जैसा की आप सभी जानते हैं की बीते 13 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है। पितृपक्ष की अवधि पंद्रह दिनों की होती है, लिहाजा इस बार श्राद्ध 28 सितंबर को समाप्त हो रहें हैं। आपको बता दें कि इस दौरान हर एक दिन का विशेष महत्व होता है और प्रत्येक दिन पितरों के लिए श्राद्ध करने की अलग अहमियत है और इसके विभिन्न लाभ भी प्राप्त होते हैं। तो देर किस बात की आइये जानते हैं श्राद्ध के सोलह दिनों के विशेष महत्व को।
बता दें कि हिन्दू धर्म में पितरों की तुलना देवताओं से की गयी है। इसलिए पितृपक्ष के सोलह दिनों के दौरान पितरों का पिंडदान कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना आवश्यक माना जाता है। पूर्णिमा तिथि से आरंभ और अमावस्या तिथि पर समाप्त होने वाले पितृपक्ष को शास्त्रों में ख़ासा अहमियत दी गयी है।
पितृपक्ष के हर एक तिथि का है ख़ास महत्व
प्रतिपदा तिथि
बता दें कि पितृपक्ष जिस तिथि से आरंभ होती है उसे प्रतिपदा तिथि कहते हैं। इस दिन पितरों का पिंडदान करने से मुख्य रूप से सुख समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
इन पांच चीजों के बिना अधूरी मानी जाती है पिंडदान की विधि !
द्वितीया तिथि
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति द्वितीया तिथि के दिन अपने पितरों का पिंडदान करते हैं वो अपनी आने वाली जिंदगी एक राजा की तरह जीते हैं। इसलिए इस दिन पिंडदान करना भी अहम माना गया है।
तृतीया तिथि
जीवन का अर्थ प्राप्त करने के लिए तृतीया तिथि को पिंडदान करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पितरों का पिंडदान करने से आपको उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है।
चतुर्थी तिथि
पितृपक्ष के दौरान चतुर्थी तिथि को पिंडदान करने से मुख्य रूप से शत्रुओं का नाश होता है और परिवार के ऊपर हमेशा के लिए पूर्वजों का आशीर्वाद विधमान रहता है।
पंचमी तिथि
आपको बता दें कि पंचमी तिथि के दिन पिंडदान या श्राद्ध की विधि करने वालों के जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं आती। इस दिन पिंडदान करना ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है।
षष्टी तिथि
ऐसी मान्यता है कि इस तिथि पर जिस पितर का पिंडदान किया जाता है उसे स्वर्ग में स्थान मिलता है और देवतागण भी उसकी पूजा करते हैं।
सप्तमी तिथि
शास्त्रों के अनुसार सप्तमी तिथि के दिन श्राद्धविधि करने वाले व्यक्ति को यज्ञों के समान पुण्यफल मिलता है। इसके साथ ही साथ पितरों के आशीर्वाद से उसे अन्य गुणों की प्राप्ति भी होती है।
पिंडदान के लिए इन दस स्थानों को माना जाता है विशेष महत्वपूर्ण !
अष्टमी तिथि
अष्टमी तिथि पर श्राद्ध क्रिया करने वाले व्यक्ति को मुख्य रूप से जीवन में हर प्रकार की सुख समृद्धि मिलती है और जीवन काफी सुखमय बीतता है।
नवमी तिथि
इस तिथि पर अपने पितरों का पिंडदान करने वाले व्यक्ति को विशेष रूप से वैवाहिक जीवन में काफी लाभ मिलता है। उन्हें जीवनसाथी के रूप में सुंदर और आज्ञाकारी पत्नी का साथ मिलता है।
दशवीं तिथि
इस दिन पितरों का पिंडदान करने वाले व्यक्ति को मुख्य रूप से ब्रह्मत्व का आशीर्वाद मिलता है। इसके साथ ही साथ उन्हें जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं आती, लक्ष्मी माता का भी विशेष आशीर्वाद मिलता है।
एकादशी तिथि
हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन पिंडदान की क्रिया करना ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस तिथि पर पिंडदान करने वाले को सभी वेदों का ज्ञान मिलता है। इसके साथ ही साथ उसे अपने सभी पापों से भी मुक्ति मिलती है।
द्वादशी तिथि
बता दें कि इस दिन श्राद्ध विधि करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी भी अन्न की कमी नहीं आती और जीवन सुखी पूर्वक आत्मसंतुष्टि के साथ व्यतीत होता है।
त्रियोदशी तिथि
इस दिन पितरों का पिंडदान करने वालों को बुद्धि, दीर्घायु और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही साथ इस तिथि पर श्राद्ध क्रिया करने वालों को संतान सुख की प्राप्ति भी होती है।
इसके अलावा आपको बता दें कि जिन पितरों के मृत्यु की तिथि परिवार वालों को मालूम नहीं होती है वो अपने पितरों का श्राद्ध पितृपक्ष के आखिरी दिन यानि कि 28 सितंबर को अमावस्या तिथि पर कर सकते हैं।