कल से सूर्योपासना का महापर्व “छठ” शुरू हो रहा है। चार दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में लोगों की बड़ी श्रद्धा होती है। हिन्दू धर्म में भी छठ पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ हो जाता है, और सप्तमी तक चलता है। छठ पूजा में खासतौर पर “सूर्य देव“ और “छठी मईया” कि पूजा की जाती है। इस साल 20 नवंबर से छठ पूजा मनाई जाएगी। इस त्यौहार को संतान और परिवार के सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है। चलिए आज इस लेख में आपको छठ पूजा के चारों दिन होने वाली गतिविधियों के बारे में बताते हैं –
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नहाय खाय से हो जाती है, छठ पूजा की शुरुआत
छठ पूजा में पहले दिन को नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं और पुरुष एक समय का भोजन करके अपने मन को शुद्ध करते हैं। इस दिन से घर में शुद्धता का बहुत ध्यान रखा जाता है, और लहसुन-प्याज़ बनाने की मनाही हो जाती है। नहाय-खाय वाले दिन व्रती महिलाएं लौकी की सब्ज़ी, चने की दाल, चावल और मूली खाती हैं।
दूसरे दिन रखते हैं, पूरे दिन का उपवास
छठ पूजा में दूसरे दिन को “खरना” के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखती हैं। खरना का मतलब होता है, शुद्धिकरण। खरना के दिन शाम होने पर गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर व्रती महिलाएं पूजा करने के बाद अपने दिन भर का उपवास खोलती हैं। फिर इस प्रसाद को सभी में बाँट दिया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन प्रसाद बनाने के लिए नए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।
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संध्या अर्घ्य में करते है, सूर्य की उपासना
तीसरे दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य देव को अर्ध्य दिया जाता है, जिसकी वजह से इसे “संध्या अर्ध्य“ कहा जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं भोर में सूर्य निकलने से पहले रात को रखा मिश्री-पानी पीती हैं। उसके बाद अगले दिन अंतिम अर्ध्य देने के बाद ही पानी पीना होता है। संध्या अर्घ्य के दिन विशेष प्रकार का पकवान “ठेकुवा” और मौसमी फल सूर्य देव को चढाए जाते हैं, और उन्हें दूध और जल से अर्घ्य दिया जाता है।
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उगते सूर्य के अर्घ्य के साथ संपन्न होती है छठ पूजा
चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। व्रत रखने वाली महिलाएं और पुरुष छठी मईया और सूर्य देव से अपने संतान और पूरे परिवार की सुख-शांति और उनपर अपनी कृपा बनाये रखने की प्रार्थना करती हैं। इसके बाद व्रती घर के देवी-देवा की पूजा करते हैं, और फिर प्रसाद को खाकर व्रत का समापन करते हैं।
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