जैसा सभी जानते हैं कि भगवान कुबेर को हिन्दू धर्म में धन के देवता की उपाधि प्रदान है, इसलिए ही उन्हें धन का रखवाला मानकर उनकी पूजा-आराधना किये जाने का विधान है। इसके अलावा शास्त्रों अनुसार उन्हें यक्षपति अर्थात् यक्षों के राजा के रूप में भी जाना जाता है। ऐसे में धनतेरस पर्व के उपलक्ष्य में दुनियाभर में लोग उनका पूजन कर उनसे धन-समृद्धि की कामना करते हैं।
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कुबेर देवता से जुड़ी पौराणिक कथा
धार्मिक पुराणों की माने तो कुबेर देवता सुर राज लंकापति रावण के सौतेले भाई भी थे। इसके अलावा भी देवता कुबेर के बारे में बहुत सारी अदभुद पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिन्हे सुनकर हर कोई पड़ जाता है। उन्ही कथाओं में से आज हम आपके लिए एक ऐसी कथा लेकर आए हैं, जिसे सुनकर यकीनन आप भी हैरान हो जाएंगे।
कुबेर देवता से जुड़ी पौराणिक कथा
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार माना जाता है कि पूर्व जन्म में कुबेर एक पापी व क्रूर चोर थे। इस दौरान चोरी करते हुए वो अच्छे-बुरे, पाप-पुण्य किसी के बारे में नहीं सोचते थे। शायद इसलिए ही उन्हें भगवान के घर से भी चोरी करने में ज़रा भी संकोच नहीं होता था। अपनी चोर प्रवृत्ति में वो इस कदर माहिर थे कि वो गरीब से लेकर अमीर के घर, मंदिर हर जगह चोरी किया करते थे।
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ये है चोरी की कहानी
कहा जाता है कि चोरी की घटनाओं को अंजाम देने के लिए एक बार कुबेर चोरी करने के मकसद से एक प्राचीन मंदिर में जाते हैं, जो मुख्यतौर से भगवान शिव का मंदिर था। भगवान शिव के उस प्राचीन मंदिर में बहुमूल्य हीरे-जवाहरात, सोने-चांदी का भंडार था। जिसे देखते ही उनके मन में लालच आ गया और उन्होंने जैसे ही वहां रखे कीमती रत्नों को समेटना चाहा, मंदिर में जल रहा एकलौता दीया बुझ गया। उस अकेले दीए के बुझते ही शिव मंदिर में मानो अमावस्या जैसा घना अंधेरा छा गया। उस अंधेरे में कुबेर कुछ भी देख पाने में असमर्थ थे। जिसके बाद उन्होंने उस बुझे दिए को जलने की कोशिश की, लेकिन कई कोशिशों के बाद भी वो उसे दोबारा जलाने में असफल रहे। जिसके बाद उन्होंने एक तरकीब के तहत अपने शरीर के कपड़े उतार कर उसमें आग लगा दी। जिससे शिव मंदिर में छाया घना अंधेरा फिर से कुबेर की मदद से प्रकाशमय हो गया।
जब भगवान शिव से मिला कुबेर को चोर से देवता बनने का वरदान
कुबेर द्वारा मंदिर में किये गए इस प्रकाश को देख भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। जिसके बाद उन्होंने कुबेर से प्रसन्न होकर उन्हें अगले जन्म में धन के देवता कुबेर के रूप में जन्म लेने का वरदान देते हुए उन्हें दर्शन दिया।
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भगवान शिव ने खोली कुबेर की आँखें
माना जाता है कि इसके बाद महादेव का आशीर्वाद पाकर कुबेर देवता ने चोरी की राह त्याग दी और अच्छाई के रस्ते पर निकल गई। इसी घटना के परिणामस्वरूप वो अगले जन्म में धन के देवता के रूप में प्रसिद्ध हुए। इस बात से एक अन्य प्रमाण ये भी मिलता है कि भगवान भोलेनाथ वास्तव में बेहद भोले हैं जो कितनी जल्दी और सहजता के साथ अपने भक्तों से प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए भी कहा जाता है कि भगवान शिव के भक्तों को उनके समक्ष दीया अवश्य जलाना चाहिए। यही कारण है कि आज कुबेर को धन का रखवाला माना जाता है और उनकी इनकी मूर्ति की स्थापना हमेशा मंदिर के अंदर की बजाय मंदिर के बाहर होती है। उन्हें भगवान शिव के अनन्य भक्तों में से एक भी माना जाता हैं।
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