हर भक्त भगवान को अपना सर्वस्व अर्पित करने को तैयार रहता है। हम और आप ऐसे कई मंदिरों को जानते हैं जहां भक्त खुले हाथों से भगवान के चरणों में लाखों-करोड़ों रुपये अर्पित करते हैं लेकिन क्या आपने कभी ऐसा सोचा है कि सनातन धर्म के चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ को खिचड़ी का ही भोग क्यों लगाया जाता है। यहां भगवान जगन्नाथ को तो 56 भोग भी तो लगाए जा सकते थे लेकिन खिचड़ी ही क्यों?
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नहीं पता? तो एक काम कीजिये इस पूरे लेख को पढ़ लीजिये। आपको आपके इन सवालों का जवाब मिल जाएगा क्योंकि आज के इस लेख में हम आपको भगवान जगन्नाथ से जुड़ी वो कथा बताने वाले हैं जिसके बाद उन्हें प्रतिदिन खिचड़ी का भोग लगाया जाने लगा।
क्या है भगवान जगन्नाथ को खिचड़ी का भोग लगाने की वजह?
बहुत पहले भगवान जगन्नाथ की एक अनन्य भक्त हुआ करती थी, कर्मा बाई। कर्मा बाई एक वृद्ध महिला थी लेकिन वह हर रोज भगवान जगन्नाथ को भोग लगाना कभी नहीं भूलती थीं। एक बार कर्मा बाई की इच्छा हुई कि भगवान जगन्नाथ को अपने हाथों से कुछ बनाकर भोग लगाया जाये लेकिन उन्हें मन में शंका थी कि क्या भगवान को यह पसंद आएगा या नहीं। ऐसे में उन्होंने अपने मन की इच्छा भगवान को बताई।
जब भगवान जगन्नाथ स्वयं कर्मा बाई के घर पहुँच गए
कर्मा बाई की इच्छा सुनकर भगवान जगन्नाथ स्वयं उनके घर आ गए और कर्मा बाई से कहा कि उन्हें बहुत तेज भूख लगी है और वे उन्हें कुछ बना कर खिलाये। कर्मा बाई ने झटपट में बनने वाली चीज खिचड़ी बनाई। भगवान जगन्नाथ को खिचड़ी परोस कर उन्हें पंखा झेलने लगी। भगवान जगन्नाथ ने बड़े चाव से खिचड़ी खाई और कर्मा बाई से कहा कि उन्हें खिचड़ी बहुत पसंद आई और अब वे रोज कर्मा बाई के यहां खिचड़ी खाने आया करेंगे। कर्मा बाई प्रभु की बात सुनकर बेहद प्रसन्न हुईं।
फिर ये कर्मा बाई के दिनचर्या का हिस्सा हो गया। वे रोज सुबह उठती और सबसे पहले भगवान के लिए खिचड़ी बनाती थी। भगवान आते, खिचड़ी खाते और कपाट खुलने से पहले-पहले मंदिर वापस चले जाते।
जब महात्मा की बातों में आ गईं कर्मा बाई
एक दिन कर्मा बाई जब सुबह सुबह खिचड़ी बना रही थी तब उसके दरवाजे पर एक महात्मा आए और उन्होंने कर्मा बाई को बिना स्नान किए और बिना रसोई साफ किए खाना बनाते देखा तो उसे समझाया कि ऐसा करना गलत है। इस पर कर्मा बाई ने उस महात्मा को बताया कि वह तो प्रभु के लिए भोग तैयार कर रही हैं। इस पर उस महात्मा ने उन्हें कहा कि फिर तो कर्मा बाई को और भी साफ-सफाई और नियमों का पालन कर भोजन तैयार करना चाहिए।
कर्मा बाई के मन में महात्मा की बातें घर कर गयी। अगले दिन जब भगवान जगन्नाथ आए तो उन्हें खिचड़ी खाने के लिए इंतज़ार करना पड़ा क्योंकि कर्मा बाई स्नान करने और रसोई की साफ-सफाई करने में व्यस्त हो गयी थी। उधर मंदिर के कपाट खुलने का समय हो चला था। ऐसे में भगवान जगन्नाथ ने तेजी से खिचड़ी खाई और बिना मुंह धोये मंदिर में लौट आए। ऐसे में जब मंदिर के पुजारी ने कपाट खोला तो उसने भगवान के मुँह पर खिचड़ी लगी पायी। उस पुजारी ने भगवान से इसकी वजह जानने की कोशिश की तो भगवान जगन्नाथ ने उसे सारी बात बताई और उससे कहा कि जाकर उस महात्मा को समझाये कि भगवान सिर्फ भक्ति भाव के भूखे होते हैं।
महात्मा को हुआ अपनी गलती का अफसोस
जब महात्मा को यह बात पता चली तो उसे अपने किए का बहुत अफसोस हुआ और वे भागे-भागे कर्मा बाई के पास पहुंचे। महात्मा ने कर्मा बाई से माफी मांगी और उनसे कहा कि वे जैसे भी भगवान को भोग लगाना चाहती हैं, वैसे ही भगवान को भोग लगाएं। उन्होंने आगे कर्मा बाई से कहा कि आस्था और श्रद्धा से बढ़ कर भगवान को कुछ नहीं चाहिए होता है।
कर्मा बाई का निधन और खिचड़ी की परंपरा
एक दिन जब पुजारी ने मंदिर का कपाट खोला तो उसने देखा कि भगवान जगन्नाथ की आँखों से आँसू बह रहे हैं। उसने भगवान से इसकी वजह पूछी तो भगवान जगन्नाथ ने बताया कि कर्मा बाई का देहांत हो गया है और उन्हें माँ और उनके हाथों से बनी स्नेह से भरपूर खिचड़ी की याद आ रही है। तब पुजारी ने भगवान से कहा कि अब वे उनके लिए रोज खिचड़ी बनाएंगे और भगवान को कभी भी माँ की कमी महसूस नहीं होने देंगे। इस के बाद से ही भगवान जगन्नाथ के लिए हर रोज खिचड़ी बनाई जाती है और उन्हें इसका भोग लगाया जाने लगा।
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