आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की त्रोयदशी से आरंभ होकर पांच दिनों तक चलने वाले जया पार्वती व्रत का हिन्दू धर्म में स्त्रियों के लिए ख़ासा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधि पूर्वक रखकर स्त्रियां माता पार्वती से उत्तम सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त कर सकती हैं। इस व्रत में जागरण का विशेष महत्व है। यहाँ हम आपको जया पार्वती व्रत जागरण के नियम और लाभ के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं इस व्रत के दौरान किस प्रकार से स्त्रियों को करना चाहिए जागरण।
जया पार्वती व्रत का महत्व
जया पार्वती व्रत मुख्य रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। उत्तर भारत में जिस प्रकार से महिलाएं हरतालिका और गणगौर का व्रत रखती हैं उसी प्रकार से मालवा क्षेत्र में सुहागिन स्त्रियां जया पार्वती व्रत रखती हैं। बता दें कि इस व्रत को केवल सुहागिन महिलाएं ही नहीं बल्कि कुंवारी लड़कियां भी रख सकती हैं। सुहागिन स्त्रियां जहाँ इस व्रत को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती है वहीं कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए इस व्रत को रखती है। इस साल 14 जुलाई से आरंभ होने वाले इस व्रत की समाप्ति 19 जुलाई को नियमपूर्वक किया जाएगा।
जया पार्वती व्रत जागरण
पांच दिनों तक चलने वाले जया पार्वती व्रत के आखिरी दिन समाप्ति से पहले पूरी रात जागकर सुहागिन स्त्रियां जागरण करती हैं। इसे जया पार्वती व्रत जागरण कहा जाता है। इस व्रत की समाप्ति से ठीक एक रात पहले सुहागिन स्त्रियां और कुंवारी व्रती लड़कियों के द्वारा माँ पार्वती का सारी रात जागकर जागरण किया जाता है। इस व्रत को करने वाली सभी स्त्रियों के लिए व्रत की समाप्ति से ठीक एक रात पहले जागरण करना अनिवार्य माना जाता है। जागरण के दौरान पूरी रात व्रती महिलाओं द्वारा माता पार्वती और शिव जी के भजन कीर्तन आदि का गान किया जाता है और उनके मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
जया पार्वती व्रत जागरण के महत्व
जया पार्वती व्रत जागरण मुख्य रूप से जया पार्वती व्रत की समाप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। व्रत समाप्ति बिना जागरण के करना अमान्य माना जाता है। इस जागरण को व्रत समाप्ति के एक रात करने के बाद ही अगले दिन व्रत खोला जाता है। पूरी रात जागरण करने के बाद अगली सुबह स्त्रियां नमक और गेहूं से बना भोजन ग्रहण कर इस व्रत को खोलती हैं।
इस व्रत को नियमपूर्वक करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही ये व्रत संतान प्राप्ति के उद्देश्य से भी रखा जा सकता है। माँ पार्वती की असीम कृपा से सौभाग्य के साथ ही संतान सुख की प्राप्ति भी हो सकती है।
ये भी पढ़ें