जब भगवान विष्णु को नारद जी ने दिया शाप

बुरे कर्मों का फल हमेशा बुरा ही होता है और इसका दंड सबको भुगतना पड़ता है चाहे वह मनुष्य हो या कोई और। नियति के प्रकोप से कोई नहीं बचा है। इसका एक उदाहरण आज हम आपको इस लेख के द्वारा बताएंगे।

नारद जी के दिए हुए शाप के कारण विष्णु जी ने श्री राम का अवतार लिया था और उन्हें सीता जी (जो कि माता लक्ष्मी का रूप थीं) से वियोग सहना पड़ा था। आइए जानते हैं कैसे।

ऋषि भृगु की पुत्री थीं माता लक्ष्मी

ऋषि भृगु, जिन्हें सप्तर्षियों में स्थान मिला है, और उनकी पत्नी ख्याति माता लक्ष्मी के माता-पिता थे। समुद्र-मंथन के बाद क्षीरसागर से जो लक्ष्मी उत्पन्न हुई थीं उसका इनसे कोई संबंध नहीं। हालांकि उन महालक्ष्मी ने स्वयं ही विष्णु को वर लिया था।

नारद जी करना चाहते थे लक्ष्मी जी से विवाह

एक कथा के अनुसार लक्ष्मी जी जब बड़ी हुई तब उनके पिता ऋषि भृगु को उनकी विवाह की चिन्ता होने लगी। अपनी पुत्री के विवाह के लिए ऋषि भृगु ने स्वयंवर का आयोजन किया। कहा जाता है कि माता लक्ष्मी मन ही मन में विष्णु जी को अपना पति मान चुकी थी लेकिन फिर भी नारद जी उनसे विवाह करना चाहते थे। नारद जी यह बात भली भांति जानते थे कि लक्ष्मी जी को हरी रूप से प्रेम है और हरि रूप पाकर ही वे उसका वरण करेंगी।

यह सोचकर नारद जी विष्णु जी के पास पहुंचे और उनसे उनकी तरह सुन्दर रूप की कामना करने लगे। भगवान ने उनकी यह इच्छा पूर्ण कर दी और उन्हें हरी रूप दे दिया।

क्रोधित होकर नारद जी ने विष्णु जी को दिया शाप

भगवान विष्णु से उनका रूप प्राप्त करके नारद जी बहुत प्रसन्न थे और लक्ष्मी जी से विवाह करने के लिए स्वयंवर में पहुंचे जहां विष्णु जी भी मौजूद थे। नारद जी को विश्वास था कि लक्ष्मी जी उन्हें ही अपना वर चुनेंगी किन्तु माता ने नारद जी के नहीं बल्कि विष्णु जी के गले में वरमाला डाल दी। ये देखकर नारद जी बहुत अचंभित हुए और सोचने लगे कि हरि का रूप धारण करने के बाद भी लक्ष्मी जी ने उन्हें पति के रूप में क्यों नहीं चुना।

उदास होकर नारद जी वहाँ से वापस आ गये किन्तु रास्ते में एक जलाशय में अपना चेहरा देखकर उनके होश उड़ गए। दरअसल हरी का एक अर्थ विष्णु होता है और दूसरा वानर होता है। विष्णु जी ने नारद जी को अपना वानर रूप दे दिया था। नारद जी समझ गए कि भगवान ने उनके साथ छल किया है। वे विष्णु जी पर इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया की उन्हें मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर जाना होगा और जिस प्रकार नारद जी को स्त्री का वियोग सहना पड़ा ठीक उसी प्रकार उन्हें भी यह वियोग सहना पड़ेगा।

इस तरह विष्णु जी ने श्री राम का रूप लिया जिन्हे हमेशा के लिए अपनी पत्नी सीता जी से अलग होना पड़ा था।

लक्ष्मी जी के विवाह की एक अन्य कथा

एक अन्य कथा के अनुसार लक्ष्मी जी विष्णु जी के गुणों से बहुत ही प्रभावित थी इसलिए उन्हें पति रूप में पाने के लिए उन्होंने घोर तपस्या की ठीक उसी प्रकार जैसे पार्वती जी ने शिवजी को पाने के लिए की थी। लक्ष्मी जी की तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।