मां दुर्गा का एक रूप है मां काली और मां काली से जुड़े कई त्यौहार हिंदू धर्म में मनाए जाते हैं। इनमें से काली चौदस नाम का त्यौहार सबसे ज्यादा प्रचलित है। काला रंग बुराई का नाशक माना गया है और चौदस का मतलब होता है चौदह। यानी काली चौदस का पर्व कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।
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काली चौदस शुक्रवार, नवम्बर 13, 2020 को
काली चौदस मुहूर्त – 11बजकर 39 मिनट (रात) से 12 बजकर 32 मिनट (सुबह), नवम्बर 14
अवधि – 00 घण्टे 53 मिनट्स
हनुमान पूजा शुक्रवार, नवम्बर 13, 2020 को
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 13, 2020 को 05:59 पी एम बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त – नवम्बर 14, 2020 को 02:17 पी एम बजे
दिवाली के 5 दिनों के उत्सव का यह दूसरा दिन माना गया है। इस दिन मां काली की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि यह वही दिन है जिस दिन मां काली ने नरकासुर नामक दैत्य को मारा था इसीलिए कई जगहों पर इस दिन को नरक चतुर्दशी और छोटी दीवाली के नाम से भी जाना जाता है।
काली चौदस का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है। काली पूजा को भूत पूजा के नाम से भी जानते हैं। विशेषकर गुजरात के कुछ इलाकों में इसे भूत पूजा के नाम से जाना जाता है। काली चौदस पूजा का बहुत महत्व बताया गया है। इस पूजा को करने से जादू-टोना, बेरोजगारी, लम्बे समय से चली आ रही बीमारी, शनि दोष जैसे कुंडली के बड़े दोष, कर्जा, बिजनेस में हानि, जैसी समस्याएं दूर की जा सकती हैं।
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काली चौदस से मिलने वाला लाभ
कहा जाता है किसी भी पूजा का पूर्ण लाभ तभी मिलता है जब आप पूजा को विधि पूर्वक तरीके से करें। तो सबसे पहले जान लीजिए काली चौदस पूजा की विधि क्या है?
- काली चौदस पूजा में अगरबत्ती, धूप बत्ती, फल, फूल, काली उड़द की दाल, गंगाजल, हल्दी, हवन सामग्री, कलश, कुमकुम, कपूर, नारियल, लाल-पीले रंग जिससे रंगोली बनाई जाए, देसी घी, नारियल, चावल, सुपारी, रूई, शंख, निरंजन, माचिस और छोटी पतली लकड़ियां यह सब सामग्रियां अवश्य शामिल करें।
- काली पूजा में विशेष तौर पर बोला जाता है कि इस दिन अभ्यंग स्नान करना बेहद महत्वपूर्ण होता है। मान्यता है कि अभ्यंग स्नान करने से व्यक्ति नर्क में नहीं जाता है बल्कि मृत्युपर्यंत उसे स्वर्ग नसीब होता है। अभ्यंग स्नान के बाद अपने पूरे शरीर पर इत्र/परफ्यूम लगाकर पूजा पर बैठना चाहिए।
- इसके बाद मां काली की एक मूर्ति या फोटो तस्वीर एक चौकी पर स्थापित करें।
- इसके बाद मां काली के समक्ष दीप जलाएं, धूप, अगरबत्ती, इत्यादि से मां काली को सुशोभित करें।
- इसके बाद हल्दी, कुमकुम, कपूर, नारियल, इत्यादि सामग्रियां माता की पूजा में इस्तेमाल करें।
- सारी सामग्री माता को चढ़ाने के बाद काली मां की पूजा शुरू करें।
आमतौर पर तंत्र शास्त्र के अनुसार महाविद्याओं में माँ काली को सर्वोच्च माना गया है। तंत्र के साधक महाकाली की साधना को बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं और ऐसा भी माना गया है कि मां काली की पूजा किसी भी कार्य का तुरंत परिणाम देने वाली साबित होती है।
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काली पूजन के दिन करें यह खास उपाय
