हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व बताया गया है। भीष्म पंचक को ‘पंच भीखू’ के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक महीने के अंतिम दिनों में एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक पंचभीखू व्रत रखे जाते हैं। पंचभीखू 8 नवंबर, शुक्रवार से शुरू होकर 12 नवंबर, मंगलवार तक चलेंगे। धर्मग्रंथों में कार्तिक स्नान को बहुत महत्त्व दिया गया है, इसीलिए कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं।
पुराणों के अनुसार भीष्म पितामह जब तीरों की शैया पर लेटे थे, तो उन्होंने इच्छा मृत्यु की कामना करते हुए इन व्रतों का पालन किया था, इसलिए यह ‘भीष्म पंचक’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। भीष्म पंचक व्रत बहुत ही मंगलकारी और पुण्यदायी है, इसीलिए ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करता है, उसे मृत्यु के बाद उत्तम गति प्राप्त होती है। यह व्रत इंसान के द्वारा किये गए पाप कर्मों से उसे मुक्ति प्रदान करने वाला और कल्याणकारी होता है। कहते हैं कि जो भी व्यक्ति यह व्रत रखता है, वह हमेशा स्वस्थ रहता है, और उसे प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। चलिए आज इस लेख में आपको बताते हैं भीष्म पंचक व्रत में की जाने वाली पूजा विधि और कथा के बारे में –
भीष्म पंचक व्रत पूजा विधि
- भीष्म पंचम व्रत में चार द्वार वाला एक मण्डप बनाते हैं।
- मंडप को पूरी तरह गाय के गोबर से लीपने के बाद बीच में एक वेदी का निर्माण किया जाता है।
- वेदी पर तिल रखकर उसपर कलश स्थापित किया जाता है।
- इसके बाद व्रती भगवान वासुदेव की पूजा करते हैं।
- इस व्रत में कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि तक घी के दीपक जलाए जाते हैं।
- भीष्म पंचक व्रत करने वाले व्यक्ति को पांच दिनों तक संयम और सात्विकता का पालन करते हुए यज्ञा कर्म आदि करना चाहिए।
- इस व्रत में गंगापुत्र भीष्म की तृप्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण करने का भी विधान है।
क्यों रखते हैं भीष्म पंचक व्रत
महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत हुई, तब श्रीकृष्ण पांडवों को भीष्म पितामह के पास लेकर गए। बाणों की सैय्या पर लेटे हुए भीष्म सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे थे। श्रीकृष्ण ने भीष्म से अनुरोध किया कि वे पांडवों को कुछ ज्ञान प्रदान करें। कृष्ण के अनुरोध पर उन्होंने पांडवों को राजधर्म, वर्णधर्म और मोक्षधर्म का ज्ञान दिया। एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि यानि पांच दिनों तक भीष्म द्वारा ज्ञान देने का यह क्रम चलता रहा। भीष्म ने जब पांडवों को पूरा ज्ञान दे दिया, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि आपने जो इन पांच दिनों में यह ज्ञान दिया है, यह पांच दिन आज से बहुत ही मंगलकारी हो गए हैं। भविष्य में इन पांच दिनों को ‘भीष्म पंचक’ के नाम से जाना जाएगा।
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