कुंडली में मौजूद ये पांच खतरनाक दोष बिगाड़ सकते हैं जीवन, जानें इनके निवारण के ज्योतिषीय उपाय

आपने अक्सर कुंडली में मौजूद दोषों के बारे में सुना होगा लेकिन, वास्तव में यह दोष क्या होते हैं? दरअसल यह दोष ग्रहों के कारण किसी व्यक्ति की कुंडली में बनते हैं। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई अशुभ ग्रह किसी शुभ ग्रह के साथ संयोजन करता है ऐसी स्थिति में कुंडली दोष का निर्माण होता है। इन कुंडली दोषों की वजह से व्यक्ति के जीवन में तमाम तरह के दुख जैसे, आर्थिक स्थिति से संबंधित दुख, करियर में असफलताएं, रिश्तो के संबंध में दिक्कतें, तलाक, स्वास्थ्य से संबंधित बीमारियां, और समाज में मान सम्मान और प्रतिष्ठा की हानि जैसे कई स्थाई प्रभाव पड़ने लगते हैं।

ऊपर दी गई सभी समस्याएं करियर, आर्थिक, रिश्ते के संबंध में समस्याएं, तलाक, स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं एक ही तार से जुड़ी हैं जो है पैसा। यदि व्यक्ति के पास बहुत सारा धन या यूं कहिए पर्याप्त मात्रा में धन नहीं होगा तो व्यक्ति अपने जीवन को अच्छे तरीके से नहीं जी पाएगा और उसे जीवन में तमाम तरह की परेशानियां और दिक्कतें तकलीफें उठानी पड़ सकती है।

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यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह शुभ स्थिति में नहीं है तो ऐसे व्यक्ति को नौकरी से संबंधित समस्याएं, अपनी नौकरी में असंतुष्टि, कम वेतन, वरिष्ठ अधिकारियों से तमाम तरह की समस्याएं होने की आशंका प्रबल हो जाती है। अगर व्यक्ति के पास सही नौकरी नहीं है तो स्वभाविक सी बात है व्यक्ति के पास पर्याप्त मात्रा में धन भी नहीं होगा जिससे उनके जीवन में अलग-अलग मोर्चों पर परेशानियां बढ़ने या उत्पन्न होने लगेंगी। ऐसा मुख्य तौर पर तब होता है जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र और बृहस्पति ग्रह पीड़ित अवस्था या अशांत अवस्था में मौजूद हो तो।

ज्योतिष के अनुसार शुक्र ग्रह धन से संबंधित माना जाता है और बृहस्पति ग्रह धन या संपत्ति के विस्तार और धन के अधिक संचय की गुंजाइश पैदा करता है।

अब हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कुंडली में मौजूद पांच ऐसे दोषों के बारे में जिनसे व्यक्ति का जीवन परेशानियों में घिरने लग जाता है।

कुंडली के ये पांच दोष बढ़ा देते हैं जीवन की परेशानियाँ 

वैदिक ज्योतिष में यूं तो कई दोष बताए गए हैं लेकिन इन सभी दोषों में सबसे प्रमुख दोष हैं: कालसर्प दोष, मंगल दोष, केन्द्राधिपति दोष, पितृ दोष, और गुरु चांडाल दोष।

कालसर्प दोष

कुंडली में कालसर्प दोष राहु और केतु के नोड्स के कारण होता है। इसके अलावा इसका एक अर्थ यह भी है कि, यदि सभी सात प्रमुख ग्रह राहु और केतु ग्रह की धुरी के भीतर होते हैं तो भी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष उत्पन्न होता है और सभी सात प्रमुख ग्रह नौकरी, धन, व्यक्तिगत जीवन, विवाह और स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में किसी व्यक्ति के लिए प्रभावी परिणाम देने में असफल रहते हैं। एस्ट्रोसेज का काल सर्प दोष कैलकुलेटर की मदद से आप जान सकते हैं कि आपकी कुंडली में यह दोष है की नहीं। साथ ही इस दोष के निवारण उपाय और अन्य छोटी-बड़ी बातों की जानकारी आपको यहाँ प्रदान की जाएगी।

