कोरोना महामारी के बीच कुछ ऐसे निकलेगी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा

उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध है। खास तौर से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा तो दुनिया भर में काफी लोकप्रिय है। देश-विदेश से भगवान जगन्नाथ के भक्त इस रथयात्रा का हिस्सा बनने आते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ खींचना सौभाग्य माना जाता है। लेकिन इस बार देश और दुनिया में हालात बहुत अलग हैं। कोरोना महामारी से दुनिया त्रस्त है और लगातार लोग काल के गाल में समा रहे हैं। दुनिया भर की सरकार इस कोशिश में है कि आम लोगों की जान बचाई जा सके। यही वजह है कि दुनिया भर की सरकारें इस कोशिश में हैं कि ज्यादा लोग एक जगह जमा न हों इसलिए धार्मिक आयोजनों पर भी रोक लगा दी गयी है।

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प्रत्येक साल हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है लेकिन रथ के निर्माण का कार्य अक्षय तृतीया की शुभ तिथि से शुरू हो जाता है। भगवान जगन्नाथ के इस रथ यात्रा का आयोजन दस दिनों के लिए होता है जिसमें पहले दिन वे गुंडिचा माता के मंदिर जाते हैं। इस वर्ष यानी कि साल 2021 में यह रथ यात्रा 12 जुलाई को निकलेगी और इसका समापन 20 जुलाई को हो जाएगा। संयोग से इस वर्ष 20 जुलाई को देवशयनी एकादशी का पर्व भी पड़ रहा है।

साल 2021 में कब है जगन्नाथ रथ यात्रा?

प्रत्येक साल हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है लेकिन रथ के निर्माण का कार्य अक्षय तृतीया की शुभ तिथि से शुरू हो जाता है। भगवान जगन्नाथ के इस रथ यात्रा का आयोजन दस दिनों के लिए होता है जिसमें पहले दिन वे गुंडिचा माता के मंदिर जाते हैं। इस वर्ष यानी कि साल 2021 में यह रथ यात्रा 12 जुलाई को निकलेगी और इसका समापन 20 जुलाई को हो जाएगा। संयोग से इस वर्ष 20 जुलाई को देवशायनी एकादशी का पर्व भी पड़ रहा है। 

साल 2021 में कैसी होगी जगन्नाथ रथ यात्रा?

साल 2020 में जगन्नाथ रथ यात्रा सांकेतिक तौर पर निकाली गयी थी। साल 2021 में जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली तो जाएगी लेकिन इसमें आम भक्त मौजूद नहीं रहेंगे। उड़ीसा के स्पेशल रिलीफ कमिश्नर प्रदीप के जेना ने मीडिया से बात करते हुए इस बात की जानकारी दी है कि इस साल यानी कि साल 2021 में भी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा नियमों के बंधन से बंधे होंगे। इस साल भी आम भक्तों का जगन्नाथ रथ यात्रा में सम्मिलित होने पर सरकारी पाबंदी है। इसके अलावा रथ यात्रा में जो भी सेवक शामिल होंगे उनके पास कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट होनी आवश्यक है और साथ ही सभी सेवकों को कोरोना की वैक्सीन भी लगाई जाएगी तभी वे इस रथ यात्रा में शामिल हो सकेंगे।

पहले कब आई थी ऐसी स्थिति?

आपको बता दें कि यह पहली दफा नहीं है जब भगवान जगन्नाथ के धार्मिक क्रियाकलापों में किसी प्रकार का व्यवधान पड़ा हो। इससे पहले लगभग 285 साल पहले भी ऐसा हो चुका है। साल 1504 में जब भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों ने हमला किया था तब उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर में लगभग 144 साल पूजा-पाठ बंद रही थी। इसके बाद आद्य गुरु शंकराचार्य ने दोबारा इस मंदिर में पूजा-पाठ की शुरुआत की और लगातार 285 सालों से इस कार्य में कभी भी किसी प्रकार का व्यवधान नहीं पड़ा।

सनातन धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का कितना महत्व है?

पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में सनातन धर्म के अनुयायियों की बहुत आस्था है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के अवतार भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं। इसके साथ ही सुभद्रा और बलभद्र भी भगवान जगन्नाथ के साथ मंदिर में स्थापित हैं। इन तीनों की ही प्रतिमा काष्ठ की बनी हैं और प्रत्येक 12 साल में इन प्रतिमाओं को बदला जाता है। भगवान जगन्नाथ प्रत्येक साल रथ पर सवार होकर अपने भक्तों के बीच आते हैं और नगर भ्रमण करते हैं। इस दौरान सबसे आगे बलभद्र जी का रथ होता है जिसे तालध्वज कहा जाता है, उसके पीछे सुभद्रा जी का रथ जिसे दर्पदलन या फिर पद्म रथ कहा जाता है और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ मौजूद होता है जिसे नंदी घोष कहा जाता है।

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भगवान जगन्नाथ के इस रथ यात्रा का जिक्र हमें स्कन्द पुराण में मिलता है जहां बताया गया है कि जो भी भक्त जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होकर गुंडिचा नगर तक आता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं मान्यता ये भी है कि जो भी भक्त रथ यात्रा के समय भगवान जगन्नाथ के दर्शन और उन्हें नमन कर रथ यात्रा में सम्मिलित हो धूल व कीचड़ से भरे रास्तों से होते हुए रथ को खींचता है, उसे मृत्यु के उपरांत विष्णुधाम प्राप्त होता है। कहा जाता है कि गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के दक्षिण दिशा से आते हुए दर्शन हो जाने पर व्यक्ति को दोबारा मृत्युलोक आने की जरूरत नहीं होती है।

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