जानें कितने प्रकार की होती है कांवड़ यात्रा और क्या है इसका महत्व!

आज 17 जुलाई से शिव भक्तों के पवित्र महीने सावन माह की शुरुआत हो चुकी हैऔर इसके साथ ही हर वर्ष होने वाली कांवड़ यात्रा का भी आरंभ हो गया है। हिन्दू धर्म में कांवड़ यात्रा को विशेष महत्ता दी गयी है। सावन के पवित्र माह में हजारों लाखों की संख्या में कांवड़िये एकत्रित होते हैं और अपने कांवड़ में जल भरकर भगवान शिव को चढ़ाने के लिए पैदल निकल पड़ते हैं। यहाँ हम आपको कांवड़ यात्रा के विभिन्न प्रकारों और उसके महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं।

क्या है कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व

पौराणिक हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में समुद्र मंथन के समय निकले विष का पान भगवान् शिव ने दुनिया को बचाने के लिए किया था। हालाँकि उन्होनें विष का पान तो कर लिया लेकिन इसके बाद उनका शरीर जलने लगा। जिसे देखकर समस्त देवताओं ने उनका जलाभिषेक करना प्रारंभ कर दिया। इस दिन के बाद से ही सावन के माह में शिव जी के जलाभिषेक करने की परंपरा आरंभ कर दी गयी जिसे बाद में कांवड़ यात्रा के नाम से जाना जाने लगा।

प्रमुख रूप से तीन प्रकार की होती हैं कांवड़ यात्राएं

खड़ी कांवड़

खड़ी कांवड़ यात्रा को सबसे ज्यादा कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें कांवड़ को लेकर चलने वाले भक्त तब तक अपने कांधों से कांवड़ उतार नहीं सकते जब तक कि वो शिव जी को जल नहीं चढ़ा देते। कंधे पर कांवड़ लेकर पैदल यात्रा करते हुए शिव धाम तक जाना होता है और शिव जी का जलाभिषेक करने के बाद ही कांवड़ को काँधे से उतार सकते हैं। इस दौरान यदि कांवड़िये को खाना पीना भी हो तो वो किसी और के कंधे पर कांवड़ रख सकते हैं लेकिन उसे कहीं टांग नहीं सकते या जमीन पर नहीं रख सकते।

झांकी कांवड़

झांकी कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िये मुख्य रूप से जीप या ट्रक के ऊपर शिव जी की मूर्ती स्थापित करते हैं और झांकी निकालकर भजन कीर्तन गाते हुए कांवड़ यात्रा करते हैं। इस दौरान शिवजी की मूर्ती का विधिपूर्वक श्रृंगार किया जाता है और धूमधाम के साथ कांवड़ यात्रा निकाली जाती है।

डाक कांवड़

कांवड़ यात्रा के प्रकार की शुरुआत झांकी कांवड़ की भाँती ही की जाती है। डाक कांवड़ और झांकी कांवड़ में अंतर केवल ये है कि जब शिव मंदिर पहुँचने में 36 घंटे का समय रह जाता है तो कांवड़िये इसे लेकर दौड़ते हुए मंदिर तक पहुँचते हैं। ये कांवड़ यात्रा कठिन इसलिए है क्योंकि 36 घंटों तक कंधे पर कांवड़ को लेकर दौड़ना बेहद मुश्किल भरा काम होता है।

कल 17 जुलाई से आरंभ हो कर सावन माह की चतुर्दशी के दिन शिव जी का जलाभिषेक करने के बाद कांवड़ यात्रा की समाप्ति होगी।