यहां सात प्रमुख ग्रहों का अर्थ है, सूर्य ग्रह, चंद्रमा ग्रह, मंगल ग्रह, बुध ग्रह, बृहस्पति ग्रह, शुक्र ग्रह, और शनि ग्रह। उपरोक्त दोष विवाहित जातकों के जीवन में दुष्परिणाम पैदा कर सकते हैं। शुरुआत में तो वैवाहिक जीवन शानदार या अच्छा प्रतीत हो सकता है लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है रिश्ते में प्यार की जगह तर्क वितर्क लेने लगते हैं, रिश्ते में अहंकार से संबंधित मुद्दे उत्पन्न होने लगते हैं, और इस तरह से एक खुशहाल वैवाहिक जीवन धीरे-धीरे खत्म होने लगता है।

उदाहरण के तौर पर समझाएं तो यदि किसी व्यक्ति का लग्न मकर है और उसके लग्न भाव में राहु और सातवें भाव में केतु है और अन्य प्रमुख ग्रह राहु और केतु की धुरी के भीतर हैं तो इससे दांपत्य जीवन में पार्टनर के बीच रिश्ते में असफलताएं और व्यक्तिगत व्यवसाय से संबंधित लोगों के जीवन में समस्याएं पैदा होने की आशंका बढ़ जाती है। सातवां भाव बिजनेस के लिए जाना जाता है।

अगर बात नौकरी की करें तो इस दोष का प्रतिकूल प्रभाव दसवें भाव पर पड़ेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दसवां भाव नौकरी और प्रतिष्ठा के लिए जाना जाता है। उदाहरण के तौर पर समझाएं तो यदि किसी व्यक्ति का लग्न कर्क है और राहु चौथे भाव (तुला में) और केतु दसवें भाव में (मेष में) है और अन्य सभी प्रमुख साथ ग्रह राहु और केतु की धुरी के भीतर हैं तो राहु और केतु की यह स्थिति व्यक्ति के लिए नौकरी के मोर्चे पर नकारात्मक परिणाम दे सकती है। नौकरी से संबंधित परेशानियों का अर्थ हुआ कि नौकरी का चले जाना, या नौकरी में कम वेतन मिलना, या तमाम कोशिशें और कड़ी मेहनत करने के बाद भी व्यक्ति को सम्मान और उचित प्रशंसा ना मिलना।

इसके अलावा एक प्रमुख परेशानी है धन संबंधित परेशानी। यह समस्या तब बनती है जब राहु और केतु दूसरे और आठवें भाव में स्थित हो। दूसरा घर धन के लिए जाना जाता है और आठवां भाव धन से संबंधित बाधाओं के लिए जाना जाता है। उदाहरण के रूप में समझाएं तो, यदि व्यक्ति का लग्न कर्क और राहु दूसरे भाव में और केतु आठवें भाव में है और अन्य 7 ग्रह राहु और केतु की धुरी के भीतर होते हैं।

कालसर्प दोष निवारण के ज्योतिषीय उपाय

  • काल सर्प दोष निवारण पूजा (घर बैठे) करवाएं। 
  • माँ दुर्गा और भगवान गणेश की पूजा करें।
  • मंगलवार के दिन राहु और केतु के लिए होम अग्नि अनुष्ठान करें।
  • हनुमान चालीसा का पाठ करें। 
  • मंगलवार के दिन सांपों को दूध पिलाएं। 
  • कालसर्प दोष निवारण के लिए दुर्गा चालीसा का पाठ भी फलदाई साबित होता है।

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मंगल दोष

मंगल दोष को वैदिक ज्योतिष में बेहद ही महत्वपूर्ण दोष माना गया है और यह दोष रिश्तों में तनाव की वजह बनता है। जहां ज्योतिष के अनुसार शुक्र ग्रह प्रेम और विवाह के लिए जाना जाता है वहीं मंगल ग्रह विवाहित जोड़ों के बीच रिश्ते के लिए जाना जाता है।

कुंडली में कैसे बनता है मंगल दोष? 

