पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
ये दोहा सुनते ही जिनका नाम ज़हन में आता है, वो हैं संत कबीर दास। ऐसे न जाने कितने और दोहों और अपनी रचनाओं से लोगों को सीख देने और उनके दिलों पर अपनी छाप छोड़ने वाले महापुरुष संत कबीर दास की जयंती 5 जून, शुक्रवार को यानि आज मनाई जा रही है। इस कोरोना काल में जब हर इंसान इतना ज़्यादा डरा हुआ और परेशान है कि उसके सोचने-समझने की शक्ति मानो खो सी गयी हो। ऐसी परिस्थिति में कबीर के शब्द आपको राहत दिलाने का काम करेंगे। इसके अलावा अगर आपके दिमाग में अपने जीवन को लेकर किसी भी तरह की कोई परेशानी चल रही है तो अभी हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषियों से आप उससे जुड़े प्रश्न पूछ सकते हैं।
कबीर की संत प्रवृति, सरलता और साधु स्वभाव के चलते लोग उन्हें बहुत मानते थे। हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कबीर दास जयंती मनाई जाती है। कबीरदास, कबीर साहब और संत कबीर जैसे नामों से प्रसिद्ध कबीर भारत के सफल साधक, भक्त कवि और समाज सुधारक थे। कबीर के नाम पर कबीरपंथ नाम की एक संप्रदाय भी प्रचलित है। कबीरपंथी लोग कबीर दास को एक अवतारी पुरुष मानते हैं, जिनके संबंध में बहुत सी चमत्कारी कथाएँ भी प्रचलित हैं। कबीर का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। इसीलिए इस दिन देश भर में कबीर जयंती मनाई जाती है।
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कबीर का जन्म
कबीर के जन्म के बारे में वैसे तो कोई भी प्रमाणिक तथ्य नहीं मिलता, लेकिन कुछ तथ्यों की माने तो कबीर का जन्म सन् 1398 में हुआ था। वे एक विधवा ब्राह्मणी की संतान थे। जन्म के तुरंत बाद ही उनकी माता ने उन्हें काशी के लहरतारा नाम की एक जगह पर छोड़ दिया। वहां नीरु और नीमा, जो कि पेशे से जुलाहा जाति से थे, उन्होंने नन्हे बालक को देखा और अपने साथ ले आएं। नन्हे कबीर का लालन-पालन नीरु और नीमा के आंगन में ही हुआ था। कबीर के कुछ काव्यों में भी इस बात के प्रमाण मिलते हैं। जैसे – ‘जात जुलाहा नाम कबीरा’।
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कबीर के शव को लेकर हिन्दू-मुस्लिम विवाद
कबीर एक बहुत ही शांत व्यक्ति थे और उन्हें शांतिप्रिय जीवन जीना पसंद था। अहिंसा और सदाचार के प्रशंसक कबीर दास ने अपना संपूर्ण जीवन काशी में बिताया था और उनकी मृत्यु सन् 1518 मगहर नामक स्थान पर हुई। कबीर जात-पात और धर्म के नाम पर होने वाले पाखंड के वरोधी थे। ये एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें हिन्दू-मुसलमान दोनों ही संप्रदाय के लोग सम्मान देते थे और उनके अनुयायी थे। इसी वजह से उनकी मृत्यु उपरांत उनके शव को लेकर काफी विवाद हुए।
हिंदुओं और मुसलमान दोनों अपने-अपने रीति से उनके शव का अंतिम संस्कार करना चाहते थे। लेकिन जब उनके शव से चादर हटाई गई, तब वहाँ फूलों का ढेर पड़ा मिला। यह उनकी ओर से लोगों को दिया एक संदेश था कि व्यक्ति को फूलों की तरह सभी को स्वीकार्य और सभी धर्मों के लिए एक जैसा भाव रखने वाला होना चाहिए। बाद में वहाँ मिले आधे फूल हिंदुओं ने लिए और आधे मुसलमानों ने और अपनी-अपनी रीति-रिवाज़ से उनका अंतिम संस्कार किया।
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कबीर के कुछ मशहूर दोहे
संत कबीर दास के हर एक दोहे, हर एक रचना के पीछे एक सीख और गहरी भावना छुपी होती थी। अपनी चंद पंक्तियों से वो समाज को अच्छे-बुरे और सही-गलत के विषय में बतला देते थे। यही कारण है कि आज भी कबीर दास के दोहे लोगों की ज़ुबान पर रहते हैं। उनकी जयंती पर चलिए नज़र डालते हैं, उनकी कुछ प्रसिद्ध पंक्तियों पर –
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थात- कबीर मानते हैं कि किताबी ज्ञान हासिल कर के संसार में कितने लोग मृत्यु के दरवाज़े तक पहुँच गए, लेकिन उनमें से कोई विद्वान न हो सके। लेकिन अगर कोई व्यक्ति प्रेम के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह से पढ़ ले, यानि प्यार के वास्तविक रूप की पहचान कर ले, तो वही मनुष्य सच्चा ज्ञानी होता है।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थात- जब इस संसार में मैं बुराई को ढूंढने निकला, तो मुझे कोई भी बुरा व्यक्ति नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने ही मन में झाँक कर देखा, तो पाया कि मुझसे ज़्यादा बुरा और कोई नहीं है। यानि दूसरों में ग़लतियाँ ढूंढने से पहले इन्सान को अपने अंदर भी एक बार ज़रूर झाँक कर देख लेना चाहिए।
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बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
अर्थात- सही ढंग से बोलने वाला व्यक्ति जानता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए इंसान को हमेशा अपने ह्रदय की तराजू में तोलकर ही शब्दों को मुंह से बाहर आने देना चाहिए।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
अर्थात- जो लोग हमारी निंदा करता है, उनसे दूर भागने की बजाय उन्हें अपने पास ही रखना चाहिए। वह बिना साबुन और पानी के हमें हमारी कमियाँ बता कर हमारे स्वभाव और चरित्र को साफ़ करता है।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥
अर्थात- खजूर के पेड़ के न जितना बड़ा होने से क्या लाभ, जो ठीक से न किसी को छाँव दे पाता है, और ना ही उसपर कोई फल लगता है।
कबीर जयंती के मौके पर आप भी कबीर दास द्वारा बताए मार्ग का अनुसरण करें और मानवता के हित के लिए कार्य करें। इसके साथ ही इस कोरोना काल में यदि आप भी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं और घर पर बैठकर किस्मत और समय को कोस रहें, तो एस्ट्रोसेज बृहत् कुंडली आपके आने वाले समय की जानकारी देने के लिए मददगार विकल्प साबित हो सकती है।
आशा करते हैं कबीर दास के बारे में हमारे द्वरा दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी।
हमारे सभी पाठकों को कबीर जयंती की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।