पितृपक्ष 2019: यहाँ जानें गया में पिंडदान करने का महत्व !

आज 13 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है, हिन्दू धर्म में इसे ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है। पितरों की आत्मा के शांति के लिए हर साल लोग अपने परिवार के पूर्वजों के लिए पिंडदान और तर्पण की क्रिया करते हैं। पिंडदान के लिए विशेष रूप से गया को सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। आज हम आपको विशेष रूप से गया में पिंडदान करने के महत्व और पितृपक्ष से जुड़े अन्य तथ्यों के बारे में बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं गया में पिंडदान करने का क्या है विशेष महत्व। 

पिंडदान क्यों किया जाता है 

पिंडदान करने के महत्व के बारे में जानने से पहले ये जान लेना बेहद आवश्यक है कि आखिर पिंडदान कहते किसे हैं। हमारे धार्मिक मान्यता के अनुसार पिंड वास्तव में किसी चीज या वस्तु के गोलाकार आरेख को कहा जाता है। शास्त्रों में मानव शरीर की तुलना भी एक पिंड से की गयी है। पितृपक्ष के दौरान जब पिंडदान किया जाता है तो विशेष रूप से आटे में चावल और जौ मिलाकर गोल स्वरुप के पिंड का निर्माण कर पिंडदान की क्रिया संपन्न की जाती है। निर्मित पिंड को पितर का स्वरुप माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है। पिंडदान की प्रक्रिया मुख्य रूप से दक्षिण की तरफ मुख करके किया जाता है। सबसे पहले पके चावल में गाय का दूध, शक्कर और शहद मिलाकर पिंड का निर्माण किया जाता है। इसके बाद जल में काले तिल, कुश, जौ और सफ़ेद फूल मिलाकर तर्पण की क्रिया संपन्न की जाती है। श्राद्ध विधि संपन्न होने के बाद पितरों को समर्पित करते हुए ब्रहमणों को भोजन करवाया जाता है। परिवार के सभी पितरों का पिंडदान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार मृत्यु के बाद यदि किसी का पिंडदान ना किया जाए तो ऐसे पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है।

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गया में पिंडदान करना क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है 

पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गया को मोक्ष भूमि माना गया है। ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र भूमि पर कदम भर रखने से ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इस बात का साक्ष्य वायु पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है। इन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गया में पिंडदान करने से पितरों को तत्काल ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए गया को पितृतीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर गया को ही पिंडदान के लिए क्यों चुना गया। बता दें कि एक पौराणिक कथा के अनुसार प्रसिद्ध असुर भस्मासुर का वंसज गयासुर ने असीम तपस्या के बाद स्वयं ब्रह्मा जी से ये वरदान माँगा की उसका शरीर भी अन्य देवताओं की तरह पवित्र हो और सामान्य जन उसके दर्शन मात्र से ही सभी पापों से मुक्त हो जाएँ। माना जाता है कि ब्रह्मा जी द्वारा गयासुर को ये वरदान मिलने के बाद से स्वर्ग की जनसँख्या काफी बढ़ने लग गयी। दूसरी तरफ धरती पर पाप बढ़ने लगे और स्थिति काफी चिंताजनक बन गयी। 

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इस स्थिति से बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ करने के लिए गयासुर से किसी पवित्र जगह की मांग की। ऐसा माना जाता है कि गयासुर ने अपना शरीर ही यज्ञ के लिए देवताओं को दे दिया। जब गयासुर जमीन पर लेटा तो उसका शरीर करीबन पांच कोष में फ़ैल गया। ऐसी मान्यता है कि गयासुर के शरीर के पांच कोष का हिस्सा ही आगे चलकर गया के नाम से मशहूर हुई। बाद में देवताओं द्वारा इस जगह को पिंडदान का स्थल बना दिया गया और लोग यहाँ आकर मृतकों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने लगे।