कब है पापांकुशा एकादशी? जानें मुहूर्त और पूजन विधि

“पापांकुशा एकादशी व्रत” हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन रखते हैं। इस साल यह व्रत 27 अक्टूबर, मंगलवार के दिन रखी जाएगी। पापांकुशा का अर्थ होता है, पाप रूपी हाथी को व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से बेधना।  पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्‍णु की पूजा की पूजा करने और मौन रहकर भगवद् स्मरण करने से भक्‍त का मन शुद्ध होता है। कहा जाता है कि महाभारत काल में स्वयं भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्व बताया था और कहा था कि इस एकादशी के दिन जो कोई भी सच्चे मन से व्रत रखेगा, उसके सभी पाप नष्ट हो जायेंगे। तो चलिए  इस लेख के माध्यम से आपको इस पुण्यकारी दिन के विषय में सारी जानकारी देते हैं –

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पापाकुंशा एकादशी व्रत मुहूर्त 

एकादशी तिथि प्रारम्भ26 अक्टूबर, सोमवार को 09:02:13 से
एकादशी तिथि समाप्त27 अक्टूबर, मंगलवार को 10:48:33 तक

एकादशी के दिन व्रत रखने वाले जातक द्वादशी यानि कि 28 अक्टूबर, बुधवार के दिन अपने व्रत का पारणा करेंगे। पारणा के शुभ मुहूर्त की जानकारी आपको नीचे दी जा रही है-

एकादशी पारणा मुहूर्त 28 अक्टूबर, को प्रातः 06:30 से प्रातः 08:44 तक 
अवधि 2 घंटे 13 मिनट

ऐसे करें पापाकुंशा एकादशी व्रत के दिन पूजा

पापांकुशी एकादशी व्रत रखने वाले लोगों को एक दिन पहले यानि दशमी तिथि से ही नियमों का पालन करना चाहिए। दशमी के दिन सात तरह के अनाज(गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल) का सेवन बिलकुल न करें।

  • एकादशी वाले दिन पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें, उसके बाद साफ़ वस्त्र पहनकर हाथ में जल लेकर और व्रत का संकल्प लें।
  • संकल्प लेने के बाद घटस्थापना/कलशस्थापना करें। घटस्थापना के लिए   एक कलश लें और उसपर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र रख दें।
  • अब भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा करें और उन्हें धूप, दीप,नारियल, फल, फूल और प्रसाद अर्पित करें। विष्‍णु जी की पूजा में तुलसी का पत्ता अवश्‍य रखें। 
  • पूजा करने के बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर, भगवान की आरती उतारें।
  • इस दिन व्रती रात के समय में जागरण और भजन-कीर्तन करें। 
  • अगले दिन यानि द्वादशी को विधिवत पूजा करने के बाद पहले ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे, उसके बाद पारणा मुहूर्त का ध्यान रखते हुए व्रत खोलें। 
  • किसी वजह से यदि आप पूरे एक दिन का उपवास नहीं रख पाते हैं, तो आप शाम तक का उपवास रख सकते हैं, और शाम को पूजा-आरती करने के बाद सात्विक आहार ग्रहण कर लें। 

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पापांकुशा एकादशी का महत्‍व

हिन्दू धर्म सभी एकादशी के व्रत का खास महत्व होता है, लेकिन इन सभी में पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से स्वयं के साथ-साथ दूसरों को भी लाभ मिलता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। पापांकुशा एकादशी के व्रत को रखने से जातक का मन शुद्ध होता है और उसके द्वारा हुए पापों का प्रायश्चित भी होता है। अपने साथ-साथ माता, पिता और आपके करीबियों को भी उनके पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत के प्रभाव से अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ करने के समान फलों की प्राप्ति होती है। यह व्रत करने से चंद्रमा के बुरे प्रभाव समाप्त होते हैं और बैकुंठ धाम मिलता है। यदि किसी व्यक्ति से अनजाने में कोई पाप हो जाये, तो उसे इस दिन व्रत ज़रूर रखना चाहिए। 

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इस दिन ज़रूर ध्यान रखें इन बातों का

पापाकुंशा एकादशी के दिन कुछ बातों का खासतौर पर व्रत रखने वालों को ध्यान रखना चाहिए। इस दिन भूलकर भी व्यक्ति को चावल और भारी खाद्य का सेवन नहीं करना चाहिए। दशमी के दिन सात तरह के अनाज(गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल) बिलकुल न खाएं, क्योंकि इन सातों अनाज की पूजा एकादशी के दिन की जाती है। मौन रहकर इस दिन भगवद स्मरण और भजन-कीर्तन आदि करने का विधान होता है। व्रत रखने वाले व्यक्ति को पापाकुंशा एकादशी के दिन क्रोध नहीं करना चाहिए, अपने आचरण पर नियंत्रण रखकर कम बोलना चाहिए। रात के समय भगवान की पूजा-आराधना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखने के अलावा  सोना, तिल, गाय, अन्न, जल, छाता व जूते का दान करने से पिछले जन्म के भयंकर पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

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इसी दिन हुआ था श्री राम और भरत का मिलन  

पापांकुशा एकादशी के दिन को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र माना गया है। यह एकादशी का पर्व हर साल आश्विन माह में नवरात्रि और दशहरा के बाद वाली एकादशी के दिन मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि वनवास से लौटने के बाद श्री राम और भरत का मिलन भी इसी एकादशी के दिन हुआ था। इसीलिए इस दिन की शुभता और भी बढ़ जाती है। 

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ज़रूर सुने पापाकुंशा एकादशी व्रत की कथा

कहा जाता है कि कोई भी व्रत तब तक पूरा नहीं होता, जबतक उसकी कथा न सुन ली जाए। तो चलिए आपको बताते हैं पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा-

प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक अत्यंत क्रूर बहेलिया रहा करता था, जिसने अपनी पूरी जिंदगी हिंसा, लूट-पाट आदि जैसे गलत कामों में व्यतीत कर दी। जब क्रोधन के जीवन का आखिरी समय आ गया, तब यमराज ने अपने दूतों से क्रोधन को लाने कहा। यमदूत ने क्रोधन को यह बात बता दी कि कल उसके जीवन का अंत होने वाला है और कल का दिन उसका धरती पर अंतिम दिन है। 

मृत्यु समीप आने की बात सुन वह बेहद भयभीत हो गया, उसके द्वारा किए सभी बुरे कर्म उसके आँखों के सामने आने लगे। उसने यह अनुमान लगा लिया कि उसके द्वारा सभी गलत कर्मों का फल उसे मृत्यु उपरांत भुगतना होगा। क्रोधन भागता हुआ महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम जा पहुंचा और उनके सामने रोने-गिड़गिड़ाने लगा। उसने महर्षि से अपने पापों को कम करने का उपाय माँगा। क्रोधन की दशा देखकर महर्षि को उसपर दया आ गई और उन्होंने क्रोधन  से पापों को कम करने वाली पापाकुंशा एकादशी का व्रत करने को कहा। 

क्रूर बहेलिया क्रोधन ने सच्चे मन और पूरे विधि-विधान से पापाकुंशा एकादशी का व्रत-पूजन किया और उसके बाद भगवान की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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