हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत हो जाती है। चैत्र के महीने के साथ ही हिंदू नव वर्ष प्रारंभ होने के पीछे कई पौराणिक व वैदिक मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारंभ किया था, ताकि सृष्टि लगातार प्रकाश की ओर अग्रसर हो सके।
पंचांग अनुसार जैसे ही होली का त्योहार समाप्त होता है, वैसे ही चैत्र के महीने की शुरुआत हो जाती है। इस माह को हिंदू पंचांग का पहला महीना माना गया है। चैत्र मास को मधुमास के नाम से भी जाना जाता है। चित्रा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने की वजह से इस महीने को चैत्र मास कहा गया है।
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चैत्र मास: 19 मार्च से 16 अप्रैल तक
वर्ष 2022 में चैत्र का महीना 19 मार्च से 16 अप्रैल तक चलेगा। चैत्र के महीने में रोहिणी और अश्विन शून्य नक्षत्र होता है। इस दौरान कार्य करने से धन का विनाश होता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में वर्णित अध्याय 106 के अनुसार जो भी मनुष्य नियमों का पालन करते हुए चैत्र के महीने में केवल एक समय भोजन करके अपना जीवन व्यतीत करता है, वह अगले जन्म में हर प्रकार के वैभव से संपन्न कुल में जन्म लेता है।
चैत्र मास के दौरान किये जाने वाले कार्य
इस महीने में नीम के सेवन का भी विशेष महत्व होता है। एस्ट्रोसेज के विशेषज्ञों के अनुसार चैत्र के महीने में गुड़ खाना वर्जित बताया जाता है, तो वहीं नीम के पत्ते खाने से रक्त में शुद्धता आती है। माना गया है कि नीम के सेवन करने से मलेरिया जैसी बीमारियों से व्यक्ति का बचाव होता है। वहीं शिवपुराण के अनुसार चैत्र के महीने में गौ दान करने से विभिन्न प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। देवी-देव प्रतिष्ठा के लिए भी चैत्र मास को बेहद शुभ माना गया है।
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चैत्र मास का पौराणिक महत्व
सृष्टि की रचना का हुआ था शुभारंभ :
जैसा की हमने आपको ऊपर बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही नव वर्ष का शुभारंभ होता है। ब्रह्मा जी ने इसी समय से सृष्टि की रचना शुरू की थी। इसका उल्लेख आपको स्वयं नारद पुराण में भी मिल जाएगा, जिसमें ये कहा गया है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में प्रथमदिं सूर्योदय काल से ही इस जगत के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई थी।
भगवान विष्णु ने मत्स्य स्वरूप में लिया था अवतार :
चैत्र का महीना इसलिए भी खास होता है, क्योंकि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र और विष्कुंभ योग में दिन के समय में भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछली) स्वरूप में अवतार लिया था।
दान-पुण्य का होता है महत्व :
चैत्र शुक्ल तृतीया और चैत्र पूर्णिमा को दान-पुण्य का विशेष विधान माना जाता है।
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चैत्र नवरात्रि पर्व की धूम :
भविष्य पुराण के अनुसार इसी महीने में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक चैत्र नवरात्रि मनाई जाती है। इस दौरान मां दुर्गा के लिए व्रत करते हुए भक्त मां के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना भी करते हैं।
भगवान श्रीराम का हुआ था राज्याभिषेक :
त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार अयोध्या के राजा श्री राम का राज्याभिषेक भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही हुआ था।
नव विक्रमी संवत की होती है शुरुआत :
उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रमी संवत की शुरुआत भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही की थी।
मौसम बदलाव :
चैत्र के महीने में मौसम में भी बदलाव होता है। साथ ही इस महीने में बसंत ऋतु अपने चरम पर रहती है।
स्वास्थ्य के लिहाज़ से भी ख़ास है महत्व :
आयुर्वेद ने चैत्र मास को स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण माना है। जिसके अनुसार इस महीने में नीम के कोमल पत्ते, जीरा, मिश्री, अजवाइन, पुष्प, काली मिर्च, नमक और हींग का चूर्ण बनाकर सेवन करने से पूरे साल मनुष्य निरोगी रह सकता है।
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