प्रत्येक वर्ष आषाढ़ के महीने में 3 किलोमीटर लंबी अलौकिक रथ यात्रा के जरिए श्री हरि के अवतार श्रीकृष्ण को जगन्नाथ मंदिर जोकि उड़ीसा के पुरी शहर में स्थित है यहां के गुंडिचा मंदिर में लाया जाता है। यह जगन्नाथ रथ यात्रा प्रत्येक वर्ष बेहद ही धूमधाम के साथ निकाली जाती है और इसमें शामिल होने के लिए देश और दुनिया के कोने कोने से सैंकड़ों लोग इकट्ठे होते हैं।
इस विशेष ब्लॉग में हम आपको जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व बताएंगे, साथ ही बताएंगे कि हर साल क्यों यह रथयात्रा निकाली जाती है। इसके साथ ही रथयात्रा के सभी दिनों का पूरा शेड्यूल इस ब्लॉग के माध्यम से हम आपको प्रदान कर रहे हैं। यहाँ सबसे पहले हम आपको बता दें कि इस साल जगन्नाथ यात्रा 1 जुलाई से शुरू होगी और फिर इसका समापन 12 जुलाई को होगा।
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रथ यात्रा का महत्व
हर साल इस पावन और बेहद ही आकर्षक रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बात करें तो कहा जाता है कि, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र, और बहन सुभद्रा को अपनी मौसी के घर लेकर जाते हैं। इसी उपलक्ष्य में हरेक वर्ष रथ यात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से भव्य और दिव्य रथों पर निकलती है। इसमें सबसे आगे बलभद्र का रथ होता है, उसके पीछे उनकी बहन सुभद्रा का रथ होता है और सबसे आखिर में जगन्नाथ का रथ होता है।
इस वर्ष रथ यात्रा का पूरा शेड्यूल
जगन्नाथ रथ यात्रा
जून 30, 2022 को 10:50:20 से द्वितीया आरम्भ
जुलाई 1, 2022 को 13:10:27 पर द्वितीया समाप्त
1 जुलाई 2022, शुक्रवार-रथ: यात्रा प्रारंभ गुंडिचा मौसी के घर जाने की परंपरा।
5 जुलाई 2022, मंगलवार-हेरा पंचमी: रथ यात्रा के पहले 5 दिनों तक भगवान गुंडिचा मंदिर में ही वास करते हैं।
8 जुलाई 2022, शुक्रवार– संध्या दर्शन: मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से 10 वर्षों तक की जाने वाली श्री हरि की पूजा के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।
9 जुलाई 2022, शनिवार– बहुदा यात्रा: इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ घर वापसी कर लेते हैं।
10 जुलाई 2022, रविवार– सुनाबेसा: जगन्नाथ मंदिर वापस लौटने के बाद भगवान अपने भाई और बहन के साथ इस दिन शाही रूप धारण करते हैं।
11 जुलाई 2022, सोमवार– आधर पना: आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन रथ पर एक विशेष तरह का पेय अर्पित किया जाता है। इसे ही पना कहते हैं।
12 जुलाई 2022, मंगलवार– नीलाद्री बीजे- जगन्नाथ रथ यात्रा के सभी दिनों में किए जाने वाले अनुष्ठानों में यह सबसे खास अनुष्ठान होता है। इसे नीलाद्री बीजे कहते हैं।
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क्यों प्रतिवर्ष निकाली जाती है यह रथयात्रा?
