वैदिक ज्योतिष में किसी भी ग्रह के वक्री होने की घटना को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। किसी भी ग्रह का वक्री होना असल में एक ज्योतिषीय घटना है जहां कोई भी ग्रह उल्टी दिशा में चलता हुआ प्रतीत होता है। इस दौरान ग्रहों के नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव भी विशेष हो जाते हैं। अब चूंकि जल्द ही बृहस्पति ग्रह की वक्री चाल शुरू होने वाली है।
ऐसे में आज हम आपको इस लेख में वक्री बृहस्पति से जुड़ी 07 बेहद जरूरी बातें बताने जा रहे हैं।
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01 – सनातन धर्म में बृहस्पति का महत्व
सनातन धर्म में बृहस्पति का काफी महत्व है। बृहस्पति की पूजा तो होती ही है और इसके साथ-साथ उन्हें भगवान विष्णु के समतुल्य भी माना गया है। भगवान बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र बताए जाते हैं। देवताओं के बीच उन्हें गुरु का दर्जा प्राप्त है यानी बृहस्पति देवताओं के लिए भी पूजनीय हैं। सप्ताह में बृहस्पतिवार का दिन भगवान बृहस्पति को समर्पित है। इस दिन खास तौर से भगवान बृहस्पति की पूजा की जाती है। सभी वृक्षों और पौधों में केले के वृक्ष को भगवान बृहस्पति के रूप में पूजा जाता है। भगवान बृहस्पति को सनातन धर्म में शील और धर्म का अवतार माना जाता है।
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आइये अब आपको बताते हैं कि वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति का क्या महत्व है।
02 – वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति का महत्व
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को सभी ग्रहों के बीच गुरु का स्थान प्राप्त है। यही वजह है कि बृहस्पति का एक अन्य नाम ‘गुरु’ भी है। सभी बारह राशियों में धनु और मीन राशि पर बृहस्पति का आधिपत्य है। वही 27 नक्षत्रों के बीच गुरु पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी माने जाते हैं। गुरु कर्क राशि में उच्च होते हैं और वहीं मकर में यह नीच हो जाते हैं। गुरु किसी भी जातक की कुंडली में ज्ञान, शिक्षा, शिक्षक, संतान, बड़े भाई, धर्म-कर्म इत्यादि के कारक माने जाते हैं।
वैदिक ज्योतिष में शुक्र को भी गुरु की ही तरह एक शुभ ग्रह माना गया है लेकिन शुक्र और गुरु एक दूसरे के प्रति बैर रखते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि शुक्र दैत्यों के गुरु हैं जबकि बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। सभी नौ ग्रहों में सूर्य, चंद्रमा और मंगल से गुरु दोस्ताना व्यवहार रखते हैं जबकि बुध और शुक्र से इन्हें बैर है।
बृहस्पति सभी नौ ग्रहों के बीच उन ग्रहों में से हैं जिनकी गोचर अवधि काफी लंबी होती है। गुरु एक राशि में लगभग 13 महीने गोचर करते हैं। यही वजह है कि जब गुरु का गोचर होता है तो इसका प्रभाव भी व्यापक होता है। इस 13 महीने के गोचर के दौरान लगभग चार महीने गुरु वक्री अवस्था में रहते हैं।
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आइये अब आपको जानकारी दे देते हैं कि बृहस्पति देवता वक्री कब होने जा रहे हैं।
03 – कब वक्री हो रहे हैं बृहस्पति?
साल 2021 में 20 जून को रविवार के दिन बृहस्पति की कुंभ राशि में वक्री चाल शुरू हो जाएगी। इसके बाद वे 14 सितंबर 2021 को दोबारा मार्गी होंगे। इस दौरान वे लगभग तीन महीने वक्री अवस्था में रहेंगे। इसके बाद वे मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे।
आइये अब आपको बताते हैं कि बृहस्पति के वक्री होने से क्या प्रभाव पड़ता है।
04 – वक्री बृहस्पति का प्रभाव
वक्री शब्द अपने आप में काफी नकारात्मक लगता है लेकिन ग्रहों की स्थिति में ऐसा नहीं होता है। आचार्य मृगांक बताते हैं,
“कोई भी ग्रह वक्री होता है तो आमतौर पर लोग यही सोचते हैं कि यह ग्रह अशुभ फल ही देगा लेकिन ऐसा नहीं होता है। यदि अच्छे भाव का स्वामी होकर गुरु अच्छी स्थिति में है और वह वक्री हो रहा है तो वह आपको अच्छी सफलता देगा। इस दौरान आपके रुके हुए कार्य दोबारा शुरू हो सकते हैं। आपके प्रयास करने की क्षमता बढ़ सकती है। आपको आपके परिश्रम को फल मिलेगा और आपको गुरु जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा। जबकि जिनकी कुंडली में बृहस्पति अशुभ स्थिति में है और अशुभ भावों का स्वामी होकर वक्री होता है तो ऐसे जातकों के कार्यों में रुकावट आती है और धर्म-कर्म के मार्ग से वह व्यक्ति भटकता है।”
आचार्य मृगांक
