ये अक्सर देखा जाता है कि शनि देव का नाम आते ही अक्सर लोगों के मन में किसी अनिष्ट की आशंका से एक अजीब सी घबराहट होने लगती है। क्योंकि शास्त्रों में शनि को यम, काल, दु:ख, दारिद्रय तथा मंद नामों से भी जाना जाता है। ऐसे में लोग अपने साथ किसी भी परेशानी, संकट, दुर्घटना, आर्थिक नुकसान होने पर यह समझने की भूल कर बैठते हैं कि उनके ऊपर या उनकी कुंडली में शनि की अशुभ छाया पड़ी है। ऐसे में लोग हमेशा शनिदेव को प्रसन्न करने के पीछे कई तरह के उपायों का सहारा लेने से भी पीछे नहीं हटते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए लोग शनि की पूजा भी करते हैं। वैदिक ज्योतिष में भी शनि ग्रह को क्रूर ग्रह बताया जाता रहा है, लेकिन वास्तव में शनि देव शत्रु नहीं बल्कि मित्र होते हैं। जो कलयुग के न्यायाधीश के रूप में अपना कार्यों का निर्वाह करते हुए लोगों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। इसलिए उन्हें ग्रह और देवता दोनों की उपाधि प्राप्त है, जिसके चलते ही उनका प्रताप किसी भी राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है। तो चलिए आज हम आपको कर्मफल दाता शनि देव से जुड़े उन रोचक तथ्यों और उनकी कुछ विशेषताओं के बारे में बताते हैं जिनसे ज्यादातर लोग अभी तक वंचित है।
शनि देव की विशेषताएँ
- हिन्दू धर्म के अनुसार शनि सूर्य पुत्र हैं, जिन्हे मृत्यु लोक के ऐसे स्वामी या अधिपति का दर्जा प्राप्त होता है, जो सही समय
- आने पर व्यक्ति के अच्छे-बुरे कर्मों के आधार पर उसे फल देते हुए उसे सुधारने के लिए बाधित करते हैं।
- शनि को आधुनिक युग यानी कलयुग का न्यायाधीश माना जाता हैं, जिन्हे न्याय हमेशा अप्रिय होता है इसलिए उन्हें कई लोग क्रूर समझते हैं।
- चूँकि काला रंग अकेला ऐसा रंग होता है जिसपर किसी भी अन्य रंग का कोई असर नहीं होता है, इसलिए काला रंग शनिदेव का रंग माना जाता है।
- शनि की धातु लौह-इस्पात होती है, जिन्हें सबसे अधिक उपयुक्त तथा शक्तिशाली माना गया है।
- इसके अलावा शनि की प्रिय वस्तुओं में साबुत उड़द, लोहा, तेल, तिल के बीज, कोयला, लौहा, काला तिल, आदि शामिल हैं, जिन्हे दान के रूप में प्रदान कर शनिदेव को प्रसन्न किया जा सकता है।
- शनिदेव की स्थापना के लिए समय श्रम का आंशिक दान सर्वोत्तम दान माना जाता है।
- सूर्य पुत्र शनिदेव को मुख्य रूप से अध्यात्मता का मालिक माना गया हैं, जिसके चलते किसी भी आराधना, साधना, सिद्धि हेतु शनिदेव की उपासना करना व्यक्ति के लिए परमावश्यक होता है।
- शनिदेव को पारिवारिक संगठन का मालिक भी माना जाता हैं। अत: उनकी कृपा बिना संयुक्त परिवार की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिए पारिवारिक जीवन में सुख-समृद्धि हेतु शनि देव की उपासना करनी चाहिए।
- शनिदेव से जुड़े क्षेत्रों में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, प्रशासनिक, विद्या, व्यापार आदि शामिल होते हैं।
- इन्ही क्षेत्रों में जातक को ऊंचाई देने का कार्य स्वयं शनि देव करते हैं।
- रोग मुक्ति जीवन तथा आयु वृद्धि के लिए भी सदैव शनि देव की आराधना करनी चाहिए।
- कलियुग के साक्षात भगवान का दर्जा भी शनि को ही प्राप्त हैं।
- शनिदेव को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, क्योंकि उनका कार्यक्षेत्र विस्तृत तथा विशाल है।
- शनिदेव के कर्म अनुसार फल देने की प्रवृत्ति से राजा से लेकर रंक तक सभी उनसे प्रभावित तथा डरे हुए रहते हैं।
- शनिदेव को पूरे जगत का शाश्वत असाधारण देव माना जाता है।
- मत्स्यपुराण अनुसार शनि का वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे से बना हुआ है।
- इसके साथ ही शनिदेव का आयुध- धनुष्य बाण और त्रिशूल होते हैं।