पद्मा पुराण के अनुसार कहा जाता है कि, एक समय की बात है जब भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा अपने भाई से जताई। तब भाई जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन को रथ पर बिठाकर नगर दिखाने निकल पड़े। इस दौरान वे अपनी मौसी के घर भी गए जहां पर वह 7 दिनों तक रुके। माना जाता है कि तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है। इस रथ यात्रा का ज़िक्र नारद पुराण और ब्रह्मा पुराण में भी मिलता है।
रथ यात्रा के दौरान मनायी जाने वाली परंपराएँ
पहांडी: इस परंपरा के अनुसार भक्त जन बलभद्र, सुभद्रा, और भगवान कृष्ण को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर की यात्रा कराते हैं। माना जाता है कि गुंडिचा भगवान कृष्ण की परम भक्त थीं और उनकी इसी भक्ति के सम्मान में यह तीनों प्रत्येक वर्ष से मिलने जाते हैं।
छेरा पहरा: रथ यात्रा के दौरान मनाए जाने वाली दूसरी परंपरा होती है छेरा पहरा जिसमें पुरी के गजपति महाराज यात्रा मार्ग एवं रथ को सोने की झाड़ू से साफ करते हैं। यह रस्म यात्रा के दौरान दो बार की जाती है। एक बार जब यात्रा को गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है और दूसरी बार जब रथ को वापस जगन्नाथ मंदिर लाया जाता है।
इसके बाद यात्रा के पांचवें दिन हेरा पंचमी का आयोजन किया जाता है। इसमें माँ लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती हैं।
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जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़े कुछ बेहद ही रोचक और जानने योग्य बातें
- मान्यता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में भाग लेने पर सौ यज्ञों के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।
- भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम, और बहन सुभद्रा के रथ यात्रा में शामिल होकर रथ को खींचने पर 100 यज्ञ करने के समान शुभ फल की प्राप्ति होती है।
- इसके अलावा कहा जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने मात्र से ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि इस यात्रा में शामिल होने के लिए प्रत्येक वर्ष देश भर से सैकड़ों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
- स्कंद पुराण में वर्णित है कि आषाढ़ माह में पुरी में तीर्थ स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है और भक्तों को शिवलोक प्राप्त होता है।
- इसके अलावा कहा जाता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में जो कोई भी व्यक्ति शामिल होता है उसके जीवन से सभी दुख, दर्द, कष्ट, परेशानियां, दूर होती हैं और जीवन में खुशियां वापस आने लगते हैं।
- रथ यात्रा में शामिल तीनों रथ अलग-अलग नाम और रंग के होते हैं। बलराम जी का रथ लाल और हरे रंग का होता है और उसका नाम ‘ताल ध्वज’ होता है। देवी सुभद्रा का रथ नीले और लाल रंग का होता है और इसे ‘पद्म रथ’ कहते हैं, इसके बाद भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग का होता है और इसे ‘गरुड़ध्वज’ कहते हैं।
- जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा के पुरी में स्थित है और इसे भारत के चार धामों में से एक माना गया है। यह मंदिर 800 वर्षों से भी ज्यादा प्राचीन है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण जगन्नाथ स्वरूप में अपने बड़े भाई बलराम, और देवी सुभद्रा के साथ विराजित हैं।
- जगन्नाथ रथ यात्रा के रथ बनाने के लिए नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है और इन रथों को बनाने के लिए किसी भी तरह की कांटे या धातु का प्रयोग नहीं होता है।
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….तो इसलिए जगन्नाथ भगवान के आंखों पर बांधी जाती है पट्टी
जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी कुछ रोचक बातें में एक मान्यता यह भी है कि रथ यात्रा से 15 दिनों पहले (ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्या) तक जगन्नाथ भगवान बीमार होते हैं और जब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाते हैं तभी यात्रा शुरू होती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ का बच्चे की तरह उपचार चलता है।
आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को जब भगवान से स्वस्थ हो जाते हैं तो द्वितीय तिथि से रथयात्रा निकाली जाती है। रथ यात्रा से पहले महंत, पुजारी भगवान के आंख खोलने की परंपरा निभाते हैं जिसमें भगवान की आंखों पर काजल लगाया जाता है और पट्टी को हटाया जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान बीमार होते हैं तो उनकी आंखों में जलन होने लगती है जिसकी वजह से उनकी आंखों पर पट्टी बांधी जाती है। यह पट्टी पूरे 15 दिनों तक बंधी रहती है और इस दौरान मंदिर के दरवाजे भी बंद रहते हैं।
जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि, इस मंदिर के ऊपर जो ध्वजा लगी है वह भगवान की आंखों का काम करती है जिससे वह अपने भक्तों को हर वक्त देखते रहते हैं। ऐसे में इस मंदिर के झंडे को देखने से भी उतना ही पुण्य प्राप्त होता है जितना प्रभु के दर्शन करने से मिलता है।
रथ यात्रा वाले दिन स्वर्ग में मौजूद 33 करोड़ देवी देवता भी पृथ्वी पर उतरकर इस रथ यात्रा में शामिल होते हैं। इसके अलावा एक दिलचस्प मान्यता के अनुसार ये कहा जाता है कि जब नेत्र उत्सव का कार्यक्रम चलता है उस वक्त देवी देवता स्वर्ग से भगवान पर फूलों की वर्षा करते हैं जो पृथ्वी पर बारिश के रूप में गिरती है। जानकारी के लिए बता दें कि जिस दिन रथ यात्रा शुरू होती है उस दिन बारिश अवश्य होती है।
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