बहुला चतुर्थी को मुख्य रूप से हिन्दू धर्म के एक महत्वपूर्ण त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। हालाँकि ये त्यौहार प्रमुख रूप से भारत के गुजरात में ही मनाया जाता है। जैसा की आप सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में मुख्य रूप से गाय को माता का दर्जा दिया गया है, आज बहुला चतुर्थी के दिन खासतौर से गौ माता की पूजा की जाती है। ये त्यौहार मुख्य रूप से गुजरात के किसान वर्ग द्वारा विशेष तौर पर काफी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन गायों की पूजा अर्चना करने से आपका सोया हुआ भाग्य भी चमक सकता है। आज हम आपको इस त्यौहार के महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं आखिर क्यों महत्वपूर्ण है ये त्यौहार।
बहुला चतुर्थी का महत्व
बहुला चतुर्थी मुख्य रूप से गुजरात में मनाया जाने वाला पर्व है, इस दिन विशेष रूप से गाय की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रत रखने के पीछे ये मान्यता है कि गौ माता आपकी सभी मुसीबतों को दूर कर देती है और आपके जीवन को खुशहाल बना देती हैं। आज के दिन व्रत रखने वाले व्रती दूध दही या किसी भी प्रकार के दुग्ध उत्पादों का इस्तेमाल करना वर्जित मानते हैं। असल में उनका ऐसा मानना है की दुग्ध उत्पादों पर केवल गाय के बच्चों यानि की बछड़ों का ही हक़ है। इसलिए खास करके आज के दिन दूध या दूध से बने किसी भी पदार्थ का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इस दिन गौ माता की पूजा अर्चना करने के साथ ही भगवान् श्री कृष्ण की आराधना भी की जाती है। इस दिन किसान वर्ग विशेष तौर पर सुबह जल्दी उठकर गाय और बछड़ों को नहलाते हैं एवं गौशाला की सफाई करते हैं। इस मौके पर चावल के प्रयोग से विशेष प्रकार के व्यंजन भी तैयार किये जाते हैं।
बहुला चतुर्थी पूजा विधि
- आज के दिन सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्वयं स्नान करें और उसके बाद गायों और बछड़ों को स्नान करवाए।
- यदि आप व्रत रख रहे हैं तो आज के दिन विशेष रूप से गेहूं से बने किसी भी प्रकार के भोजन को ग्रहण ना करें। साथ ही
- आज के दिन चाकू का प्रयोग भी व्रतियों के लिए करना वर्जित माना गया है।
- गौ पूजन के बाद इस दिन घर में ही श्री कृष्ण और विष्णु जी की पूजा अर्चना करें और उन्हें धूप दीप दिखाते हुए पूरी श्रद्धा के साथ उनके मंत्रों का जाप करें।
- शाम के वक़्त जिसे गोधुली बेला भी कहते हैं, गाय और बछड़ों की पूजा करें।
- इस व्रत से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात ये है की जिनके पास गाय और बछड़े ना हों वो भी घर पे उनकी तस्वीर लगाकर पूजा कर सकते हैं।
बहुला चतुर्थी की पौराणिक कथा
आपको बता दें कि बहुला चतुर्थी मानाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है जिसके आधार पर गुजारत में रहने वाले वर्ग इस त्यौहार को खासतौर से मनाते हैं। एक बार बहुला नाम की एक गाय थी जो शाम के वक़्त अपने बच्चे के साथ घर लौट रही थी तभी रास्ते में उसे एक शेर मिला। शेर को सामने देख बहुला काफी डर गयी और उसने शेर से मिन्नत की वो उसके बच्चे को ना मारकर बेशक उसे खा लें। शेर ने बहुला की बात मान ली, इसके बाद बहुला ने उससे कहा की वो सिर्फ एक बार अपने बच्चे को दूध पिलाना चाहती है उसके बाद वो स्वयं उसके सामने हाज़िर हो जायेगी। शेर ने बहुला को अपने बच्चे के साथ जाने और दूध पिलाकर वापिस आने की अनुमति दे दी। बहुला ने बहुत ही निष्ठा के साथ अपने बच्चे को दूध पिलाया और वापिस शेर के सामने जाकर खड़ी हो गयी। उसकी इस बहादुरी को देखकर शेर काफी प्रभावित हुआ और उसे जाने की अनुमति दे दी। इस दिन को ही बहुला चतुर्थी के नाम से मनाया जाता है और इसलिए आज के दिन आम लोग दूध का प्रयोग नहीं करते हैं।