व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष तब उत्पन्न होता है जब मंगल कुंडली के प्रथम, दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में मौजूद होता है। यह दोष मुख्य रूप से लग्न, फिर चंद्रमा, और फिर शुक्र ग्रह से गिना जाता है। ऊपर बताए गए सभी भावों में से सातवां और आठवां भाव सबसे ज्यादा परेशानी का सबब बनता है और अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल को सातवें और आठवें भाव में स्थित होता है तो ऐसे लोगों के अपने जीवन साथी के साथ रिश्ते असफल होने की आशंका बढ़ जाती है। दोनों (यानि पुरुष और महिला) के लिए शादी में देरी की आशंका बढ़ जाती है।

एक सफल सुखद वैवाहिक जीवन के लिए बेहद आवश्यक है कि दोनों ही जीवन साथी की कुंडली में मंगल दोष ना हो। यदि पुरुष की कुंडली में मांगलिक दोष है और उनकी पत्नी की कुंडली में मांगलिक दोष नहीं है तो विवाह के बाद रिश्ते में प्रतिकूल प्रभाव दिखाई देने लगते हैं। हालांकि यदि लड़का और लड़की दोनों की कुंडली में मंगल दोष है और विवाह से पहले विवाह मिलान किया गया है तो ऐसी स्थिति में विवाहित जीवन में कोई भी समस्या नहीं होगी।

कई बार मंगल दोष के प्रभाव के चलते जोड़ों अर्थात पति पत्नी के जीवन में संतान के जन्म में देरी के रूप में प्रतिकूल प्रभाव नजर आते हैं। हालांकि जरूरी नहीं कि उनका वैवाहिक जीवन प्रतिकूल हो।

जब मंगल चंद्रमा से दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होता है तब जातक को तनाव, मन से संबंधित परेशानियों आदि का सामना करना पड़ जाता है।

जब मंगल शुक्र से दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें, और बारहवें भाव में स्थित होता है तो ऐसी स्थिति में वैवाहिक जीवन में सामंजस्य की कमी देखने को मिलती है।

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इस स्थिति में मान्य नहीं होता है मंगल दोष

  • यदि मंगल ग्रह अपनी स्वराशि अर्थात वृश्चिक राशि और मेष राशि में हो तो मंगल दोष नहीं बनता है। 
  • यदि मंगल ग्रह किसी व्यक्ति की कुंडली में सातवें या आठवें भाव में हो और बृहस्पति ग्रह जिसे बेहद ही परोपकारी ग्रह माना गया है उसका मंगल ग्रह पर पहलू हो तो मंगल दोष रद्द हो जाता है।
  • मेष राशि और वृश्चिक राशि में जन्मे लोगों के लिए ही मंगल दोष रद्द हो जाता है क्योंकि मेष और वृश्चिक राशि पर मंगल ग्रह का ही अधिपत्य होता है। 
  • इसके अलावा यदि मंगल अन्य ग्रहों जैसे बुध, बृहस्पति, सूर्य, शनि, के साथ पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें, और बारहवें भाव, में संयोजन में है तो ऐसी स्थिति में भी मंगल दोष रद्द हो जाता है।

मंगल दोष निवारण के ज्योतिषीय उपाय

  • हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  • मंगल ग्रह के लिए होम या अग्नि अनुष्ठान करें।
  • 108 बार “ॐ भोमाय नमः” का जाप करें।
  • विधि-विधान के साथ (घर बैठे) मांगलिक दोष निवारण पूजा करवाएं।
  • मंगलवार के दिन मंदिर में देवी दुर्गा की पूजा करें और दीपक जलाएं

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केन्द्राधिपति दोष

यह दोष शुभ ग्रहों बृहस्पति, बुध, शुक्र, और चंद्रमा के कारण होता है। इनमें से बृहस्पति और बुध के कारण होने वाला यह दोष और भी गंभीर और प्रभावी हो जाता है। केंद्र भाव पहला, चौथा, सातवां, और दसवां भाव होता है। इसके बाद शुक्र और चंद्रमा का दोष आता है। उपरोक्त दोष केवल शुभ ग्रहों अर्थात बृहस्पति ग्रह, बुध ग्रह, चंद्रमा ग्रह, और शुक्र ग्रह पर लागू होता है। यह शनि, मंगल, और सूर्य जैसे ग्रहों पर लागू नहीं होता है।

कुंडली में कैसे उत्पन्न होता है यह दोष? 

