के शुभ अवसर पर अपने जीवन से बुरी आदतों का त्याग कर देते हैं।
कैसे मनाया जाता है पोंगल का त्योहार?
- यह त्यौहार इंद्रदेव को समर्पित होता है। अच्छी बारिश और खेती के लिए इंद्र देव की पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों में पुराने सामानों को निकालकर होली जलाते हैं और इस दौरान महिलाएं और लड़कियां अग्नि के चारों ओर घूमकर लोक नृत्य करती हैं और गीत गाती हैं। इसे भोगी पोंगल कहते हैं।
- इसके बाद आता है सूर्य पोंगल। इस दिन खीर बनाई जाती है। इस दिन लोग खुले आंगन में हल्दी की गांठ को पीले धागे में पिरोते हैं और फिर पीतल या मिट्टी की हांडी के ऊपर बांधकर खिचड़ी पकाते हैं। खिचड़ी में उबाल आने के बाद इसमें दूध और घी डाली जाती है। पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देवता की पूजा की जाती है। इस मौके पर लोग खुशी से नाचते और गाते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
- पोंगल का तीसरा दिन होता है मात्तु पोंगल। इस दिन कृषि से संबंधित लोग गाय, बैल, और सांड की पूजा करते हैं। इस दिन इन पशुओं को सजाया जाता है और जलीकट्टू जैसे प्रमुख आयोजन भी किए जाते हैं।
- पोंगल त्योहार के आखिरी दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है। इस दिन घरों को लोग फूलों से सजाते हैं। अपने घर के मुख्य द्वार पर पर आम और नारियल के पत्तों का तोरण लगाते हैं। महिलाएं रंगोली बनाती है और क्योंकि इस दिन से पोंगल के त्यौहार का समापन हो जाता है इसलिए लोग एक दूसरे को मिलकर बधाइयां देते हैं मिठाइयां देते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
बेहद शुभ इस पोंगल त्यौहार का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व माना जाता है। कहते हैं इस त्योहार पर गाय के दूध को उबला जाता है। इस दूध में उबालने के समय जितना उबाल आये या उफान आता है उसे बेहद शुभ माना गया है। कहते हैं दूध में जितना उबाल आता है ठीक उसी तरह मनुष्य का मन भी शुद्ध होता है और जीवन में समृद्धि आती है।
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