सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। ऐसे में जब सूर्य अपना राशि परिवर्तन (Surya Rashi Parivartan) करते हुए कुंभ राशि में प्रवेश करने जा रहा है तो इसे कुंभ संक्रांति (Kumbha Sankranti) कहा जाएगा। कुंभ संक्रांति 2021 (Kumbha Sankranti 2021) का यह पर्व हिंदू धर्म में बेहद ही खास महत्व रखता है। 12 फरवरी 2021 शुक्रवार के दिन कुंभ संक्रांति मनाई जाएगी। कुंभ संक्रांति के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है।
मान्यता है कि, इस दिन दान करने से मनुष्य को कई गुना फल प्राप्त होता है। ऐसे में थोड़ा ही सही लेकिन अपनी यथाशक्ति अनुसार इस दिन दान अवश्य करें।
कुंभ संक्रांति 2021 तिथि और मुहूर्त (Kumbha Sankranti 2021 Date & Muhurat)
12 फरवरी 2021 शुक्रवार के दिन कुंभ संक्रांति मनाई जाएगी।
सूर्य कुंभ में 2021 : गोचर काल का समय
शुक्रवार को रात 9 बज कर 03 मिनट पर
कुंभ संक्रांति का शुभ मुहूर्त: 12 फरवरी, शुक्रवार को
कुम्भ संक्रान्ति का पुण्य काल- दोपहर 12 बज-कर 35 मिनट से लेकर शाम 6 बज-कर 9 मिनट तक
अवधि- 05 घंटे 34 मिनट
कुम्भ संक्रान्ति का महा पुण्य काल- शाम 4 बज-कर 18 मिनट से लेकर शाम 6 बज-कर 9 मिनट तक
अवधि- 01 घंटा 51 मिनट
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कुंभ संक्रांति कथा (Kumbha Sankranti Katha)
कुंभ संक्रांति के दिन से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में ऐसी मान्यता है कि, जो कोई मनुष्य इस कथा को सुनता है अथवा दूसरों को सुनाता है उसे जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं कुंभ संक्रांति की कथा।
प्राचीन समय में एक हरिदास नाम का ब्राह्मण हुआ करता था। हरिदास विद्वान होने के साथ-साथ बेहद ही धार्मिक और दयालु स्वभाव के थे। हरिदास की पत्नी का नाम गुणवती था। अपने पति की तरह गुणवती भी धार्मिक कार्यों में लीन रहती थीं और कभी भी किसी का अनादर नहीं करती थी। गुणवती ने अपने जीवन में सभी देवी देवताओं का व्रत किया लेकिन धर्मराज यानी धर्म राय प्रभु की सेवा न कभी की और ना ही उनके नाम से कभी भी दान और पुण्य दिया।
ऐसे में मृत्यु के पश्चात जब चित्रगुप्त उनके पापों का लेखा-जोखा पढ़ रहे थे तब उन्होंने गुणवती को अनजाने में हुई अपनी इस गलती के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि, ‘हे देवी! तुमने जीवन भर सभी देवी देवताओं का व्रत, पूजन आदि पूरी श्रद्धा से किया है लेकिन, धर्मराज के नाम से ना ही कभी कोई दान पुण्य किया ना ही पूजा-पाठ किया। यह बात सुनकर गुणवती ने कहा, ‘भगवान यह गलती मुझसे अनजाने में हुई है। ऐसे में इसे सुधारने का मुझे कोई उपाय बताइए।’
तब धर्मराज ने कहा कि, जब सूर्य देवता उत्तरायण में जाते हैं यानी मकर संक्रांति के दिन से मेरी पूजा शुरु कर देनी चाहिए। इसी क्रम में चलते हुए पूरे वर्ष भर मेरी कथा सुननी और पूजा करनी चाहिए। इसमें गलती से भी कोई भूल नहीं होनी चाहिए। मेरी पूजा के दौरान मन में किसी तरह का कोई पाप, किसी के बारे में कोई बुरा विचार, कोई छल, कपट, नहीं होना चाहिए। इसके बाद पूजा और व्रत विधि पूर्वक रखना चाहिए और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए।
जो कोई भी व्यक्ति ऐसा करता है और इसके बाद साल भर के बाद उद्यापन कर देता है उसे जीवन में सभी सुख समृद्धि अवश्य प्राप्त होती है। धर्मराज जी ने यह भी कहा कि, मेरे साथ-साथ चित्रगुप्त जी की भी पूजा अवश्य करनी चाहिए। उन्हें सफेद और काले तिलों के लड्डू का भोग अर्पित करें और अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन और दान आदि कराएं। ऐसा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी भी कोई कष्ट नहीं रहता है और उसके जीवन में समस्त सुख आजीवन बने रहते हैं।
कुंभ संक्रांति पर अवश्य करें यह बेहद सरल उपाय
जीवन में सुख, समृद्धि और हर एक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए कुंभ संक्रांति (Kumbha Sankranti) के दिन सुबह जल्दी उठें। स्नानादि करने के बाद सूर्य देव की पूजा करें और उन्हें अर्घ्य दें।
- कुंभ संक्रांति के दिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ भी अवश्य करें। इसके अलावा सभी मनोकामना पूर्ति के लिए कुंभ संक्रांति के दिन सूर्य पूजा के साथ सूर्य चालीसा पढ़ें, सूर्य देवता की आरती उतरें और सूर्य मंत्र का विधि पूर्वक जाप करें।
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- कुंभ संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसे में अपनी यथाशक्ति अनुसार इस दिन ज़रूरतमंदों या ब्राह्मणों को खाने की चीजें, ऊनी गर्म कपड़े और अन्न का दान अवश्य करें। इसके अलावा इस दिन घी का दान करने का भी विशेष महत्व बताया गया है।
- सूर्य देव की प्रसन्नता हासिल करने के लिए गरीब बच्चों में फल इत्यादि बांटें।
- इसके अलावा कुंभ संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व होता है। ऐसे में मुमकिन हो गंगा नदी या किसी भी पवित्र नदी में स्नान के लिए अवश्य जाएं। हालांकि यदि ऐसा मुमकिन नहीं है तो घर पर ही स्नान के पानी में थोड़ा सा गंगा जल डालकर स्थान अवश्य करें।
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