कितना प्यारा है यह पर्व करवा चौथ का, जब हर सुहागन व्रत कर भगवान शिव और माता पार्वती से अपने पति की दीर्घायु का वरदान मांगती है। इस पर्व में समर्पण का भाव छिपा है।
भारतीय संस्कृति कितनी सुंदर है। इस संस्कृति में होने वाले हर तीज त्यौहार व रस्म रिवाज़ के पीछे आध्यात्मिक व वैज्ञानिक रहस्य छिपे हैं। भारतीय महिलाओं के पहनावे को ही ले लीजिए। पूरा विज्ञान छिपा है सोलह श्रृंगार में, यह श्रृंगार ही नहीं अपितु महिला का रक्षा कवच भी है।
सोलह श्रृंगार की सोलह बड़ी बातें
- सबसे पहले बात करते हैं मांग मे लगे सिंदूर की, सिंदूर चूना, पारद व हल्दी का मिश्रण होता है। सिंदूर में मिला पारद महिला को शांति व ठंडक देता है। यह सिंदूर महिला के सहस्त्र धार चक्र को प्रभावित करता है। सिंदूर का रंग महिला को शक्ति प्रदान करता है।
- माथे में लगी बिंदिया महिला के आज्ञा चक्र को प्रभावित करती है। आज्ञा चक्र का स्थान भ्रकुटी के बीच में होता है। इस स्थान को दबाने से व्यक्ति की स्मरणशक्ति में बढ़ोतरी होती है। महिला जब इस स्थान पर बिंदी लगाती है तो वह जाने अनजाने में आज्ञा चक्र को दबाती है। भौंह के मध्य स्थित पीनियल ग्रंथि हमारे विचारों तथा हारमोंस को भी प्रभावित करते हैं। इस ग्रंथि को स्पर्श करने से व्यक्ति की एकाग्रता शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है।
- बालों में मोगरे का गजरा मात्र एक श्रृंगार ही नहीं बल्कि एक उपचार प्रक्रिया है। जिस स्थान पर महिला गजरा पहनती हैं। वहां गर्दन के पीछे रीड़ की हड्डी कपाल से जुड़ती है। हमारी तंत्रिकाएं इस स्थान से रीड़ की हड्डी द्वारा प्रवेश कर पूरे शरीर में पहुंचती हैं। इस नाज़ुक स्थान से हम वातावरण में मौजूद स्पंदनों को ग्रहण करते हैं मोगरे की सुगंध हमारे शरीर में प्रवेश करने वाले स्पदनों को संतुलित कर हमें प्रसन्नता व शांति प्रदान करती है। मोगरे की सुगंध थकावट को दूर कर ताजगी लाती है।
- मांग टीका या बोरला महिला के शिखा से लेकर ललाट तक जा रही नसों को प्रभावित करती है। यह महिला के आज्ञा चक्र को भी संतुलित करती है। मस्तिष्क की नसों को भी संतुलन देता है मांग टीका।
- नाक की नथ महिला की प्रसव की पीड़ा को कम करने में सहायक है। साथ ही महिला के मस्तिष्क की तरंग दैर्ध्य को भी नियंत्रित करती है। हाथों में पहने कंगन महिला के रक्त संचार को नियंत्रित करते हैं तथा शरीर से निकली ऊर्जा को शरीर के अंदर वापस भेजने में सहायक होते हैं।
- पैरों के बिछुये महिला की महावारी नियंत्रित करते हैं तथा पृथ्वी से निकली ऊर्जा को महिला के पूरे शरीर में पहुंचाने मे सहायक होते हैं। पैरों की उंगली जिसमें बिछुए पहने जाते हैं उसकी नस गर्भाशय की ओर जाती है, बिछुए पहनने से जननांग पुनः जीवित होता है।
- हाथों की उंगली में मौजूद नसे मस्तिष्क तक जाती है। उंगलियों पर पहनी अंगूठी महिला के मस्तिष्क को मजबूती देती है। सुगमता तथा आत्मविश्वास का अनुभव कराती है।
- कमर में बंधी कमरबंद, महिला के कमर में अतिरिक्त मांस इकट्ठा होने नहीं देती है और उसके शरीर को सुडौलता प्रदान करती है।
- आँखों में लगा काजल, सौंदर्य के साथ-साथ आँखों को सूर्य की तेज किरणों से बचाव करता है। यह प्रदूषण व धूल मिट्टी से भी आँखों को सुरक्षित रखता है।
- गले में पहना मंगल सूत्र महिलाओं को बुरी नज़र से बचाता है, साथ ही रक्त संचार नियंत्रित व रक्त परिसंचरण भी करता है।
- मंगलसूत्र के काले मोती वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा से महिला का बचाव करते हैं। मंगलसूत्र के सोने के मोती उस नकारात्मक ऊर्जा का शोधन कर महिला को शांति व समृद्धि का एहसास कराते हैं।
- पैरों की पायल महिला के शरीर की उर्जा को संतुलित करती है। पायल की आवाज वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती है। चांदी की पायल शरीर के ताप को भी नियंत्रित करती है।
- कानों में पहने झुमके महिला की स्त्री जनित रोगों से बचाव करते हैं। यह वह एक्यूप्रेशर पॉइंट होता है जिसे स्पर्श करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
- बाजू में पहना बाजूबंद सौंदर्य के साथ-साथ हाथों के रक्त संचार को नियंत्रित करता है। यह बांहों में अतिरिक्त चर्बी को जमने से रोकता है।
- हाथ पांव में लगी मेहंदी महिला को शांति व ठंडक प्रदान करती है और त्यौहारों व उत्सवों के दौरान हुई थकावट में तरावट देती है। मेहंदी नज़र से भी बचाती है, पैरों में लगा मावर महिला को ठंडक व सौंदर्य प्रदान करता है।
- पूरे श्रृंगार के बाद इत्र लगाया जाता है। इत्र महिला के श्रृंगार को पूर्णता प्रदान करता है। हर इत्र का अपना एक अलग उद्देश्य होता है। जैसे- गुलाब का इत्र महिला को संतुलन व साहस प्रदान करता है, चमेली एकाग्रता, मोगरा शांति व चंदन का इत्र शुद्धता प्रदान करता है।
तो इस तरह पूरा होता है एक महिला के सोलह श्रृंगार का उद्देश्य, यही सुंदरता है हमारी भारतीय संस्कृति की। श्रृंगार केवल स्त्री के सौंदर्य की शोभा नहीं है बल्कि यह उसके स्वास्थ्य के लिए भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अनुकूल है।
दीप्ति जैन एक जानी-मानी वास्तुविद हैं, जिन्होंने पिछले 3 सालों से वास्तु विज्ञान के क्षेत्र में अपने कौशल और प्रतिभा को बखूबी दर्शाया है। उनके इस योगदान के लिए उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है। दीप्ति जैन न केवल वास्तु बल्कि सामाजिक मुद्दों, हस्तरेखा विज्ञान, अध्यात्म, कलर थेरेपी, सामुद्रिक शास्त्र जैसे विषयों की भी विशेषज्ञ हैं।