14 अक्टूबर तक चलेगा विश्व प्रसिद्ध “कुल्लू दशहरा”, जानें इससे जुड़ी रोचक बातें!

विश्व प्रसिद्ध ‘कुल्लू दशहरा’ महोत्सव की शुरुआत 8 अक्टूबर, मंगलवार से हिमाचल प्रदेश में कुल्लू जिले के धलपुर मैदान में हो चुकी है। देश-दुनिया में विख्यात यह महोत्सव भगवान रघुनाथ की भव्य रथ यात्रा के साथ शुरू की गयी। एक हफ्ते तक चलने वाला यह उत्सव इसलिए आकर्षण का केंद्र होता है, क्योंकि जब देश के बाकी जगहों पर दशहरा खत्म हो जाता है, तब ‘कुल्लू दशहरा’ आरम्भ होता है। यह उत्सव 17वीं सदी से मनाया जा रहा है। तो चलिए आज इस लेख में आपको बताते हैं “कुल्लू दशहरा” से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ –

8 अक्टूबर से हो चुकी है शुरुआत 

मंगलवार के दिन हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने “कुल्लू दशहरा” का विधिवत शुभारंभ किया और साथ ही भगवान रघुनाथ रथ यात्रा में भी हिस्सा लिया। इस सात दिवसीय उत्सव में लोगों को देव-मानस मिलन का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलेगा। यह महोत्सव 14 अक्टूबर तक चलेगा, जिसमें कई देशी-विदेशी सांस्कृतिक दल अपनी प्रस्तुतियां देंगे। ऐसा पहली बार हो रहा है, जब कुल्लू दशहरा के लिए 331 देवी-देवताओं को न्यौता दिया गया है।न देवी-देवताओं के आगमन से भगवान रघुनाथ की यह नगरी तपोवन में बदल गई। 14 अक्टूबर को कुल्लू दशहरा संपन्न होगा और इसके समापन समारोह में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर शामिल होंगे । 

क्यों मनाते हैं कुल्लू दशहरा ?

माना जाता है कि ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए वर्ष 1650 में भगवान रघुनाथ की मूर्ति अयोध्या से लाई गई और इनकी पूजा की गयी। तब से कुल्लू दशहरा का उत्सव शुरू हुआ था। उस  समय के राजा जगत सिंह ने अपना राज-पाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दिया और उनकी सेवा का संकल्प लिया था। तभी से लेकर आज तक यह आयोजन होता आ रहा है। अब इस परंपरा को महेश्वर सिंह जो कि राज परिवार के सदस्य है, वो निभाते आ रहे। 

ऐसे मनाते हैं “कुल्लू दशहरा” !

कुल्‍लु का दशहरा पूरे भारत वर्ष में प्रसि‍द्ध है। पहाड़ी लोग अपने ग्रामीण देवता की बड़े धूम धाम से जुलूस निकालकर पूजा करते हैं। कुल्लू दशहरा में देवालय से निकलकर सैकड़ों देवी-देवता 7 दिनों के लिए अस्थायी शिविरों में विराजमान रहते हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक ढंग से पालकी में सजाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ सभी सुंदर वस्त्रों पहनकर तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े, बाँसुरी आदि जिसके वाद्य लेकर बाहर निकलते हैं। प्रशिक्षित नर्तक-नटी भी इस जुलूस में नृत्य करते हैं। इस प्रकार जुलूस बनाकर ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ नगर के मुख्य भागों से होते हुए नगर परिक्रमा की जाती है और कुल्लू नगर में मुख्य देवता रघुनाथ जी के दरबार में शीश नवाते और वंदना करते हैं, जहाँ से भव्य और अद्भुत दशहरे के उत्सव का आरंभ होता है। दशमी के दिन इस महोत्सव की शोभा अलग ही देखने को मिलती है। यहाँ से शुरू हुई रथयात्रा के हर साल हजारों लोग, देशी-विदेशी सैलानी और शोधार्थी साक्षी बनते हैं। शाम के समय कला केंद्र में भी उत्सव मनाया जाता है। सात दिनों तक चलने वाला “कुल्लू दशहरा” हिमाचल के लोगों की संस्‍कृति और धार्मिक आस्‍था का प्रतीक है। 

यह भी पढ़ें –

इस धनतेरस राशि अनुसार करें ख़रीदारी, हो जाएंगे मालामाल !

करवाचौथ 2019: कुंवारी लड़कियों को इस प्रकार से रखना चाहिए व्रत !