यह दोष बनता कैसे है? मिथुन और कन्या लग्न के लोगों के लिए इस दोष का निर्माण तब होता है जब बृहस्पति पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में हो, और धनु और मीन लग्न के लोगों के लिए इस दोष का निर्माण तब होता है जब बुध पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में स्थित हो।

बृहस्पति ग्रह मिथुन लग्न के लोगों के लिए इस दोष के निर्माण का कारण तब बनता है जब बृहस्पति चतुर्थ भाव में हो। बता दें चौथा भाव घर, शिक्षा, रिश्तेदार, आदि के लिए जाना जाता है। जिन लोगों की कुंडली में चतुर्थ भाव में बृहस्पति हो ऐसे व्यक्तियों को शिक्षा के संदर्भ में परेशानियां उठानी पड़ती है। वहीं जिन लोगों का लग्न मिथुन हो और बृहस्पति सातवें भाव में हो ऐसे लोगों को वैवाहिक जीवन में अपने जीवन साथी के साथ प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलते हैं। इसके अलावा यदि बृहस्पति दसवें भाव में हो तो व्यक्ति को करियर से संबंधित परेशानियां जैसे नौकरी का चले जाना, नौकरी में संतुष्ट ना होना, इत्यादि परेशानियां उठानी पड़ सकती है।

ठीक इसी तरह, जिन जातकों की कुंडली में धनु राशि में बृहस्पति चौथे भाव में हो उन्हें पढ़ाई में समस्या उठानी पड़ती है। अगर बृहस्पति अपनी ही राशि में सातवें भाव में हो तो कन्या लग्न के जातकों को अपने जीवनसाथी के साथ रिश्ते में और व्यापार में दिक्कतें और समस्या उठानी पड़ सकती है।

जिन लोगों का लग्न धनु या मीन हो उनके लिए बुध ग्रह इस दोष का निर्माण करता है। उदाहरण के तौर पर समझाएं तो जिन लोगों का लग्न धनु और उनकी कुंडली में बुध चतुर्थ भाव में हो और मीन राशि के लिए बुध दुर्बल अवस्था में तो ऐसी स्थिति में बुध व्यक्ति को क्या परिणाम प्रदान कर सकता है? जिन लोगों की कुंडली में बुध चतुर्थ भाव में हो ऐसे लोगों को पढ़ाई से संबंधित परेशानी, शिक्षा की हानि, आदि गंभीर असफलताओं को झेलना पड़ सकता है।

जब धनु लग्न के जातकों की कुंडली में बुध सातवें भाव में हो तब ऐसी स्थिति में व्यक्ति को रिश्तों से संबंधित समस्याएं और अपने जीवन साथी के साथ अलगाव तक के गंभीर परिणाम उठाने पड़ सकते हैं। इसके अलावा बुध ग्रह जब मिथुन राशि के लिए चतुर्थ भाव और कन्या राशि के लिए सातवें भाव में स्थित हो तो ऐसी स्थिति में समस्या दोगुनी बढ़ सकती है क्योंकि यह अपनी ही राशि पर कब्जा कर लेता है। मीन राशि के लोगों को परिवार से संबंधित मुद्दों जीवन साथी के साथ परेशानियां आती झेलनी पड़ सकती है।

केन्द्राधिपति दोष निवारण के ज्योतिषीय उपाय

  • मंदिर में प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करें। 
  • प्रतिदिन 21 बार ॐ नमो नारायण का जाप करें। 
  • रोजाना 11 बार ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।

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पितृ दोष

जिस किसी व्यक्ति से उनके पितृ प्रसन्न नहीं होते हैं उनकी कुंडली में पितृदोष का निर्माण होता है। अर्थात सरल शब्दों में कहें तो पूर्वजों के आशीर्वाद की कमी के कारण पितृ दोष होता है। पितृदोष उस स्थिति में भी बनता है जब व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध ना करें या प्रत्येक वर्ष आने वाले श्राद्ध कर्म में भाग ना ले और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा-पाठ ना करे। ऐसी स्थिति में पितृ दोष का निर्माण होता है।

जब किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु के साथ सूर्य का संयोजन हो या केतु के साथ सूर्य ग्रह का संयोजन हो तो ऐसी स्थिति में पितृ दोष बनता है।

जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है उन्हें ज्यादा अनुशासित होने और अपने बड़े बुजुर्गों और पितरों का सम्मान करने की सलाह दी जाती है।

पितृ दोष के नकारात्मक प्रभाव

  • पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति के जीवन में विकास रुक जाता है। 
  • ऐसे व्यक्तियों की या तो नौकरी लगती नहीं है या लगती है तो बहुत ही कम वेतन वाली। 
  • ऐसे व्यक्तियों की धन हानि होने लगती है। 
  • शादी के कई साल बाद भी इन्हें कोई बच्चा नहीं होता है। 
  • ऐसे लोगों का उनके लाइफ पार्टनर के साथ वाद विवाद बना रहता है और यह स्थिति कई बार अलगाव या तलाक तक पहुंच जाती है। 
  • स्वास्थ्य की हानि होने लगती है। 
  • जीवन में मान सम्मान और प्रतिष्ठा में कमी आने लगती है।

