खाटू श्याम बसंत महोत्सव आरंभ, भव्य शोभायात्रा के साथ निकलेगी झांकी !

सबसे पहले आपको बता दें कि खाटू श्याम वास्तव में भगवान् श्री कृष्ण के एक अवतार माने जाते हैं। खाटू श्याम की पूजा विशेष रूप से राजस्थान के मारवाड़ी, वैश्य और व्यवसायी वर्ग द्वारा की जाती है। इस वर्ग द्वारा तीन दिवसीय खाटू श्याम वसंत महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसे खाटू श्याम के भक्तों के लिए बेहद ख़ास माना जाता है। इस महोत्सव की तैयारी कुछ महीने पहले से ही शुरू कर दी जाती है। आज हम आपको विशेष रूप से खाटू श्याम वसंत महोत्सव के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। आइये जान लेते हैं कि आखिर क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है इस महोत्सव को और क्या है इसकी ख़ासियत।

हरियाणा के गुरुग्राम में आयोजित किया गया है खाटू श्याम महोत्सव 

आपको बता दें कि हरियाणा के गुरुग्राम में विशेष रूप से तीन दिवसीय खाटू श्याम वसंत महोत्सव का आयोजन किया गया है। ये महोत्सव 6 सितंबर से आरंभ हो चुका है जिसकी समाप्ति 8 सितंबर को होगी। खाटू श्याम महोत्सव की शुरुआत गुरुग्राम के सिद्धेश्वर मंदिर से सटे पुरानी जेल कॉम्प्लेक्स ग्राउंड में किया गया है। इस महोत्सव की विशेष ख़ासियत ये है कि यहाँ इस दौरान खाटू श्याम की भव्य झांकियां और कलश यात्रा निकाली जाती है। इस कलश यात्रा में पारंपरिक वस्त्रों में सजधज कर महिलाएं इस शोभायात्रा का हिस्सा बनती हैं। आज महोत्सव का दूसरा दिन है इसलिए आज विशेष रूप से खाटू श्याम बाबा के द्वार को सजाया जाएगा और विधि पूर्वक उनकी पूजा अर्चना के बाद कुशल गायकों के द्वारा भजन के कार्यक्रम को संपन्न किया जाएगा। महोत्सव के भव्य आयोजन में शामिल होने राजस्थान के कई शहरों से नामी गिरामी गायक भी आये हैं। इसके साथ ही साथ आपको जानकारी दे दें कि महोत्सव के समापन के बाद 9 सितंबर को सिद्धेश्वर मंदिर में शुद्ध देशी घी से बने भोज्य पदार्थों से भंडारा लगवाया जाएगा। 

कौन हैं बाबा खाटू श्याम 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि खाटू श्याम वास्तव में श्री कृष्ण के अवतार थे जिनका जिक्र महाभारत कला में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि उनका असली नाम बर्बरीक था जिन्हें बाद में खाटू श्याम के नाम से जाना गया। पौराणिक धार्मिक मान्यता के अनुसार कलयुग में खाटू श्याम बाबा को श्री कृष्ण का अवतार माना गया है। महापराक्रमी बर्बरीक असल में घटोत्कच और मौरवी के पुत्र थे। जब उनका जन्म हुआ तो उनके बाल असल में बब्बर शेर की तरह थे इसलिए उन्हें बर्बरीक के नाम से पुकारा जाने लगा। कहते हैं कि उन्होनें युद्ध कला खुद श्री कृष्ण और अपनी माँ मौरवी से सीखी थी। 

अपनी कुशलता के दम पर उन्होनें तीन तीर पाया था जिसका इस्तेमाल कर वो कोई भी युद्ध जीत सकते थे। महाभारत के युद्ध के दौरान वो अपना तीर कमान लेकर युद्ध मैदान की तरफ चल पड़ें।  कौरवों को ये बात पहले ही पता थी इसलिए श्री कृष्ण ने एक योजना के तहत बर्बरीक के मार्ग को रोका और ब्राह्मण के वेश में उससे अपना सिर भिक्षा के रूप में देने की मांग की। बर्बरीक समझ चुके थे की वो ब्राह्मण असल में कृष्ण जी ही हैं, लिहाजा उन्होनें अपना सिर उन्हें दे दिया। बर्बरीक के इस त्याग से प्रसन्न होकर कृष्ण जी ने उन्हें वचन दिया की दुनिया उसे उनके प्रसिद्ध नाम “श्याम” से जानेगी। इस प्रकार से उन्हें खाटू श्याम के नाम से जाना जाने लगा। 

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