- अगर आपको अपने व्यवसाय में दिक्कत आ रही है तो इस दिन रात में पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का एक सिक्का, 11 अभिमंत्रित कौड़िया, बांधकर 108 बार श्री लक्ष्मी नारायण नमः का जप करें, और इसके बाद इस पोटली को उठाकर पैसे वाली जगह पर, जहां पैसा रखते हैं वहां रख दें।
- इसके अलावा अगर आप मिर्गी या पागलपन की बीमारी से पीड़ित हैं, या आपके घर में कोई इस बीमारी से पीड़ित है तो इस रात काली हल्दी को कटोरी में रख कर लोबान की धूप दिखाकर शुद्ध करें। उसके बाद उसके एक टुकड़े में छेद करके उसको काले धागे में पिरो कर इसे मिर्गी या पागलपन से पीड़ित इंसान के गले में पहना दें। नियमित रूप से कटोरी की थोड़ी सी हल्दी का चूर्ण पानी के साथ मिलाकर सेवन करें। इससे आपको लाभ अवश्य मिलेगा।
- अगर कोई लगातार बीमार रहता है तो उसे इस रात आटे के दो पेड़े बनाकर उसमें गीले चने की दाल के साथ गुड़ और पिसी काली हल्दी को दबाकर खुद के ऊपर से सात बार वारकर गाय को खिला देना चाहिए।
- अगर आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है और आपको उससे छुटकारा पाना है तो इस रात कालीमिर्च के साथ 8 दाने लेकर उसे घर के किसी कोने में दिए में रखकर जला दें।
- अगर आपके बच्चों को नजर लग गई है तो काले कपड़े में हल्दी को बांधे 7 बार उसे ऊपर से उतार कर बहते हुए पानी में प्रवाहित कर दें।
रूप चतुर्दशी/काली चौदस पौराणिक कथा
इस दिन के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार बताया जाता है काली चौदस के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। नरकासुर ने सोलह हज़ार सौ कन्याओं को बंदी बनाकर रखा था। जिन्हें श्री कृष्ण ने इसी दिन स-सम्मान मुक्त कराया था। ऐसे में इस दिन दीयों की लड़ी लगाई जाती है। इस दिन के बारे में एक और कथा प्रचलित है, जिसके बारे में जिसके अनुसार कहा जाता है कि एक समय की बात है रंतिदेव नामक एक पुण्यात्मा राजा हुआ करते थे। इन्होंने अनजाने में भी अपने जीवन में कोई गलत काम नहीं किया था लेकिन जैसे ही राजा की मृत्यु का समय आया तो यमदूत उनके सामने आकर खड़े हो गए।
यमदूत को सामने देख राजा हैरान हो गए उन्होंने बोला मैंने तो आज तक कोई पाप नहीं किया है फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हैं? आपके यहां आने का मतलब मुझे नर्क जाना होगा। ऐसे में कृपया करके मुझे यह बताइए कि मुझे नर्क क्यों जाना पड़ेगा? जबकि मैंने कोई गलत काम नहीं किया है। यह सुनकर यमदूत ने उन्हें बताया कि, एक बार आपके दरवाजे से ब्राह्मण भूखा लौटा था। यह उसी पाप का फल है। तब राजा ने यमदूत से एक वर्ष की मोहलत मांगी। यमदूत ने राजा को उतना समय दे भी दिया।
तब राजा अपनी इस परेशानी को लेकर ऋषियों के पास पहुंचे। उन्हें सारी बात बताई और उनसे मुक्ति का उपाय पूछा। तब ऋषि ने उन्हें बताया कि, किसी कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपने से अनजाने में हुए पाप की क्षमा मांगे। राजा ने ऋषि के बताए अनुसार ठीक वैसा ही किया। ऐसा करने से राजा से अनजाने में किए हुए पाप से मुक्त हो गए और मृत्यु के बाद विष्णु लोक को प्राप्त हुए।
इस दिन सुंदर रूप पाने के लिए करें ये काम
काली चौदस को रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन तेल लगाकर पानी में चिरचिर के पत्ते डालकर उसे स्नान करने में बहुत लाभ मिलता है। इस जल से नहाने के बाद भगवान विष्णु और कृष्ण के मंदिर में जाकर उनके दर्शन करें। इससे आपको आपके सभी पापों से मुक्ति मिलती है और सुंदर रूप की प्राप्ति होती है।
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