पितृ दोष निवारण के ज्योतिषीय उपाय

  • रोजाना कौवों को खाना खिलाएं। 
  • रोजाना पक्षियों को खाना खिलाएं। 
  • काशी और गया अवश्य जाएं और वहां अपने दिवंगत पूर्वजों का तर्पण करें। 
  • पूरे नियम और विधि विधान के साथ किसी विद्वान ज्योतिषी से पितृ दोष निवारण पूजा कराएं।  
  • अमावस्या के दिन सफेद गाय को सुबह हरी घास चढ़ाएं और उनका आशीर्वाद लें। ऐसा करने से आपको पितृदोष की समस्या का समाधान प्राप्त होगा। 
  • किसी बूढ़े लाचार व्यक्ति की चिकित्सा का खर्च उठाएं।

गुरु चांडाल दोष

किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरु चांडाल दोष तब बनता है जब शुभ ग्रह बृहस्पति राहु और केतु ग्रह के साथ जुड़ जाते हैं। इस दोष के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में असुरक्षा की भावना और अशांति बढ़ने लगती है। गुरु चांडाल दोष से पीड़ित व्यक्ति के जीवन में विकास  रुक जाता है। इसके अलावा जिन व्यक्ति की कुंडली में गुरु चांडाल दोष होता है वह अपने जीवन में धन कमा भी ले तो उसे उपयोगी जगह पर खर्च नहीं कर पाते हैं। ऐसे व्यक्ति फिजूलखर्ची में या इधर-उधर धन खर्च कर देते हैं और अपने भविष्य के बारे में ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं।

गुरु चांडाल दोष के दुष्परिणाम

बृहस्पति व्यक्ति के शरीर के कई महत्वपूर्ण हिस्से जैसे, पेट, लिवर, लोअर एब्डोमेन, ट्यूमर, ब्लड प्रेशर, और वसा (फैट) का शासक है। राहु के प्रभाव में बृहस्पति शरीर के इन हिस्सों में समस्याएं पैदा कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति पीलिया या लीवर की समस्याओं से पीड़ित हो सकते हैं। इसके अलावा जिन व्यक्तियों की कुंडली में यह दोष होता है उन्हें पाचन और गैस्ट्रिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। 

इसके अलावा ऐसे लोगों को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का भय भी बना रहता है। इस दोष का सामना कर रहे लोगों में ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल की समस्या भी हो सकती है। महिलाओं में गुरु चांडाल दोष हो तो ऐसी स्थिति में वैवाहिक रिश्ते में दरार उत्पन्न होने की आशंका बढ़ सकती है। इसके निवारण का सबसे पहला और सबसे आसान उपाय है कि अपने घर परिवार के सभी बड़े लोगों का आशीर्वाद अवश्य लें। बड़ों और अपने शिक्षक और गुरुओं की सलाह अवश्य मानें। कहा जाता है इस दोष के दुष्प्रभाव से केवल एक गुरु ही आपको बचा सकता है। ऐसे में अपना गुरु बेहद ही बुद्धिमानी से चुनें और अपने गुरु की सलाह अवश्य मानें और उसका पालन करें।

गुरु चांडाल दोष निवारण के ज्योतिषीय उपाय

  • गायत्री मंत्र का जाप करें। 
  • प्रतिदिन सुबह और शाम के समय 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करें। 
  • अपने जेब में हमेशा पीली रंग की रुमाल रखें। ऐसा इसलिए क्योंकि बृहस्पति का संबंध पीले रंग से बताया जाता है। 
  • भगवान विष्णु की उपासना करें और बृहस्पति ग्रह की प्रत्येक गुरुवार पूजा करें। 
  • गुरुवार के दिन गायों को और जरूरतमंद लोगों को चना दाल और गुड़ का दान करें। 
  • चांडाल दोष पूजा कराएं। 
  • प्रतिदिन 108 बार ‘ॐ  गुरुवे नमः’ मंत्र का जाप करें। 
  • ‘ॐ राहवे नमः’ मंत्र का 108 बार प्रतिदिन जाप करें।

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