इन बातों से साफ है कि वक्री बृहस्पति उन जातकों को नकारात्मक फल देगा जिनकी कुंडली में बृहस्पति नकारात्मक स्थान पर विराजमान है जबकि वैसे जातक जिनकी कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थान पर विराजमान हैं उन्हें इस दौरान शुभ फल प्राप्त होगा। ग्रहों के वक्री चाल के दौरान नकारात्मक और सकारात्मक परिणाम की मात्रा अधिक हो जाती है। यानी कि ग्रहों के वक्री चाल के दौरान जातकों को उस ग्रह की कुंडली में स्थिति के अनुसार ज्यादा फल प्राप्त होते हैं, अब वो चाहे सकारात्मक हो या फिर नकारात्मक।
आइये अब आपको बता देते हैं कि गुरु यदि शुभ स्थिति में हो तो जातकों को क्या फल मिलता है।
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05 – बृहस्पति यदि बली अवस्था में हों
किसी भी जातक की कुंडली में बृहस्पति यदि बली अवस्था में हो तो सामान्य परिस्थिति में ऐसे जातक शिक्षा के क्षेत्र में बढ़िया प्रदर्शन करते हैं। ऐसे जातकों की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है और धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ती है। बृहस्पति यदि कुंडली में मजबूत स्थिति में हो तो ऐसा जातक ईमानदार होता है। ज्ञान प्राप्त करने की उसमें प्रबल इच्छा देखने को मिलती है। इसके अलावा बृहस्पति ही किसी भी जातक की कुंडली में संतान का कारक होता है।
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आइये अब आपको बता देते हैं कि यदि बृहस्पति देवता किसी जातक की कुंडली में कमजोर स्थिति में मौजूद हों तो क्या फल मिलता है।
06 – बृहस्पति यदि कमजोर अवस्था में हों
यदि किसी भी जातक की कुंडली में बृहस्पति देवता कमजोर स्थिति में विराजमान हों तो ऐसे जातक को नकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। ऐसे जातकों का विकास रुक जाता है और दरिद्रता उनके जीवन में प्रवेश कर जाती है। समाज में उनके मूल्यों का मज़ाक बनाया जाता है जिससे उनके मान-सम्मान को ठेस पहुँचती है। ऐसे जातकों को नौकरी ढूँढने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और वहीं विवाह में भी समस्या आती है। पेट से संबंधित रोग उन्हें घेर लेते हैं और ज्यादा बुरी स्थिति होने पर कभी-कभी कैंसर जैसी बीमारी का प्रकोप भी उन्हें झेलना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में जातकों को बृहस्पति शांति के उपाय करने चाहिए।
आइये अब हम आपको बता देते हैं कि बृहस्पति शांति के लिए क्या उपाय करने चाहिए।
07 – बृहस्पति शांति के उपाय
- बृहस्पति देवता को प्रसन्न करने के लिए बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करें। यदि आप महिला हैं तो अपने पति का सम्मान करें। वहीं गुरु और ब्राह्मण का सम्मान करने से बृहस्पति देवता अति प्रसन्न होते हैं।
- यदि आपके घर में बच्चे हों तो उन्हें डांटने से बचें और जितना हो सके उन्हें प्यार दें। वहीं बड़े भाई से अच्छे संबंध बना कर रखें। इससे बृहस्पति देवता की आप पर विशेष कृपा होगी।
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- बृहस्पति देवता शील और धर्म के देवता माने जाते हैं। ऐसे में झूठ बोलने से बचें। परस्त्री पर बुरी नजर न डालें।
- प्रत्येक दिन सुबह में भगवान शिव की आराधना करें। शिव सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करें। इससे बृहस्पति देवता के नकारात्मक प्रभाव कम होंगे।
- गुरुवार का दिन भगवान बृहस्पति को समर्पित होता है। इस दिन व्रत रखें। फलाहार पर रहें। ज्यादा समस्या होने पर आप सेंधा नमक खा सकते हैं।
- गुरुवार के दिन किसी मंदिर जा कर केले पेड़ की जड़ में गाय के घी का दीपक जलाएं। भगवान बृहस्पति अत्यंत प्रसन्न होंगे।
- बृहस्पति भगवान के बीज मंत्र “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः!” का जाप करें। वैसे तो गुरु बीज मंत्र का 19 हजार जप करना चाहिए लेकिन देश, काल, पात्र और पद्धति के अनुसार इसकी संख्या कलयुग में 76 हजार बताई गई है। भगवान बृहस्पति को प्रसन्न करने के लिए आप “ॐ बृं बृहस्पतये नमः!” मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
- गुरुवार के दिन पीले रंग की वस्तु जैसे कि पीली मिठाई, पीले खिलौने, पीले वस्त्र का दान करें। इसके अलावा आप कच्चा नमक, शुद्ध घी, किताबों आदि का भी दान कर भगवान बृहस्पति को प्रसन्न कर सकते हैं।
- वैसे जातक जिनकी कुंडली में बृहस्पति कमजोर स्थिति में हो उन्हें पुखराज रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। हालांकि आपको यह भी सलाह दी जाती है कि कोई भी रत्न धारण करने से पहले आप किसी विद्वान ज्योतिषी से सलाह जरूर ले लें।
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